महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे गुट को एक और झटका लग सकता है. मुख्यमंत्री और शिवसेना के मुख्य नेता एकनाथ शिंदे ने विधान परिषद की उप-सभापति नीलम गोर्हे को पत्र लिखकर महाराष्ट्र विधान परिषद में अपना चीफ व्हिप नियुक्त करने की मांग की है. शिंदे गुट ने पत्र लिखकर विधानसभा के ऊपरी सदन में विप्लव गोपीकिशन बाजोरिया को शिवसेना का नया चीफ व्हिप बनाने की मांग की है. वर्तमान में विधान परिषद में पार्टी के चीफ व्हिप उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट के एमएलसी अनिल परब हैं. 


टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार विधान परिषद की उपाध्‍यक्ष नीलम गोरे का कहना है क‍ि शिवसेना ने एमएलसी विप्लव बाजोरिया (36) को विधान परिषद में अपना चीफ व्हिप नियुक्त करने का फैसला किया है. गोरे ने कहा कि मुझे बाजोरिया को उनकी पार्टी का व्हिप नियुक्त करने के लिए एक पत्र मिला है. हालांकि, अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है.


बाजोरिया चीफ नियुक्त होते हैं तो क्या होगा


नियम के अनुसार अगर बाजोरिया चीफ नियुक्त किये जाते हैं तो वह व्हिप जारी कर सकते हैं, और उसका पूर्व मुख्यमंत्री एवं विधान परिषद सदस्य उद्धव ठाकरे को भी पालन करना पड़ेगा. वर्तमान में महाराष्ट्र विधान परिषद में शिवसेना के 11 एमएलसी हैं जिनमें से एक को छोड़ दें तो बाकी बचे हुए सभी एमएलसी उद्धव ठाकरे के समर्थक हैं. उद्धव ठाकरे स्वयं विधान परिषद के सदस्य हैं और उनके बेटे आदित्य ठाकरे भी विधानसभा के सदस्य हैं.


ऐसे में अगर शिवसेना का चीफ व्हिप शिंदे गुट का होता है तो उद्धव गुट के एमएलसी को शिंदे गुट के चीफ व्हिप के आदेश का पालन करना होगा और ऐसा होना ठाकरे ग्रुप के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है. 


बजट सत्र की शुरुआत 


राज्य में सोमवार यानी 27 फरवरी से ही महाराष्ट्र विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो गया है. शिवसेना के चीफ व्हिप भारत गोगावाले ने विधानसभा में रविवार यानी 26 फरवरी की शाम में ही सभी विधायकों के लिए व्हिप जारी कर दिया गया है. साथ ही सभी विधायकों को बजट सत्र के दौरान विधानसभा में मौजूद रहने के निर्देश भी जारी किए गए थे. 


बजट सत्र से कुछ दिनों पहले ही चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को पार्टी का चुनाव चिन्ह धनुष बाण देने का फैसला किया था. जिसका मतलब है कि चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को असली शिवसेना माना है. हालांकि उद्धव ठाकरे गुट भी चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग के फैसले पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया. 


उद्धव ठाकरे गुट व्हिप को नहीं मानता है तो उसे क्या नुकसान होगा


सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि अगर  उद्धव ठाकरे गुट व्हिप को नहीं मानता है तो उनके विधायकों की सदस्यता खतरे में पड़ सकती है. व्हिप को लेकर कोर्ट ने कहा कि इसका पालन करना सभी संबंधित विधायकों का कर्तव्य होता है. ऐसे में अगर सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा रहे राजनीतिक दल का कोई भी एमएलए व्हिप को नहीं मानता है तो उनकी सदस्यता भी जा सकती है. हालांकि, विलय की सूरत में यह नियम लागू नहीं होगा.


अब समझते हैं कि आखिर व्हिप होता क्या है?


व्हिप का शाब्दिक अर्थ है 'कोड़ा'. हालांकि, संसदीय प्रणाली के हलकों में इस शब्द का अर्थ 'विरोध' है. प्रत्येक राजनीतिक दल संसदीय मामलों (विधायिका या संसदीय सदनों) के लिए एक प्रतिनिधि नियुक्त करता है. जिसे सचेतक भी कहा जाता है. आसान भाषा में समझें तो संगठन के इस व्यक्ति को यह सुनिश्चित करना है कि पार्टी के सदस्य अपनी व्यक्तिगत विचारधारा या अपनी इच्छा की बजाय पार्टी द्वारा तय किए नियमों या फैसलों का पालन करें.


फ्लोर टेस्ट के वक्त व्हिप का इस्तेमाल कर पार्टी के सभी सदस्यों को एक किया जाता है और उन्हें विधायिका में उपस्थित होने का आदेश दिया जाता है. पार्टी के सभी विधायकों को कंट्रोल करने का काम इसी एक्ट का है. व्हिप को सचेतक भी कहते है और इसका काम विधायिका में पार्टी अनुशासन सुनिश्चित करना होता है. 


उदाहरण के तौर पर हम अक्सर समाचारों में पढ़ते और सुनते हैं कि फलां पार्टी के प्रतिनिधि ने विधानमंडल में वोट के लिए व्हिप निकाला है, यह और कुछ नहीं बल्कि पार्टी का आदेश है. 


तीन तरह के होते हैं व्हिप 


वन लाइन व्हिप- इस व्हिप के तहत पार्टी के विधायकों को मतदान के लिए उपस्थित होने के लिए कहा जाता है. लेकिन अगर वे पार्टी की नीति के अनुसार मतदान नहीं करते हैं तो वे मतदान से दूर रह सकते हैं.


टू लाइन व्हिप- टू-लाइन व्हिप में सदस्यों को निर्देश दिया जाता है कि वो वोटिंग के वक्त सदन में मौजूद रहें और इसमें वोटिंग के लिए खास निर्देश जारी किए जाते हैं. 


थ्री लाइन व्हिप- तीन लाइन के व्हिप में सदस्यों को सदन में उपस्थित होना अनिवार्य होता है और पार्टी के हिसाब से वोट भी डालना होता है. अगर सदस्य नियम का उल्लंघन करता है तो उसकी सदस्यता रद्द भी हो सकती है. ज्यादातर पार्टियां तीन लाइन वाला व्हिप ही जारी करती हैं क्योंकि यही वैल्युएबल होता है और हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट में भी माना जाता है.


व्हिप का पालन नहीं करने पर क्या होता है?


अगर कोई सदस्य पार्टी के नेताओं द्वारा जारी किए गए व्हिप (विशेष रूप से तीन लाइन व्हिप) का पालन नहीं करता है, तो अयोग्यता की कार्रवाई की सिफारिश की जा सकती है.


अगर रेस्पोंडेंट की तरफ से ऐसी शिकायत विधानसभा अध्यक्ष को की जाती है तो संबंधित सदस्य को दल-बदल अधिनियम के तहत अयोग्य घोषित किया जा सकता है. 


हालांकि, इस कार्रवाई का अपवाद भी है, यानी जब पार्टी के कुल विधायकों में से दो-तिहाई से ज्यादा विधायक पार्टी के जनादेश के खिलाफ अलग स्टैंड लेते हैं, तो उन पर व्हिप लागू नहीं होता है. इसके अलावा जब किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन हो तो व्हिप जारी या लागू नहीं किया जा सकता है. 


क्या है दल बदल कानून 


दल-बदल एक दल को छोड़कर दूसरे दल में शामिल होने की प्रक्रिया है. लेकिन स्वार्थ की राजनीति से कोई भी दल बदल सकता है. इसलिए, दल-बदल पर प्रतिबंध लगाने के लिए दल-बदल निषेध अधिनियम अस्तित्व में आया. इस कानून को भारत की नैतिक राजनीति में एक ऐतिहासिक कदम के रूप में देखा जाता है. जिसने देश में ‘आया राम, गया राम’ की राजनीति को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है. हालाँकि पिछले कुछ सालों से देश की राजनीति में इस कानून के अस्तित्व को कई बार चुनौती दी जा चुकी है.


कब किया गया था पारित


साल 1985 में 52 वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दल-बदल विरोधी कानून’ पारित किया गया. इसका उद्देश्य उन विधायकों और सांसदों को नियंत्रित करना था जो अपनी सुविधा के अनुसार दल बदलते हैं. 


पहले कोई भी किसी भी समय किसी भी पार्टी में शामिल हो सकता था और उसकी सदन की सदस्यता रद्द नहीं की जाती थी. साल 1967 में हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टियां बदलीं थी. 


दल-बदल विरोधी कानून के मुख्य प्रावधान:


इस कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है. अगर...



  • एक निर्वाचित सदस्य अपनी इच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है. 

  • कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है.

  • किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट किया जाता है.

  • कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है.

  • 6 महीने की समाप्ति के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है. 


अयोग्य घोषित करने की शक्ति


दल बदल कानून के अनुसार, सदन के अध्यक्ष के पास सदस्यों को अयोग्य करार देने संबंधी निर्णय लेने की शक्ति है. अगर सदन के अध्यक्ष को दल से संबंधित कोई शिकायत मिलती है तो सदन द्वारा चुने गए किसी अन्य सदस्य को इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है.


अब समझते हैं शिवसेना में एकनाथ शिंदे की बगावत को


साल 2022 में 20 जून को विधान परिषद चुनाव होने के बाद एकनाथ शिंदे के साथ सभी विधायक सूरत के लिए रवाना हो गए थे, इसके बाद ये लोग गुवाहाटी चले गए थे. उस वक्त सुनील प्रभु पार्टी के सचेतक थे और शिवसेना विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे थे. पार्टी के सचेतक प्रभु ने शिवसेना विधायकों के नाम एक पत्र लिखा और उन्हें मुंबई में बैठक में भाग लेने का आदेश दिया.


इसी बीच पार्टी ने एकनाथ शिंदे को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया और उद्ध गुट के विधायक अजय चौधरी को विधायक दल के नेता पद के लिए चुना गया. हालांकि एकनाथ शिंदे ने इस फैसले को नहीं माना और इसे असंवैधानिक करार देते हुए प्रभु के जारी पत्र भी खारिज कर दिया.


एकनाथ शिंदे उसे वक्त सूरत के होटल में थे और उन्होंने वहीं से कहा कि सुनील प्रभु अब विधानमंडल में पार्टी के सचेतक नहीं हैं. प्रभु की जगह रायगढ़ के महाड से विधायक भरत गोगावले को पार्टी का सचेतक बनाया गया.


इसके बाद उसी साल यानी 2022 के 30 जून को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सरकार बनने के बाद तीन जुलाई को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया. जिसके पहले दिन विधानसभा के अध्यक्ष का चुनाव किया गया. इस दौरान शिवसेना के दोनों गुटों ने यानी शिंदे और ठाकरे दोनों ने ही शिवसेना से वोटिंग के लिए अपने-अपने पक्ष में व्हिप जारी किया था.


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