Maratha Reservation Bill: मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि महाराष्ट्र सरकार इस समुदाय को 10 प्रतिशत या 20 प्रतिशत आरक्षण देती है, बल्कि यह आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत होना चाहिए, न कि अलग. जालना जिले के अंतरवाली सरती गांव में पत्रकारों से बात करते हुए जरांग ने कहा कि वह इंतजार करेंगे और देखेंगे कि क्या राज्य सरकार कुनबी मराठों के ‘खून के रिश्तों’ पर अपनी मसौदा अधिसूचना को कानून में बदलती है या नहीं और उसके बाद अपने आंदोलन के बारे में फैसला करेंगे.
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जारांगे पाटिल ने 'सगेसोयरे' अध्यादेश अधिसूचना को लागू करने की मांग को लेकर 3 मार्च को राज्यव्यापी 'रास्ता रोको' की घोषणा की है.
मनोज जरांगे अपनी मांग पर अड़े
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जारांगे पाटिल ने 'सगे सोयरे' को लागू करने की मांग को लेकर अपनी भूख हड़ताल जारी रखी है. शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के लिए मराठा आरक्षण विधेयक कल महाराष्ट्र विधानसभा और विधान परिषद द्वारा पारित किया गया था.
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता ने कहा, “सरकार हमें वह दे रही है जो हम नहीं चाहते. हम अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आरक्षण चाहते हैं, लेकिन वे इसके बजाय हमें एक अलग कोटा दे रहे हैं. यदि सरकार कुनबी मराठों के रक्त संबंधियों के लिए आरक्षण पर मसौदा अधिसूचना पर चर्चा और कार्यान्वयन नहीं करती है, तो हम कल आंदोलन की दिशा पर फैसला करेंगे.” मराठों को अलग से 10 प्रतिशत आरक्षण देने के राज्य सरकार के प्रस्ताव के बारे में पूछे जाने पर जरांगे ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार समुदाय के लिए 10 प्रतिशत या 20 प्रतिशत आरक्षण देती है, लेकिन यह ओबीसी श्रेणी के तहत होना चाहिए, न कि अलग से.
उन्होंने आरक्षण मुद्दे को भटकाने की कोशिश के लिए सरकार की आलोचना की और आरोप लगाया कि वह मंत्री छगन भुजबल के प्रभाव में काम कर रही है, जो ओबीसी आरक्षण में मराठों के “पिछले दरवाजे से प्रवेश” का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “ओबीसी श्रेणी के बाहर एक अलग आरक्षण कानूनी चुनौतियों का सामना कर सकता है, क्योंकि ऐसा करना आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक हो सकता है.” जरांगे 10 फरवरी से भूख हड़ताल पर हैं. एक साल से भी कम समय में यह चौथी बार है, जब जरांगे ने मराठा समुदाय को ओबीसी समूह में शामिल करने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की है.