Maratha Aarakshan Protest: महाराष्ट्र पुलिस मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान हिंसा के संबंध में अब तक 141 मामले दर्ज कर चुकी है और 168 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) रजनीश सेठ ने बुधवार को यह जानकारी दी. बीड जिले में हुई हिंसा के बारे में उन्होंने बताया कि 24 से 31 अक्टूबर के बीच 20 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से सात मामले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत दर्ज किए गए.
क्या बोले डीजीपी?
सेठ ने दक्षिण मुंबई में राज्य पुलिस मुख्यालय में मीडियाकर्मियों को बताया कि किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए बीड जिले में रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) की एक कंपनी तैनात की गई है और छत्रपति संभाजी नगर (ग्रामीण), जालना और बीड में इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गई हैं. डीजीपी ने कहा कि (आठ से अधिक दिन के) विरोध प्रदर्शनों के दौरान राज्य भर में उपद्रवियों ने 12 करोड़ रुपये की सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया.
146 आरोपी व्यक्तियों को नोटिस जारी
उन्होंने कहा, “सीआरपीसी की धारा 41 के तहत 146 आरोपी व्यक्तियों को नोटिस जारी किए गए हैं.” गौरतलब है कि पिछले दो दिन में बीड जिले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार गुट) के विधायक प्रकाश सोलंके और संदीप क्षीरसागर (शरद पवार गुट) के घरों को प्रदर्शनकारियों ने आग लगा दी थी.
पुलिस ने कहा था कि छत्रपति संभाजीनगर जिले में प्रदर्शनकारियों ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक विधायक के कार्यालय में तोड़फोड़ की थी. बीड जिले के माजलगांव शहर में नगर परिषद भवन की पहली मंजिल में सोमवार को आंदोलनकारियों के एक समूह ने आग लगा दी और पथराव किया.
आरोपियों के खिलाफ पुलिस सख्त
सेठ ने कहा कि सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 144 के तहत बीड जिले में निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा, राज्य रिजर्व पुलिस बल (एसआरपीएफ) की 17 कंपनियों को पूरे महाराष्ट्र में संवेदनशील स्थानों पर तैनात किया गया है, साथ ही 7,000 होमगार्ड भी कानून व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस की मदद कर रहे हैं. डीजीपी ने कहा, “सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, आगजनी करने वाले उपद्रवियों और कानून तोड़ने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा.
हमें सख्त कार्रवाई करने के स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं. पुलिस शांतिपूर्ण तरीके से होने वाले आंदोलन में सहयोग करेगी. विभिन्न जिलों में जहां भी आवश्यकता है, हमने अतिरिक्त पुलिसकर्मी तैनात किए हैं.”
क्या बोले मनोज जरांगे?
इस बीच, कार्यकर्ता मनोज जरांगे ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या वह पूरे मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए तैयार है या नहीं. साथ ही उन्होंने सरकार से पूछा कि उसे आरक्षण देने में और समय क्यों चाहिए. मराठा आरक्षण की मांग को लेकर दबाव बनाने के लिए जालना जिले के अपने पैतृक अंतरवाली सरती गांव में अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे जरांगे ने राज्य सरकार से पूछा कि मांग पूरी करने के लिए उसे कितना समय चाहिए.
उन्होंने सरकार से धरना स्थल पर आकर बातचीत करने को भी कहा. मराठा आरक्षण मुद्दे पर चर्चा के लिए सरकार की ओर से दिन में मुंबई में सर्वदलीय बैठक आयोजित करने के बाद जरांगे ने यह टिप्पणी की. बैठक के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने जरांगे से अनशन खत्म करने और सरकार के साथ सहयोग करने का आग्रह किया. शिंदे ने कहा कि राज्य को उच्चतम न्यायालय में दायर उपचारात्मक याचिका की तैयारी के लिए कुछ समय चाहिए.
उन्होंने कहा कि सरकार को आरक्षण लागू करने के लिए कानूनी तौर-तरीकों को लेकर समय चाहिए. जरांगे ने शिंदे के बयान का जिक्र करते हुए कहा, “सर्वदलीय बैठक के दौरान क्या हुआ, इसका विवरण मैं नहीं जानना चाहता. सरकार कहती है कि उसे समय चाहिए. सरकार को बताना चाहिए कि उसे कितना समय चाहिए और यह भी बताना चाहिए कि मराठा समुदाय को आरक्षण देने में क्या दिक्कत है. फिर हम इस बारे में सोचेंगे.”
उन्होंने कहा कि सरकार को पहले ही इसका एहसास कर अधिक समय की मांग करनी चाहिए थी. जरांगे ने कहा, “लेकिन सरकार मेरे आंदोलन के 8-10 दिन बाद समय मांगने लगती है. उन्हें विस्तार से बताना चाहिए कि वे क्या करने जा रहे हैं.” वहीं राकांपा (शरद पवार) की नेता सुप्रिया सुले ने कहा कि सरकार मराठा आरक्षण का मुद्दा सुलझाने में विफल रही है. सुले ने मुंबई में पत्रकारों से कहा, “यह मराठा समुदाय के मुद्दों से निपटने में राज्य सरकार की विफलता है. यह भ्रष्ट और फर्जी ट्रिपल इंजन सरकार है, जो लगातार लोगों से झूठ बोल रही है और ऐसा करती आ रही है.”
उन्होंने कहा, “मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे की उदारता के कारण सरकार को 10 दिन का अतिरिक्त समय मिला, जबकि सरकार (समुदाय को आरक्षण लागू करने के लिए) 30 दिन की मांग कर रही थी. जब सरकार ने 30 दिन की मांग की थी, तब वह क्या सोच रही थी?” सुले ने कहा, “सरकार के साथ करीब 200 विधायक हैं और लोकसभा में भाजपा के 300 सदस्य हैं, लेकिन फिर भी वे इस मुद्दे का समाधान नहीं कर पा रहे हैं.”
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