Bombay High Court: बंबई हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (टाडा) के तहत दोषी ठहराए गए एक कैदी को पैरोल देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र में नियमों के तहत आतंकवाद से जुड़े अपराधों के दोषी पैरोल के हकदार नहीं हैं. जज एसबी शुकरे और जज एमडब्ल्यू चंदवानी की खंडपीठ ने 2 दिसंबर 2022 को अमरावती केंद्रीय कारागार में आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषी हसन मेहंदी शेख की याचिका को खारिज कर दिया. उस याचिका में उसने अपनी बीमार पत्नी को देखने के लिए नियमित पैरोल की मांग की थी. शेख को टाडा के कड़े प्रावधानों सहित विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था.



कोर्ट ने पैरोल पाने को लेकर अयोग्य ठहराया


जेल अधिकारियों ने इस आधार पर उसका आवेदन खारिज कर दिया था कि वह जेल (बंबई फर्लो और पैरोल) नियमों के प्रावधानों के तहत पैरोल पाने के योग्य नहीं है. इसके बाद उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि नियमों में एक विशिष्ट प्रावधान है, जो टाडा के तहत एक दोषी को नियमित पैरोल का लाभ पाने के लिए अयोग्य ठहराता है.


कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि उन कैदियों को नियमित पैरोल पर रिहा किए जाने पर पाबंदी है, जो आतंकवादी अपराधों के तहत दोषी ठहराए गए हैं. टाडा आतंकवाद से जुड़े अपराधों के बारे में हैं.


हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को टाडा के तहत दोषी ठहराया गया और इसलिए वह नियमित पैरोल पाने का हकदार नहीं होगा. शेख ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 2017 के एक फैसले को आधार बनाया था, जिसमें कहा गया था कि अगर एक अपराधी को टाडा प्रावधानों के तहत दोषी पाया जाता है, तो भी वह नियमित पैरोल मांगने का हकदार होगा. 


हालांकि हाईकोर्ट ने इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि संबंधित मामले में कैदी राजस्थान से था और इसलिए वह महाराष्ट्र में कैदियों के लिए तय नियमों द्वारा शासित नहीं है.


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