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Ghatkopar Hoarding Case: घाटकोपर होर्डिंग गिरने के मामले में किसकी कितनी लापरवाही? चार्जशीट में हुआ बड़ा खुलासा

Mumbai Hoarding Collapse Case: मुंबई के घाटकोपर में होर्डिंग गिरने के मामले में बड़ा खुलासा हुआ है. आईएएस अधिकारी ने बताया कि इसके पीछे किसकी लापरवाही थी.

Mumbai Hoarding Case: घाटकोपर होर्डिंग गिरने के मामले की जांच कर रही मुंबई क्राइम ब्रांच ने मुंबई के कोर्ट में चार्जशीट दायर की है. इस चार्जशीट में बताया गया की कैसे 200 स्क्वायर फिट की होर्डिंग 33000 स्क्वायर फिट की हो गई. दो सीनियर IPS अधिकारी ने इसबारे में विस्तार से बताया है.

चार्जशीट में हुआ बड़ा खुलासा
GRP के पूर्व कमिश्नर कैसर खालिद के अनुसार, जब उन्होंने IPS अधिकारी रविंद्र शिसवे को कमिश्नर का कार्यभार सौंपा, तो शिसवे ने नियमों का उल्लंघन करते हुए 33,600 वर्ग फुट के होर्डिंग को मंजूरी दी. खालिद ने यह भी दावा किया कि दस्तावेजों में कुछ तारीखों में छेड़छाड़ की गई थी ताकि ऐसा लगे कि उन्होंने बड़े होर्डिंग को मंजूरी दी थी. अपने बयान में, खालिद ने घाटकोपर होर्डिंग के बारे में जानकारी दी है कि जिसमे उस होर्डिंग की ई-टेंडरिंग प्रक्रिया भी शामिल थी, जिसे उनके पहले के जीआरपी कमिश्नर रविंद्र सेंगांवकर ने शुरू किया था.

खालिद ने दावा किया कि प्रारंभिक टेंडर बीपीसीएल द्वारा जारी किया गया था, और विजेता क्यूकॉम ब्रांड सॉल्यूशन था. चूंकि क्यूकॉम रेलवे को भुगतान नहीं कर रहा था, इस वजह से एक नई बोली आमंत्रित की गई और सबसे अधिक बोली लगाने की वजह से टेंडर ईगो मीडिया को दिया गया.

खालिद ने आगे कहा कि उन्होंने पूर्व बॉम्बे हाई कोर्ट जस्टिस, एपीएस लॉ फर्म और जीआरपी के लॉ ऑफिसर से कानूनी राय मांगी थी. खालिद ने अपने बयान में यह कहा कि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि वह जमीन भारतीय रेलवे की है. ई-टेंडर में उल्लेख किया गया था कि जमीन राज्य सरकार की है, लेकिन जमीन गृह विभाग के अंतर्गत था. लेकिन बीएमसी टेक्स लेती थी. कानूनी के अनुसार रेलवे अधिकार क्षेत्र के तहत जमीन के लिए बीएमसी की मंजूरी की आवश्यकता नहीं थी.

खालिद ने अपने बयान में आगे कहा कि डीजीपी आफिस की अनुमति नहीं मांगी गई थी इसके पीछे की वजह थी की सितंबर 2020 में घाटकोपर में बीपीसीएल संचालित पेट्रोल पंप को मंजूरी दी थी, जो 60x60 वर्ग मीटर का था. पंप के लिए प्रस्ताव पूर्व कमिश्नर रविन्द्र सेनगांवकर द्वारा भेजा गया था और डीजीपी कार्यालय द्वारा स्वीकृत किया गया था और इस मंजूरी और डिजाइन में पहले से ही होर्डिंग का भी उल्लेख दिखाई दे रहा था. इसलिए, उन्होंने डीजीपी कार्यालय से दुबारा से अनुमति नहीं मांगी.

खालिद के अनुसार, उन्होंने 22 नवंबर, 2022 को 200 वर्ग फुट के होर्डिंग को मंजूरी दी और नोट किया कि यदि आकार बढ़ाया जाता है, तो जीआरपी के लिए किराए पर विचार किया जाना चाहिए. यह मुद्दा उनके द्वारा शिसवे को कार्यभार सौंपे जाने पर अनसुलझा रहा. 21 अप्रैल, 2023 तक, शिसवे ने इस मामले पर कोई निर्णय नहीं लिया और डीजीपी कार्यालय को होर्डिंग के आकार को 33,600 वर्ग फुट तक नियमित करने का प्रस्ताव भेजा. डीजीपी कार्यालय ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और इसके बजाय शिसवे को कारण बताओ नोटिस जारी किया.

शिसवे ने 16 सितंबर, 2023 को डीजीपी कार्यालय को जवाब दिया, तर्क दिया कि यह जमीन कमर्शियल था और बिना होर्डिंग के भी कमर्शियल ही रहेगा, इसलिए अनुमति दी जानी चाहिए. हालांकि, कार्यालय ने अनुमति नहीं दी. खालिद ने आगे दावा किया कि शिसवे को भी उनके (खालिद) द्वारा स्वीकृत आकार से बड़े अवैध होर्डिंग के बारे में कई शिकायतें मिलीं. ये शिकायतें पूर्व घाटकोपर नगरसेवक, बीजेपी नेता किरीट सोमैया, आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली और सामाजिक कार्यकर्ता सलीम पठान द्वारा की गई थीं.

खालिद ने बयान में कहा कि, ईगो मीडिया ने 19 दिसंबर, 2022 को एक संशोधित किराए के लिए एप्लिकेशन दिया, जहां बिलबोर्ड का आकार बढ़ाकर 33,600 वर्ग फुट कर दिया गया. और चूंकि यह एक नीतिगत मामला था, उन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया और कार्यालय से कहा कि इस मामले को शिसवे के सामने रखें.

खालिद ने आगे बताया कि बीपीसीएल ने पंप चलाने के लिए आवंटित भूखंड पर ईगो मीडिया द्वारा की जा रही खुदाई के पैमाने पर आपत्ति जताई. शिसवे के सामने 21 दिसंबर, 2022 को एक ऑफिशियल नोट रख काम रोकने का अनुरोध किया गया क्योंकि यह पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO) लाइसेंस शर्तों का उल्लंघन कर रहा था. शिसवे ने उनके द्वारा 22 नवंबर, 2022 को जारी मूल आदेश के उल्लंघन पर कोई कार्रवाई नहीं की, जिसमें पेट्रोल पंप के डिजाइन के अनुसार 200 वर्ग फुट तक के होर्डिंग की अनुमति दी गई थी.

खालिद ने आगे कहा कि 30 अप्रैल, 2024 को, होर्डिंग गिरने से 13 दिन पहले, बीएमसी ने जीआरपी को अवैध होर्डिंग हटाने का नोटिस जारी किया था. हालांकि, ऐसा लगता है कि शिसवे ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की और इसके बजाय ईगो मीडिया से किराया वसूलना जारी रखा. सूत्रों के अनुसार, ईगो मीडिया होर्डिंग के लिए लगभग 12 लाख प्रति माह का भुगतान कर रही थी, और जब तक यह गिरा रेलवे को एक करोड़ से अधिक का भुगतान किया जा चुका था.

खालिद ने कहा कि होर्डिंग का निर्माण कार्य शिसवे के कार्यकाल के दौरान हुआ था इसीलिए होर्डिंग की स्थिरता की जांच करना उनकी जिम्मेदारी थी. खालिद के अनुसार, वहां की मिट्टी नरम और दलदली थी. जबकि मुंबई में आमतौर पर तीन मीटर की गहराई तक खुदाई पर्याप्त होती है, घाटकोपर में हार्ड सॉयल (हार्ड सरफेस) तक पहुंचने के लिए 10 मीटर की गहराई आवश्यक है.

चार्जशीट के मुताबिक शिसवे ने अपने बयान में कहा कि जब उन्हें यह बताया गया कि होर्डिंग के लिए डीजीपी कार्यालय से मंजूरी नहीं ली गई है, तो वह चौंक गए. उन्होंने तुरंत अपने कार्यालय को अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित करने के लिए एक पत्र तैयार करने के लिए कहा, और यह पत्र डीजीपी कार्यालय को भेजा गया. कमिश्नर के रूप में, वह कानून व्यवस्था, अपराध नियंत्रण और प्रशासनिक कार्य संभालने में, पुलिस भर्ती और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुंबई में वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाने जैसे कार्यक्रम में काफी व्यस्त थे. जब उन्होंने डीजीपी कार्यालय को भेजे गए पत्र के संदर्भ में पूछा, तो उन्हें बताया गया कि कोई जवाब नहीं आया है जिसके बाद उन्होंने 21 अप्रैल, 2023 को एक नया पत्र लिखा.

शिसवे ने आगे बताया की अगस्त 2023 में, एक एडीजी रैंक के अधिकारी ने उन्हें पत्र भेजा और फोन पर भी बात कि जिसमे होर्डिंग के लिए अनुमति कैसे दी गई, और उन्हें विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा. “16 सितंबर, 2023 को, शिसवे ने डीजीपी कार्यालय को एक स्पष्टीकरण भेजा. बाद में, उन्हें पता चला कि डीजीपी कार्यालय द्वारा खालिद को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था जिसके बाद खालिद ने फिर GRP कमिश्नर कार्यालय के एक जूनियर क्लर्क को बुलाया ताकि वे फाइलों को दुबारा से देख सकें.

क्लर्क ने फिर शिसवे से इसकी अनुमति मांगी, जिसे उन्होंने दी. उसके बाद, होर्डिंग गिरने तक डीजीपी कार्यालय से कोई और आदेश नहीं आया.

शिसवे ने आगे यह भी दावा किया कि नगरसेवक और कार्यकर्ताओं द्वारा की गई शिकायतें कभी उनके संज्ञान में नहीं लाई गई. बयान ले रहे जांच अधिकारी के सामने शिसवे ने कहा कि उन्हें पुलिस पद का 21 साल का अनुभव है, और ऐसी शिकायतों पर किसी न किसी तरह का रिमार्क देकर उसके माध्यम से उन्हें देखने की जिम्मेदारी/आदत होती है और इसी प्रकार उन शिकायतों को देखेंगे तो संज्ञान में न आने को वजह से उपसर शिसवे की कोई टिप्पणी नहीं है. 

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