मुंबई: 30 साल से ज्यादा पुराने एक हत्या (Murder) के मामले में, एक युवक को 1998 में अलीबाग की एक निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. वहीं अब इस मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने कहा कि उसके खिलाफ कोई कोई ठोस सबूत नहीं है.


1990 का है मामला


बता दें कि मई 1990 में, अपने परिवार के साथ शादी का जश्न मना रहे एक शख्स की भाले से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी. मामले में आरोपी व्यक्ति और उसके बेटे को दोषी ठहराया गया, जबकि नौ अन्य जो  कथित भीड़ का हिस्सा थे उन्हें सेशन कोर्ट द्वारा बरी कर दिया गया था. इसके बाद आरोपी बाप-बेटे ने फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन 2018 में पिता की मृत्यु हो गई. इस बीच उनकी अपील लंबित थी.


सबूतों के अभाव में हाईकोर्ट ने हत्या के दोषी को किया बरी


न्यायमूर्ति साधना जाधव और न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि मेडिकल साक्ष्य ने पीड़ित की मौत के लिए पिता जिम्मेदार था, और बिना सबूत के बेटे को आरोपी करार देना "बेहद गलत" है. हाईकोर्ट ने अपने 6 मई के फैसले में कहा, "हमने पाया हैं कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए धारा 302 के आरोप को साबित करने में पूरी तरह से और बुरी तरह विफल रहा है. अभियोजन द्वारा पेश किए गए साक्ष्य न तो सुसंगत हैं और न ही ठोस और इसलिए विश्वसनीय नहीं हैं. इसलिए अपीलकर्ता संदेह का लाभ पाने का हकदार है.” इसी के साथ 30 साल बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट ने हत्या के दोषी शख्स को बरी कर दिया.


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