Maharashtra News: महाराष्ट्र में सरकारी स्कूलों के उच्च कक्षाओं के छात्र के प्रदर्शन में दिखी गिरावट- NAS की रिपोर्ट
NAS report: उच्च कक्षा के छात्रों का प्रदर्शन गिरकर क्रमशः 55 प्रतिशत (कक्षा 5), 39 प्रतिशत (कक्षा 8) और 32.6 प्रतिशत (कक्षा 10) रहा. उच्च कक्षा के छात्र के समझने का स्तर लगातार गिर रहा है.
Maharashtra NAS report: नेशनल अचीवमेंट सर्वे (एनएएस), महाराष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, जैसे-जैसे छात्र उच्च कक्षाओं की ओर बढ़ रहे हैं, उनके सोचने और समझने का स्तर लगातार गिरता जा रहा है. इसके अलावा, सरकारी और निजी स्कूलों के बीच तुलना से पता चलता है कि उच्च कक्षाओं में निजी स्कूल के छात्रों का प्रदर्शन बेहतर है. विशेषज्ञों के अनुसार, यह रिपोर्ट महाराष्ट्र के सरकारी स्कूलों में विशेष रूप से उच्च कक्षाओं में गुणवत्ता या बेहतर शिक्षा के मानकों पर सवाल उठाता है.
NAS रिपोर्ट में कहा
इंडियन एक्सप्रेस में छपे खबर के अनुसार, NAS रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों में कक्षा 3 के छात्रों का प्रदर्शन 66.33 प्रतिशत जबकि निजी स्कूलों के छात्रों का प्रदर्शन 55.44 प्रतिशत रहा. हालांकि, प्रत्येक उच्च कक्षा के छात्रों का प्रदर्शन गिरकर क्रमशः 55 प्रतिशत (कक्षा 5), 39 प्रतिशत (कक्षा 8) और 32.6 प्रतिशत (कक्षा 10) रहा. वहीं, निजी स्कूलों के मामले में कक्षा 5, 8 और 10 में छात्रों का प्रदर्शन क्रमश: 51.44 फीसदी, 44.74 फीसदी और 41.66 फीसदी रहा.
यह आंकड़ा महाराष्ट्र के सरकारी स्कूलों में मिल रही खराब शिक्षा स्तर या शिक्षा के मानकों को दर्शाता है. जब बच्चे उच्च कक्षाओं की ओर बढ़ रहे हैं तो शिक्षा के क्षेत्र में क्या गलत हो रहा है, इसमें हस्तक्षेप करना और समझना महत्वपूर्ण होना चाहिए. शहर के एक निजी स्कूल के शिक्षक के अनुसार कक्षा 3 से 10 तक के बच्चों की गिरावट दर - 66.33 प्रतिशत से 32.6 प्रतिशत तेज है. एक अन्य शिक्षक ने कहा, "कई वर्षों से बच्चों के माता-पिता निजी स्कूलों को ज्यादा पसंद करते हैं और यही उनकी शिक्षा की बेहतर गुणवत्ता के कारण हैं. हाल की NAS रिपोर्ट में दिखाई गई तुलना इसे साबित करती है."
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बच्चों की सीख में माता-पिता की भागीदारी
मुंबई स्कूल प्रिंसिपल एसोसिएशन के प्रवक्ता पांडुरंग केंगर ने कहा कि आंकड़े सभी शैक्षणिक माहौल का प्रतिबिंब हैं. यहां तुलना करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज अपने बच्चों की सीखने की प्रक्रिया में माता-पिता की भागीदारी है. निजी स्कूलों के माता-पिता, उनकी शैक्षणिक और साथ ही सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि को देखते हुए, अपने बच्चों की स्कूली शिक्षा प्रक्रिया में अधिक जागरूक और शामिल हैं. जबकि सरकारी स्कूलों में इस पहलू की कमी नजर आती है.