महाराष्ट्र में किसानों की आवाज उठाने के लिए बनाई गई स्वाभिमानी शेतकरी संघटन पार्टी को भी ऑपरेशन लोटस का डर सताने लगा है. संगठन के प्रमुख राजू शेट्टी के खिलाफ उनके ही करीबी रविंकांत तुपकर ने मोर्चा खोल दिया है. तुपकर ने पार्टी पर दावा ठोकते हुए कार्यकर्ताओं के साथ शक्ति प्रदर्शन की बात कही है.
तुपकर और शेट्टी के विवाद को राजनीतिक एक्सपर्ट शिवसेना विवाद से जोड़ रहे हैं. शिवसेना के एकनाथ शिंदे की तरह ही तुपकर का फोन भी अनरिचेबल मोड में है. इधर, राजू शेट्टी के खिलाफ तुपकर के शक्ति प्रदर्शन की तारीखों को लेकर अटकलें तेज हो गई है.
स्वाभिमानी शेतकरी संघटन में अगर टूट होती है, तो महाराष्ट्र की सियासत में एक रिकॉर्ड बन जाएगा. पिछले 13 महीने में यह तीसरा मौका होगा, जब विपक्षी पार्टियों में आंतरिक टूट होगी. इससे पहले शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में टूट हो चुकी है.
स्वाभिमानी शेतकरी पार्टी का विवाद क्या है?
स्वाभिमानी शेतकरी के भीतर आंतरिक विवाद महीनों से जारी था, जो अगस्त 2023 में लोगों के सामने आया. बुलढाणा के संग्रामपुर में पार्टी की ओर से किसानों के लिए एक रैली का आयोजन किया गया था. इसमें संगठन के मुखिया और पूर्व सांसद राजू शेट्टी भी शामिल हुए थे.
रैली में पार्टी की ओर से रविकांत तुपकर को नहीं बुलाया गया. तुपकर महाराष्ट्र के पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री रह चुके हैं और बुलढाणा उनका गृह जिला है. तुपकर ने इसके बाद से ही शेट्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. तुपकर ने कहा कि पार्टी शेट्टी का जागीर नहीं है और लोग हमारे साथ हैं.
तुपकर के बगावत के बाद शेट्टी ने डैमेज कंट्रोल की प्रक्रिया शुरू की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए. तुपकर ने पार्टी के किसी भी मीटिंग में जाने से मना कर दिया है और कहा है कि अब सीधे शक्ति प्रदर्शन कार्यक्रम रखा जाएगा.
तुपकर ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि 5 साल से हम संगठन में कई मुद्दों को उठा रहे थे, लेकिन राजू शेट्टी इसका निदान नहीं कर पाए रहे थे. पार्टी को खुद की संपत्ति समझते थे, लेकिन अब उन्हें हकीकत पता चल जाएगा.
रविकांत तुपकर कितने मजबूत, ऐसे समझिए...
18 साल की उम्र में शरद जोशी के किसान आंदोलन से प्रभावित होकर तुपकर 2004 में राजू शेट्टी के साथ आ गए. उन्हें स्वाभिमानी शेतकरी पार्टी के युथ विंग का अध्यक्ष बनाया गया. राजू शेट्टी के दिल्ली पॉलिटिक्स में सक्रिय हो जाने के बाद उन्हें महाराष्ट्र का जिम्मा सौंपा गया.
तुपकर पार्टी के महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष बनाए गए. 2015 में शेट्टी ने देवेंद्र फडणवीस सरकार को समर्थन देने का ऐलान किया. समझौते के तहत सरकार में उन्हें निगम-मंडल से एक पद मिला. शेट्टी ने यह पद तुपकर को दे दिया. तुपकर महाराष्ट्र टेक्सटाइल बोर्ड के अध्यक्ष बनाए गए. उन्हें मंत्री का दर्जा भी मिला.
2021 में किसानों के मुद्दे पर उन्होंने 3 दिन के लिए भूख हड़ताल कर दिया. यह हड़ताल धीरे-धीरे हिंसक आंदोलन में बदल गया. स्वाभिमानी पक्ष के कार्यकर्ताओं ने प्रशासन की गाड़ियां जला दी. पूरे महाराष्ट्र में तुपकर रातों-रात फेमस हो गए.
उद्धव सरकार ने तुपकर की सभी मांगे मान ली और उन्हें हड़ताल खत्म करने के लिए कहा. तुपकर स्वाभिमानी पक्ष के राष्ट्रीय संगठन में नेता पद पर हैं, जो अध्यक्ष के बाद दूसरा महत्वपूर्ण पद है.
तुपकर के बगावत पर राजू शेट्टी ने क्या कहा?
मराठी अखबार दिव्य मराठी के मुताबिक राजू शेट्टी ने पार्टी के भीतर बगावत के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है. शेट्टी ने कहा कि पार्टी तोड़ना बीजेपी का आधिकारिक काम हो गया है. बीजेपी अब तक राष्ट्रीय समाज पार्टी, शिव संग्राम पार्टी, शिव सेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को तोड़ चुकी है.
शेट्टी ने कहा कि तुपकर के पीछे बीजेपी ही है. इसे न मानने के पीछे किसी तरह की गुंजाइश नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि हम तुपकर से संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं. अगर वे नहीं मानते हैं, तो फिर पार्टी आगे की कार्रवाई करेगी.
वहीं बीजेपी की ओर से अभी तक इस पूरे मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. हालांकि, पूर्व विधायक और देवेंद्र फडणवीस के करीबी माने जाने वाले आशीष देशमुख ने जरूर तुपकर को बीजेपी में शामिल होने का ऑफर दिया है.
महाराष्ट्र की सियासत में स्वाभिमानी दल का कितना दखल?
महाराष्ट्र में सहकारी आंदोलन के बड़े नेता थे- शरद अनंत राव जोशी. 80 के दशक में उन्होंने कांग्रेस सरकार के खिलाफ किसानों के समर्थन में कई आंदोलन किए. राजू शेट्टी भी जोशी के साथ आंदोलन में जुड़ गए. 2004 में जोशी और शेट्टी में मतभेद हो गए.
शेट्टी ने जोशी की पार्टी को तोड़ते हुए स्वाभिमान शेतकारी संगठन का गठन किया. 2004 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शेट्टी निर्दलीय ही सिरोली सीट से सदन पहुंचने में कामयाब रहे. 2009 में शेट्टी ने हातकंगाले लोकसभा सीट से जीत दर्ज की.
इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने एक सीट पर जीत हासिल की. इसके बाद स्वाभिमानी पक्ष का दबदबा बढ़ता गया. 2009 के लोकसभा चुनाव में शेट्टी की पार्टी को 1.3 प्रतिशत वोट मिला.
2014 के लोकसभा चुनाव में शेट्टी की पार्टी ने एनडीए के साथ गठबंधन किया. समझौते के तहत स्वाभिमानी पक्ष को सतारा, माढ़ा और हातकंगाले सीट मिला. हालांकि, पार्टी एक ही सीट हातकंगाले पर जीत दर्ज कर पाई.
पार्टी के वोट प्रतिशत में जबर्दस्त उछाल आया. लोकसभा चुनाव 2014 में स्वाभिमानी पक्ष को 9.8 फीसदी वोट मिला. 2017 में पार्टी ने किसानों के मुद्दे पर एनडीए से नाता तोड़ लिया. 2015 में चुनाव आयोग ने सही जानकारी नहीं देने के लिए स्वाभिमानी पक्ष का सिंबल रद्द कर दिया था.
महाराष्ट्र की सियासत में स्वाभिमानी पक्ष का हातकंगाले, कोल्हापुर, सतारा, सांगली, माढ़ा आदि में मजबूत पकड़ है. पार्टी शुरू से गन्ना और कपास किसानों के मुद्दों को उठाती रही है. 2019 में इन 5 में से 4 सीटें एनडीए गठबंधन के पास है.
शिवसेना और एनसीपी कैसे टूटी, 2 प्वॉइंट्स...
1. महाविकास अघाड़ी सरकार में शामिल शिवसेना के 40 विधायकों ने एकनाथ शिंदे के साथ उद्धव के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया. इन विधायकों के बागी होने से सरकार गिर गई. शिंदे ने शिवसेना पर भी दावा ठोंक दिया. चुनाव आयोग ने शिवसेना का सिंबल शिंदे को दे दिया. इधर, बागी विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे बीजेपी के साथ मिल गए.
2. जुलाई 2023 में अजित पवार के साथ एनसीपी के 9 विधायकों ने एनडीए सरकार में शामिल होने का फैसला किया. इन विधायकों को शिंदे सरकार में मंत्री बनाया गया. सरकार में शामिल होने के बाद अजित पवार ने चाचा शरद के खिलाफ बगावत कर दिया. अजित ने आयोग को पत्र लिखकर एनसीपी पर दावा ठोक दिया.