Sharad Pawar: शरद पवार ने इमरजेंसी (Emergency) के बाद कांग्रेस (Congress) छोड़ दिया और साल 1978 में जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र (Maharashtra) में सरकार का गठन किया और राज्य के सीएम बने. उस समय शरद पवार महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री (37 साल) बनकर इतिहास रचा था, जो खिताब आज भी उनके नाम दर्ज है. वहीं साल 1980 में जब इंदिरा गांधी (Indira gandhi) की सरकार वापस आई तो शरद पवार की सरकार बर्खास्त कर दी गई.
वहीं साल 1983 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट का गठन कर प्रदेश की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बनाई और इसके बाद शरद पवार ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह लगातार बुलंदियों को छूते रहे. उस साल हुए लोकसभा चुनाव में शरद ने पहली बार बारामती से चुनाव जीता था. हालांकि, 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 54 सीटों पर अपनी जीत दर्ज की और एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में उनकी वापसी हुई. शरद पवार ने पिछले पचास साल से महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी धाक जमाए हुए हैं.
2017 में मिला था ये सम्मान
शरद पवार महाराष्ट्र राज्य में तीन बार मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले चुके हैं. इसके अलावा मनमोहन सिंह की कैबिनेट में साल 2004 से 2014 तक वह कृषि मंत्री भी रहे. पवार केंद्र में रक्षा मंत्री के तौर पर भी काम कर चुके हैं. राजनीति में अपनी चाल को लेकर मशहूर शरद पवार का राजनीतिक और व्यवहारिक आचरण भी काफी अच्छा रहा है. यही कारण है कि उनके रिश्ते सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक, सबसे हमेशा अच्छे रहे हैं. साल 2017 में उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मानित सिविलियन पुरस्कार से भी 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया जा चुका है. उस वक्त मोदी सरकार सत्ता में थी.
जब पवार ने कांग्रेस से की बगावत
शरद पवार 1978 में कांग्रेस नेता वसंतदादा पाटिल को झटका देते हुए जनता पार्टी के साथ मिलकर सीएम बन गए थे और कांग्रेस देखती रह गई थी. दरअसल, देश में आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हार मिली और जनता पार्टी की सरकार बनी थी. ऐसे में महाराष्ट्र में भी कांग्रेस पार्टी को कई सीटों से हाथ धोना पड़ा था, जिसके चलते राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकर राव चव्हाण ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. ऐसे में वसंतदादा पाटिल महाराष्ट्र के सीएम बने थे. वहीं इस दौरान कांग्रेस भी टूटने लगी और पार्टी कांग्रेस (एस) और कांग्रेस (आई) दो धड़ों में बंट गई थी.
वसंतदादा पाटिल को दिया झटका
ऐसे में शरद पवार कांग्रेस (एस) में शामिल हो गए थे. ऐसें में साल 1978 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस के दोनों धड़ों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. तब कांग्रेस (एस) को 69 सीटें मिली थीं और कांग्रेस (आई) को 65 सीटें हासिल हुई थी. जबकि, जनता पार्टी ने 99 सीटों पर कब्जा जमाया था. इस तरह से तीनों ही दल अपने दम पर सरकार गठन की स्थिति में नहीं थी. ऐसे में वसंतदादा पाटिल के नेतृत्व में कांग्रेस के दोनों धड़ों ने साथ आने का फैसला लिया था. कांग्रेस के दोनों धड़े मिलकर सरकार बनाते इससे पहले ही शरद पवार ने कांग्रेस (एस) को तोड़ दिया. बता दें कि शरद पवार ने कांग्रेस (एस) के 38 विधायकों को लेकर जनता पार्टी के साथ प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट बनाकर महाराष्ट्र में सरकार बनाकर सत्ता पर कब्जा कर लिया.