Maharashtra Politics: मुंबई में बुधवार को उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की ओर से अलग-अलग आयोजित की गयी दशहरा रैलियों में एक दूसरे पर आरोपों की बौछार कर दी. दशहरा के दिन शिवसेना की 2 रैली थी. एक तरफ उद्धव और दूसरी तरफ एकनाथ गरज रहे थे. उद्धव ठाकरे को झटका देने के लिए एक तस्वीर काफी थी.जिसमे मंच पर बाला साहेब ठाकरे की बहु स्मिता ठाकरे,बेटे जयदेव और पोते निहार ठाकरे की मौजूदगी.


इसे एक साफ संदेश गया की पार्टी में बगावत सिर्फ विधायक और सांसद के बीच की नहीं बल्कि बगावत परिवार में भी है.आने वाले वक्त में बालासाहेब ठाकरे के परिवार के सदस्यों की राजनीति में एंट्री होने वाली है. नये ठाकरे समूह के लोग एकनाथ शिंदे गुट में जा सकते हैं तो कुछ शिंदे गुट के लोग उद्धव ठाकरे के गुट में. फिलहाल महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार के चार लोग एक्टिव हैं.


महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार का योगदान


उद्धव ठाकरे ने अपने भाषण में कहा कि, महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीति ठाकरे परिवार के बिना कल्पना नहीं की जा सकती है. देश को जब से आजादी मिली तब से ठाकरे परिवार महाराष्ट्र की सामाजिक-राजनीतिक उथल पुथल का हिस्सा रहा है. उद्धव ठाकरे के दादा जी प्रबोधनकार ठाकरे ने संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में हिस्सा लिया था. जो मुंबई को केंद्रशासित प्रदेश बनाने के खिलाफ चलाया गया था. बाद में उनके बेटे बाल ठाकरे ने मराठी माणूस यानी कि भूमि पुत्रों को न्याय दिलाने के मुद्दे के साथ शिव सेना की स्थापना की और उनके बाद उनके बेटे उद्धव ने पार्टी की कमान संभाली.


उद्धव के बेटे आदित्य की शक्ल में ठाकरे खानदान की चौथी पीढ़ी ने भी राजनीति में प्रवेश किया. वही दूसरी ओर बाल ठाकरे के भतीजे राज भी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम की अपनी अलग पार्टी चला रहे हैं. राज ठाकरे के बेटे अमित भी राजनीति में सक्रिय हो गये हैं. अब सियासी हलकों में चर्चा शुरू हो गयी कि राज्य की सियासत में जल्द ही कुछ और भी ठाकरे प्रवेश करेंगे. ये चर्चा खासकर दशहरे के दिन मुंबई में हुयी उद्धव ठाकरे और उनसे बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे की रैली के बाद ज्यादा तेज हो गयी है.


महाराष्ट्र की राजनीति में महिलाओं का दबदबा


दिवंगत शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे की बहू स्मिता ठाकरे को लेकर भी चर्चा हो रही है. 90 के दशक में वे शिवसेना के भीतर एक अलग शक्ति केंद्र बन गयीं थीं. बालासाहेब ठाकरे के दूसरे बेटे जयदेव के साथ स्मिता की शादी 1987 में हुई थी. शादी से पहले वे रिसेप्शनिस्ट का काम करती थीं और फिर उन्होने नारी नाम का एक बुटीक शुरू किया था. लेकिन जयदेव के साथ स्मिता की शादी ज्यादा टिक नहीं पाई. साल 2004 में जयदेव और स्मिता का तलाक हो गया लेकिन स्मिता ने कुछ वक्त तक मातोश्री में रहना जारी रखा और अपने नाम के आगे ठाकरे लगतीं रहीं.


बालासाहब की बहू होने के नाते स्मिता ने शिव सेना में अपना रसूख जमा लिया था. पार्टी की ओर से लिये जाने वाले फैसलों में उनका दखल रहता था. ये भी कहा जाता है कि 1999 में मनोहर जोशी को हटाकर नारायण राणे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उन्होने भी सहमति दी थी. शिवसेना की महाराष्ट्र में सत्ता के दौरान मुख्यमंत्री नारायण राणे ने स्मिता ठाकरे को संस्था मुक्ति के लिये जुहू जैसे महंगे इलाके में जमीन भी दी.


स्मिता ठाकरे का बॉलीवुड कनेक्शन
स्मिता ठाकरे  ने 90 के दशक में बॉलीवुड में भी अपना अच्छा खासा दबदबा बना लिया था. वे अक्सर बॉलीवुड की हाई प्रोफाइल पेज थ्री पार्टियों में नजर आने लगी. किसी भी फिल्मकार को कोई तकलीफ होती तो वो स्मिता ठाकरे से ही संपर्क करता था. उन्होने साल 1999 में एक फिल्म भी प्रोड्यूस की जिसका नाम था हसीना मान जायेगी. इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी-खासी कमाई भी की. स्मिता ठाकरे  साल 2001 में इंडियन मोशन पिक्चर्स एसोसिएशन यानी इंपा का अध्यक्ष बनी.


स्मिता ठाकरे की सियासी सफर पर ब्रेक


स्मिता ठाकरे के सियासी सफर पर ब्रेक लग गया जब साल 2003 में बतौर शिव सेना कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने पार्टी की कमान संभाली. उद्धव ने पार्टी की सारी ताकत अपने पास ले ली और पुराने लोगों को दरकिनार करने लगे. उद्धव ने अपने करीबी लोगों का नया सर्किल बनाया और पार्टी में उन्ही की सुनी जाती. इससे खफा होकर नारायण राणे और राज ठाकरे जैसे नेताओं ने तो पार्टी छोड़ी दी बाद में स्मिता ठाकरे को भी शिव सेना में से नाता टूट गया. फिर वो अपने NGO मुक्ति फाउंडेशन का काम जारी रखा. स्मिता ठाकरे के पति जयदेव का अपने पिता बालासाहेब ठाकरे से कभी नहीं जमा इसलिए जयदेव पिता से अलग होकर रहने लगे.


शिंदे गुट में ठाकरे परिवार के मायने


स्मिता ठाकरे ने औपचारिक तौर पर शिंदे गुट की शिवसेना की सदस्यता नहीं ली है लेकिन शिंदे के मंच पर उनकी मौजूदगी ने इस बात की चर्चा जरूर गर्म कर दी है कि स्मिता ठाकरे राजनीति में नयी पारी शुरू करने जा रहीं हैं और बालासाहेब के पोते निहार भी सियासत में एंट्री कर सकते हैं.


निहार बालासाहेब के दिवंगत बेटे बिंदुमाधव के बेटे हैं. कई सियासी पंडितों का मानना है कि ठाकरे के बिना शिव सेना की कल्पना कर पाना मुश्किल है, ऐसे में ठाकरे परिवार के सदस्यों को अपने साथ लेना शिंदे के लिये फायदेमंद हो सकता है. एक ओर जहां शिंदे की रैली में ठाकरे परिवार के तीन सदस्य मौजूद थे तो वहीं उद्धव की सभा में ठाकरे परिवार के दो लोगों के नाम की चर्चा रही. ये नाम थे रश्मी ठाकरे और तेजस ठाकरे के.


 बैनर पर रश्मी ठाकरे की तस्वीरें क्या करती है इशारा?


शिवाजी पार्क के इर्द-गिर्द बैनर लगाए गए थे. जिनमें पहली बार उद्धव की पत्नी रश्मी और बेटे तेजस की तस्वीरें थीं. इन लोगों ने अभी तक औपचारिक तौर पर शिव सेना में एंट्री नहीं की है लेकिन माना जा रहा है कि उनको भी राजनीति में लाने की खातिर जमीन तैयार की जा रही है. इस साल की शुरूवात में जब उद्धव ठाकरे की तबियत खराब चल रही था तब इस बात की चर्चा गर्म थी कि उद्धव मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे सकते हैं और उनकी जगह रश्मी ठाकरे मुख्यमंत्री बन सकते हैं.


हालांकि रश्मि भले ही राजनीति में सक्रिय न हों लेकिन सियासी हलचलों पर उनकी पैनी नजर रहती है. 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद उन्होंने उद्धव को मुख्यमंत्री पद स्वीकारने के लिये राजी किया था. उद्धव के मुख्यमंत्री बनने के बाद रश्मि को पार्टी के मुखपत्र सामना का संपादक बनाया गया था. जल्द ही मुंबई महानगरपालिका के चुनाव होने वाले हैं और हो सकता है कि चुनाव प्रचार के दौरान कई नये ठाकरे वोट मांगते नजर आयें. 


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