पुणे पोर्श केस: कोर्ट ने नाबालिग आरोपी के पिता और दादा को इस मामले में दी जमानत
Pune Porsche Car Accident: पोर्श कार हादसे में पुणे की अदालत ने परिवार के ड्राइवर के अपहरण, गलत तरीके से बंधक बनाने के मामले में नाबालिग के पिता और दादा को जमानत दी है.
Pune Porsche Car Accident Case: पुणे पोर्श केस में पुणे की अदालत ने नाबालिग के पिता और दादा को जमानत दे दी है. अदालत ने सुरेंद्र अग्रवाल और विशाल अग्रवाल को जमानत दे दी. ये जमानत परिवार के ड्राइवर के अपहरण, गलत तरीके से बंधक बनाने के मामले में दी गई है. ऐसा आरोप था कि इन्होंने पीड़ित ड्राइवर को धमका कर यह जिम्मेदारी लेने के लिए कहा था कि दुर्घटना के वक्त वह गाड़ी ड्राइव कर रहा था.
एक न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी) ने 17 वर्षीय नाबालिग के पिता बिल्डर विशाल अग्रवाल और उसके दादा को जमानत दी, जिन्हें मई के अंत में गिरफ्तार किया गया था. हालांकि, नाबालिग के पिता विशाल अग्रवाल अभी भी जेल में रहेंग क्योंकि उन पर पत्नी के साथ ब्लड के नमूने में हेराफेरी के एक अन्य मामले का आरोप है.
पुलिस के अनुसार नाबालिग के पिता और दादा ने कथित तौर पर फैमिली ड्राइवर का अपहरण कर लिया था. दुर्घटना के कुछ घंटों बाद 19 मई को रात 11 बजे पुलिस स्टेशन से निकलने के बाद उन्हें गलत तरीके से अपने बंगले में कैद कर लिया और उन्हें यह स्वीकार करने के लिए मजबूर करने की कोशिश की कि जब दुर्घटना हुई तो गाड़ी वह चला रहा था, न कि नाबालिग.
19 मई 2024 की सुबह शराब के नशे में कार चला रहे नाबालिग ने पुणे के कल्याणी नगर इलाके में एक बाइक को टक्कर मार दी थी, जिससे दो इंजीनियरों की मौत हो गई थी. यह महंगी और लग्जरी कार नाबालिग आरोपी के पिता की थी, जो रियल एस्टेट कारोबारी हैं. बचाव पक्ष के वकील प्रशांत पाटिल ने कहा, ''उनके मुवक्किलों को कथित अपहरण और गलत तरीके से बंधक बनाने के मामले में अदालत ने जमानत दे दी है. मेरे क्लाइंट जांच एजेंसी के साथ सहयोग करेंगे और अदालत की कड़ी (जमानत) शर्तों का पालन करेंगे.
बिल्डर पर 'अभिभावक के रूप में अपना कर्तव्य निभाने में विफल' होने के लिए मोटर वाहन अधिनियम (एमवीए) और किशोर न्याय अधिनियम (जेजेए) की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. 25 जून को, बॉम्बे हाई कोर्ट ने निर्देश दिया था कि नाबालिग लड़के को रिहा किया जाए. कोर्ट ने कहा था कि उसकी हिरासत पर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) का आदेश अवैध था.
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