Pune News: जब राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता शिक्षक दत्तात्रेय वारे का तबादला जलिंदरनगर के सरकारी स्कूल में किया गया था, तब वहां केवल 13 छात्र थे. कुछ महीनों बाद ही यह संख्या 80 को पार कर गई. पुणे जिले के एक दूरदराज के इलाके में स्थित एक ‘‘जेडपी स्कूल’’ में एक शिक्षक ने बड़ा परिवर्तन ला दिया है. अब इस स्कूल में सुसज्जित प्रयोगशाला, एक पुस्तकालय, लैपटॉप और यहां तक ​​कि अन्य शैक्षिक सहायता के बीच वर्चुअल रियलिटी (वीआर) चश्मे भी हैं. 2012 में पुणे जिले की शिरूर तहसील के वाबलवाड़ी में इस स्कूल का कार्यभार संभालने के बाद जिला परिषद (जिप) के शिक्षक वारे की ख्याति बढ़ गई है. उन्होंने बुनियादी ढांचे को उन्नत किया और नवीन शिक्षण विधियों की शुरुआत की. स्कूल में रोबोटिक्स और विदेशी भाषाओं में भी पढ़ाना शुरू कर दिया गया है.


स्कूल तक पहुंचने को नहीं था उचित मार्ग


2016 में, वारे ने उत्कृष्ट शिक्षक का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता, लेकिन पांच साल बाद उन्हें वित्तीय हेरफेर और पद के दुरुपयोग के आरोपों का सामना करना पड़ा और उन्हें निलंबित कर दिया गया. इस साल फरवरी में उनका निलंबन रद्द कर दिया गया, लेकिन उन्हें खेड़ तहसील के गांव जलिंदरनगर में स्थानांतरित कर दिया गया. वहां के प्राथमिक विद्यालय की हालत खस्ता थी. उन्होंने कहा कि केवल 13 बच्चे और एक शिक्षक था. स्कूल तक पहुंचने के लिए उचित मार्ग भी नहीं था. उन्होंने कहा, ‘‘जिस तरह से मुझे निलंबित किया गया, उससे मैं स्तब्ध और निराश था. लेकिन जब मैंने इस स्कूल में प्रवेश लिया, तो मैंने इसे बदलने का फैसला किया.’’ वारे ने अपनी योजनाओं के बारे में हेडमास्टर संदीप म्हासुगदे से सलाह ली. वारे के शामिल होने तक, म्हासुगदे स्कूल में एकमात्र शिक्षक थे.


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लोगों की मदद से कराया स्कूल मरम्मत का काम


वारे ने कहा, ‘‘हमने फिर स्थानीय लोगों से बात की और स्कूल के सुधार में उनकी भागीदारी की मांग की. वे वाबलवाड़ी स्कूल में हमारे काम के बारे में जानते थे, इसलिए उन्होंने उत्साह दिखाया. हमने फिर स्कूल के बुनियादी ढांचे में बदलाव लाने पर काम शुरू किया.....’’ लीक हो रही छत को आकर्षक पॉलीथिन शीट से बदल दिया गया. फर्श पर संगमरमर की टाइल्स लगाई गईं और परिसर की दीवार का निर्माण भी सरकारी धन की मदद से शुरू हुआ. उन्होंने 100 दिनों में भौतिक सुधार को पूरा करने का लक्ष्य रखा और गर्मी की छुट्टियों का उपयोग किया. उन्होंने कहा, ‘‘इस अवधि के दौरान, सभी 13 छात्रों के माता-पिता को उन्हें रोजाना स्कूल भेजने के लिए राजी किया गया. हमने उनकी शैक्षणिक तैयारी पर काम किया, लैपटॉप का उपयोग करना शुरू किया, उन्हें एनीमेशन सिखाने के लिए वीआर गॉगल्स और स्क्रैच सॉफ्टवेयर पेश किया.’’ उन्होंने छात्रों के बीच विदेशी भाषाओं में रुचि पैदा करने के लिए बुनियादी फ्रेंच और जापानी भाषा के पाठ भी पेश किए.


एडमिशन चाहने वाले बच्चों की संख्या अचानक बढ़ी


जल्द ही, जलिंदरनगर जिला परिषद स्कूल के बारे में बात फैल गई. वारे ने कहा, ‘‘जून में जब तक हमने नए शैक्षणिक वर्ष के लिए स्कूल खोला, तब तक 150 से अधिक छात्र प्रवेश मांग रहे थे.’’ वारे ने कहा कि खंड शिक्षा अधिकारी जीवन कोकाने ने जलिंदरनगर में उन्हें नयी पारी शुरू करने में प्रोत्साहित किया. उनके सहयोगी म्हासुगदे ने कहा कि छात्रों की कमी के कारण 2018 में स्कूल बंद होने की कगार पर था. उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं यहां आया तो वहां केवल तीन छात्र थे. मैंने ईंट भट्ठा कर्मियों से अपने बच्चों को स्कूल भेजने की अपील करके संख्या बढ़ाकर 13 कर दी.’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब वारे ‘गुरुजी’ का यहां स्थानांतरण हुआ तो हमें खुशी हुई. उनके अनुभव से स्कूल को काफी फायदा हो रहा है.’’ कोकाने ने भी वारे और म्हासुगदे के प्रयासों की सराहना की.


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