भड़काऊ भाषण मामले में कोर्ट ने एमएनएस चीफ राज ठाकरे को बड़ी राहत दी है. बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने कहा कि कथित भड़काऊ भाषण और उकसावे को लेकर कोई सबूत नहीं है. कोर्ट ने ये कहते हुए राज ठाकरे के खिलाफ केस को खारिज कर दिया. 16 साल पुराने मामले में निचली अदालत ने राज ठाकरे को बरी करने की याचिका को खारिज कर दिया था. इस आदेश को राज ठाकरे ने चुनौती दी.
इसी पर औरंगाबाद की बेंच सुनवाई कर रही थी. कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत महत्वपूर्ण बिंदुओं को समझने में विफल रही, इस वजह से राज ठाकरे को आरोपमुक्ति की याचिका को खारिज कर दिया.
2008 का है मामला
दरअसल, यह मामला 21 अक्टूबर 2008 का है, जिसमें मनसे कार्यकर्ताओं पर तत्कालीन उस्मानाबाद (धाराशिव) जिले में एसटी बसों पर पथराव करने का आरोप लगाया गया था. 2008 में राज ठाकरे ने आरोप लगाया कि बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी श्रमिकों ने महाराष्ट्र में लोगों से नौकरियां छीन ली हैं. उन पर पार्टी कार्यकर्ताओं को उकसाने का मामला दर्ज किया गया था, जिन्होंने मुंबई में रेलवे प्रवेश परीक्षा में शामिल होने वाले कुछ उत्तर भारतीय उम्मीदवारों की पिटाई की थी.
इसके बाद महाराष्ट्र में राज ठाकरे रिहाई को लेकर छिटपुट घटनाएं हुईं, हालांकि जल्द ही राज ठाकरे को रिहा कर दिया गया. वहीं ऐसी ही एक घटना में उनके और उनके कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था.
जांच के बाद मामले में आरोप पत्र भी दाखिल किया गया. इसके बाद, मामले में आरोपी के रूप में गिरफ्तार किए गए राज ठाकरे ने बरी करने के लिए याचिका दायर की, हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया.
वकील ने दीं ये दलीलें
राज ठाकरे का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील राजेंद्र शिरोडकर और सयाजी नांगरे ने दलील दी कि जब कथित घटना हुई तो मनसे नेता जेल में थे और घटनास्थल पर नहीं थे. वकील ने अदालत का यह निर्देश भी दिया कि अभियोजन पक्ष ने ठाकरे के कथित भड़काऊ भाषण को रिकॉर्ड में नहीं रखा था और उसे आरोप पत्र के साथ भी संलग्न नहीं किया गया था, जिसके अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने भड़काऊ भाषण दिया था.
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