Sanjay Nirupam on Shankaracharya Avimukteshwaranand Saraswati: महाराष्ट्र में राजनीतिक पारा तब हाई हो गया जब सोमवार 15 जुलाई को शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती शिवसेना यूबीटी के प्रमुख उद्धव ठाकरे के आवास मातोश्री पहुंचे और बाद में मीडिया में बयान दिया कि उद्धव ठाकरे के साथ 'छल' किया गया है. इस बात पर अब एकनाथ शिंदे की शिवसेना से नेता संजय निरुपम का बड़ा बयान आया है.
संजय निरुपम ने कहा, "शंकराचार्य हम हिन्दुओं के धर्मगुरु हैं और हमारे मन में उनके प्रति बहुत श्रद्धा और आस्था है, लेकिन जब शंकराचार्य धार्मिक और आध्यात्मिक कामकाज या धार्मिक अनुष्ठानों के अतिरिक्त राजनीतिक भाषण देते हैं तो निश्चित तौर पर इस चीज पर ऐतराज होता है. कल वह (शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती) उद्धव ठाकरे को आशीर्वाद देने के लिए मातोश्री गए थे, जो कि उनका निजी फैसला है. इस बात से ऐतराज नहीं हो सकता, लेकिन वहां से निकलने के बाद उनका राजनीतिक बयानबाजी करना गलत है."
संजय निरुपम ने कहा, "शंकराचार्य का कहना है कि उद्धव ठाकरे के साथ 'विश्वासघात' हुआ है. उनको इस बात की जानकारी नहीं है. सच बात तो यह है कि साल 2019 में शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे की हिन्दुत्व की विचारधारा के आधार पर शिवसेना और बीजेपी ने मिल कर चुनाव लड़ा. नतीजे आने के बाद उद्धव ठाकरे में मुख्यमंत्री बनने की जबरदस्त महत्वाकांक्षा जगी और उन्होंने बीजेपी को धोखा दिया. इतना ही नहीं उनहोंने हिन्दुत्व की विचारधारा के साथ भी विश्वासघात किया."
'उद्धव ने बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा को दिया धोखा'
उद्धव ठाकरे पर आरोप लगाते हुए संजय निरुपम ने कहा, "बालासाहेब ठाकरे जिस कांग्रेस के हमेशा खिलाफ रहते थे, उससे और एनसीपी से हाथ मिलाकर उद्धव ठाकरे ने ही बीजेपी को धोखा दिया और मुख्यमंत्री बन गए. यह उनका पॉलिटिकल फैसला था, जिसे विश्वासघात भी कहा जा सकता है. ऐसे में अगर शंकराचार्य विश्वासघात की बात कर रहे हैं, तो जान लें कि पहला धोखा उद्धव ठाकरे ने दिया.
'उद्धव ठाकरे के विधायकों ने ही दिया जवाब'
संजय निरुपम ने कहा, "इसकी प्रतिक्रिया देते हुए दो साल बाद उद्धव ठाकरे के विधायकों ने उनके खिलाफ विद्रोह किया और पार्टी तोड़ दी. इसी के साथ बालासाहेब ठाकरे की हिन्दुत्व की विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए बीजेपी का साथ दिया. अब उसको विश्वासघात करार दिया जा रहा है, जबकि कायदे से यह उद्धव ठाकरे की गलती थी जिसे दुरुस्त किया गया है. फिर भी, इसमें सही क्या है गलत क्या है, ये शंकराचार्य तय नहीं कर सकते. ये एक पॉलिटिकल मूवमेंट है और राजनीति के बारे में शंकराचार्य भाषण नहीं दे सकते.
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