महाराष्ट्र में चुनाव के बाद भी सियासी सरगर्मी तेज है. चुनाव में एक दूसरे के सामने आ चुके चाचा-भतीजे के साथ आने की खबर है. एनसीपी की सियासी पिक्चर अब 'हम आपके हैं कौन' से 'हम साथ साथ हैं' की तरफ बढ़ती नजर आ रही है. महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार की मां आशा पवार ने नए साल के मौके पर पंढरपुर मंदिर में पूजा की और इसके बाद जो बयान दिया उसने परिवार की सियासी एकजुटता की खबर को हवा दे दी है. आशा पवार ने पवार परिवार के एकजुट होने की बात कही.
विधानसभा नतीजों के बाद ही चर्चा ने पकड़ा जोर
दअरसल, विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद ही एनसीपी के दोनों गुटों के एक होने की चर्चा चल पड़ी थी . नए साल में खबर फिर से गर्म है . अजित पवार के करीबी पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने तो शरद पवार को 'भगवान' का दर्जा देते हुए परिवार के एक होने की वकालत की.
शरद पवार हमारे लिए भगवान- प्रफुल्ल पटेल
प्रफुल्ल पटेल ने कहा, "शरद पवार को हमेशा से हम अपना भगवान मानते हैं, भले ही हमारी राजनीतिक राहें अलग-अलग हों, लेकिन हम उनका सम्मान करते हैं और करते रहेंगे. अगर वे दोनों साथ आते हैं या पवार परिवार साथ आता है, तो हमें खुशी होगी, यह अच्छी बात है. मैं भी खुद को पवार परिवार का हिस्सा मानता हूं, इसलिए अगर वे सभी साथ आते हैं, तो मुझे भी खुशी होगी."
क्या है उद्धव ठाकरे की पार्टी का रुख?
पॉलिटिकल कॉरिडोर में इस बात की चर्चा है कि इसी महीने दोनों पार्टियां एक हो सकती हैं. शायद यही वजह है कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रही. संजय राउत ने कहा, "आपका जो प्यारा बच्चा है वो डरकर बीजेपी के पास गया है. सबसे पहले माता जी को भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि मेरे बेटे में लड़ने की हिम्मत दे." वैसे पिछले महीने संजय राउत ने ही ये दावा किया था कि शरद पवार की पार्टी को तोड़ने की कोशिश हो रही है.
संसद में चाचा, विधानसभा में भतीजा मजबूत
महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी के 8 सांसद हैं. जबकि अजित पवार की एनसीपी के पास महज एक सांसद है. लोकसभा चुनाव के नतीजों से उलट विधानसभा चुनाव में अजित पवार की एनसीपी ने चाचा को मात दे दी . महाराष्ट्र की जनता ने अजित पवार की एनसीपी को ही असली एनसीपी मान लिया. ऐसे में शरद पवार की पार्टी के अंदर कुलबुलाहट भी है.
असली एनसीपी हम ही हैं- शरद गुट
शरद गुट के प्रवक्ता महेश तपासे ने कहा, "असली एनसीपी हम ही हैं. अजित पवार पार्टी छोड़कर गए. उनको चुनाव आयोग ने चिन्ह दिया. सब जानते हैं कि असली एनसीपी पवार साहब, तो हमारे जाने की बात नहीं है."
साथ आना जरूरी या मजबूरी?
अब अगले 5 साल तक न तो महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव होने हैं ना ही विधानसभा चुनाव . ऐसे में शरद पवार की पार्टी के जो विधायक सांसद हैं उनके पास विपक्ष में रहने के अलावा कोई उपाये नहीं है . ऐसे में अगर गुट साथ आते हैं तो फिर दिल्ली से मुंबई तक एनसीपी के नेता सत्ता का सुख ले पाएंगे . अगर परिवार एक होता है तो फिर शरद पवार की क्या भूमिका होगी ये देखना दिलचस्प होगा.
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