Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच मचे घमासान पर अब शिवसेना (उद्धव बाला साहेब ठाकरे) ने भी बड़ी प्रतिक्रिया दी है. पार्टी के मुख पत्र सामना में एनसीपी चीफ शरद पवार और राज्य के डिप्टी सीएम अजित पवार पर बड़ा हमला बोला गया है. सामना की संपादकीय में अजित पवार की बारामती में हुई रैली के संदर्भ में कहा गया है कि डिप्टी सीएम कह रहे हैं कि उन्हें सत्ता नहीं चाहिए. वह सत्ता नहीं बल्कि विकास और शाहू, फुले, आंबेडकर के विचारों के लिए सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ गए लेकिन उनकी यह बाते खोखली है. वह इतने सालों तक सत्ता में रहे, उन्होंने कितने विकास की योजनाएं बनाई?
सामना की संपादकीय में आरोप लगाया गया है कि भारतीय जनता पार्टी, महाराष्ट्र में धार्मिक तनाव पैदा कर सिर्फ दंगे कराना चाहती है. लोगों को लड़ाना, शाहू, फुले और आंबडेकर के विचार तो नहीं थे!
शरद पवार का सामना में जिक्र
सामना में लिखा गया कि स्कूलों में किस तरह नफरत की शिक्षा दी जा रही है, यह उत्तर प्रदेश के एक मामले से पता चलता है. शिक्षक के अनुरोध पर एक मुस्लिम छात्र को उसके सहपाठियों ने बेरहमी से पीटा. ऐसा जहर आज समाज में हर जगह फैलाया जा रहा है और यह निश्चित रूप से शाहू, फुले, अंबेडकर के विचार नहीं हैं. आज हर स्तर पर संविधान को तोड़ा जा रहा है औरतानाशाही तरीके से प्रशासन चलाया जा रहा है. इसलिए बीजेपी के साथ गए अजित पवार को खुलकर महाराष्ट्र को बताना चाहिए कि वह आंबेडकर के किस विचार को आगे ले जाना चाहते हैं
शरद पवार का जिक्र करते हुए सामना की संपादकीय में कहा गया कि अजित पवार अब तक कम से कम चार बार उपमुख्यमंत्री बन चुके हैं और ये सभी पद उन्हें शरद पवार की कृपा से ही मिले हैं. उस दौरान अजीत दादा द्वारा होम ग्राउंड पर खुद का इस तरह से स्वागत करवाना नजर नहीं आया, बल्कि उन्होंने कार्यकर्ताओं को जोर देकर कहा कि सत्कार, हार-फूल वगैरह नहीं चाहिए. काम में जुट जाना है.
चाचा की मेहनत पर डाला डाका
अजित पवार के बयान पर सामना में कहा गया कि भाजपा जो लिखकर देगी उसी एजेंडे पर उन्हें काम करना है और शाहू-फुले-आंबेडकर के विचार उस एजेंडे में नहीं हैं.
लिखा गया कि अजीत पवार को सत्ता की ‘हवस’, ‘भूख’ नहीं होती तो उन्होंने सीधे राजनीति से संन्यास लेकर कृषि, समाजिक कार्यों में खुद को झोंक दिया होता और यदि वे ईमानदार, स्वाभिमानी राजनीतिज्ञ होते तो चाचा की मेहनत पर ‘डाका’ डालने के बजाय खुद की नई वैश्विक पार्टी स्थापित करके अलग राजनीति की होती, लेकिन अजीत पवार को सबकुछ तैयार मिला है.