शिवसेना विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने अपना फैसला सुना दिया है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार को हटाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के समर्थन से शिंदे को शपथ दिलाना उचित फैसला था. 


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शिंदे सरकार और शिवसेना को लेकर गुत्थी और उलझ गई है. कोर्ट ने कहा है कि 16 विधायकों की अयोग्यता का मामला बड़ी बेंच के पास भेज रहे हैं, तब तक स्पीकर इस पर फैसला कर लें. कोर्ट के फैसले के बाद सियासत भी तेज हो गई है. 


उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांगा है. उनके करीबी संजय राउत ने भविष्य में एकनाथ शिंदे के सभी विधायकों की सदस्यता खत्म होने का दावा किया है.


हालांकि, कोर्ट के फैसले के बाद भी कई सवालों का जवाब आना अब भी बाकी है. मसलन, शिवसेना और सरकार में क्या बदलाव आएगा? उद्धव और एकनाथ शिंदे का क्या होगा? 


ऐसे में आइए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आसान भाषा में विस्तार से समझते हैं...


1. भगत सिंह कोश्यारी को फटकार
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में एक्शन से ज्यादा टिप्पणी है. कोर्ट ने महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को आड़े हाथ लिया है. कोर्ट ने कहा है कि राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट का जो फैसला लिया, वो गलत था.


सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए राज्यपाल के पास कोई पुख्ता आधार नहीं था. राज्यपाल ने बागी गुट की सुरक्षा की मांग को सरकार का अल्पमत मान लिया. कोर्ट ने आगे कहा- किसी पार्टी के आंतरिक गुट का समाधान फ्लोर टेस्ट बुलाना नहीं है. 


कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने यह निष्कर्ष निकालने में गलती की थी कि ठाकरे ने विधायकों के बहुमत का समर्थन खो दिया है. 


महाराष्ट्र में सियासी विवाद के बाद महाविकास अघाड़ी पहले ही राज्यपाल की भूमिका को संदिग्ध बताती रही है. कोर्ट के फैसले में राज्यपाल के खिलाफ शिवसेना के आरोप को और मजबूत कर दिया है. 


शिवसेना (ठाकरे) के नेता राउत ने कहा है कि महाराष्ट्र की जनता इस खेल को समझे. आरएसएस बैकग्राउंड से आने वाले कोश्यारी 5 सितंबर 2019 से 23 फरवरी 2023 तक महाराष्ट्र के राज्यपाल थे. 


2. उद्धव ठाकरे के पक्ष में सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे के कई दलीलों से सहमति जताई है. कोर्ट फैसले में उनके पक्ष में भी सवाल किया गया है. मसलन, विधानसभा में चीफ व्हिप की नियुक्ति. कोर्ट ने विधानसभा में शिंदे गुट के चीफ व्हिप भरत गोगावले की नियुक्ति रद्द कर दी है. 


कोर्ट ने कहा है कि चीफ व्हिप नियुक्त करते वक्त स्पीकर बगावत से वाकिफ थे, लेकिन फिर भी उन्होंने शिंदे गुट को मान्यता दे दी. कोर्ट ने कहा कि चीफ व्हिप नियुक्त करने का अधिकार राजनीतिक दलों को होता है, क्योंकि जनता के प्रति वे जवाबदेह होते हैं.


कोर्ट के फैसले में उद्धव ठाकरे के पक्ष में जिस तरह सवाल हुए हैं, उससे विधानसभा में गणित बदल जाने की उम्मीद है. फैसले के तुरंत बाद संजय राउत ने कहा है कि हमारा व्हिप अब होगा और शिंदे गुट के सभी विधायकों की सदस्यता रद्द होगी.


कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट को भी गलत बताया है, जिसे उद्धव ठाकरे ने चुनौती दी थी. हालांकि, इस्तीफा दे देने की वजह से ठाकरे गुट को कोई राहत नहीं मिली है. सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि अगर फ्लोर टेस्ट में जाते तो हम बहाल कर सकते थे.


3. शिंदे सरकार पर फिलहाल खतरा नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने एकनाथ शिंदे सरकार को बर्खास्त करने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया. ऐसी स्थिति में राज्यपाल ने सबसे बड़े दल के समर्थन से जो शपथ दिलाने का फैसला किया, वो सही था. 


अयोग्यता का मामला बड़ी बेंच में जाने और सरकार हटाने से इनकार करने के फैसले की वजह से शिंदे सरकार पर अभी कोई खतरा नहीं है. यानी महाराष्ट्र में अभी शिंदे की सरकार अनवरत चलती रहेगी. बड़ी बेंच बनाने पर चीफ जस्टिस ही फैसला करेंगे.


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि सरकार संवैधानिक तरीके से चल रही है. महाविकास अघाड़ी की साजिश आज नाकाम हो गई है. विधानसभा स्पीकर आगे का फैसला करेंगे.


अब सवालों के जरिए समझिए महाराष्ट्र की सियासत में आगे की संभावनाएं...


एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों का क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने सदस्यता रद्द करने का अधिकार विधानसभा स्पीकर को दिया है. हालांकि, कोर्ट ने फैसला लेने के लिए कोई समय सीमा नहीं निर्धारित किया है. यानी सब कुछ स्पीकर पर निर्भर करेगा. स्पीकर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. 


महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में अब डेढ़ साल का वक्त बचा हुआ है. कयास लगाए जा रहे हैं कि समय निर्धारित नहीं होने की वजह से इसे अटका सकते हैं. 


शिवसेना के भीतर किसका व्हिप मान्य होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर की ओर से नियुक्त मुख्य सचेतक (चीफ व्हिप) भरत गोगावले की नियुक्ति रद्द कर दी है. कोर्ट ने कहा है कि राजनीतिक दलों को व्हिप चुनने का आधार है. ऐसे में शिंदे और 15 विधायकों की सदस्यता मामले में सुनील प्रभु का व्हिप मान्य होगा.


आगे कौन चीफ व्हिप होगा, ये भी स्पष्ट नहीं है. कोर्ट ऑर्डर आने के बाद ही स्पीकर इस पर फाइनल फैसला कर सकते हैं. 


शिवसेना पर किसका कंट्रोल होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिंबल पर फैसला लेने का अधिकार चुनाव आयोग के पास है. चुनाव आयोग ने हाल ही में शिवसेना का सिंबल एकनाथ शिंदे को दिया था, जिसका मामला दिल्ली हाईकोर्ट में है. उद्धव गुट ने फैसला लेने के आधार को चुनौती दी है.


आयोग ने विधायकों की संख्या के आधार पर शिवसेना का सिंबल शिंदे को दे दिया था. यानी सदस्यता रद्द होने और दिल्ली हाईकोर्ट में मामला चलने तक इस पर स्पष्ट जवाब नहीं मिल सकेगा.


क्या भगत सिंह कोश्यारी पर कोई कार्रवाई होगी?
नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन राज्यपाल के फैसले पर सिर्फ सवाल उठाया है. कोर्ट ने एक्शन का कोई आदेश नहीं दिया है. कोश्यारी अब राज्यपाल भी नहीं हैं, जो उनसे नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांगा जाता. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी सिर्फ भविष्य में नजीर बनकर रह जाएगी. 


डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल का क्या होगा?
डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल के खिलाफ उस वक्त अयोग्यता पर सुनवाई कर रहे थे. शिंदे गुट का कहना था कि उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, इसलिए वे अयोग्यता पर सुनवाई नहीं कर सकते हैं.


कोर्ट ने इस मामले को बड़ी बेंच (5 से अधिक) में ट्रांसफर कर दिया है. यानी जिरवाल पर जो भी फैसला होगा, वो सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच में होगा.


क्या संसद में भी कुछ बदलेगा?
चीफ व्हिप नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर पर टिप्पणी की है. लोकसभा और राज्यसभा में भी संख्या के आधार पर शिंदे गुट को मान्यता दी गई है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या संसद में भी कुछ बदलेगा?


यह निर्भर ठाकरे गुट पर करेगा. ठाकरे गुट अगर इस आधार को बनाकर लोकसभा और राज्यसभा में आवेदन करते हैं, तो फिर कुछ फैसला हो सकता है. हालांकि, पार्टी का सिंबल अभी ठाकरे गुट के पास नहीं है. ऐसे में ठाकरे गुट की कोशिश उसे हासिल करने की हो सकती है.


कोर्ट ने तैयार किया था 11 सवाल, 2 महीने चली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में शिवसेना के सुभाष देसाई ने याचिका दाखिल की थी, जिसमें महाराष्ट्र राज्यपाल, विधानसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर, मुख्य सचिव और एकनाथ शिंदे को पक्ष बनाया गया था. कोर्ट में पहले 3 जजों की बेंच ने इस पर सुनवाई की और इसे संवैधानिक बेंच में भेज दिया. 


सितंबर में कोर्ट ने सुनवाई के लिए 11 सवाल तैयार किए थे. कोर्ट ने कहा था कि इन्हीं सवालों को आधार बनाकर सुनवाई होगी. जनवरी से मार्च तक सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने शिवसेना विवाद पर लगातार सुनवाई की. सुनवाई के मुख्य सवाल थे-



  1. क्या अविश्वास प्रस्ताव आने बाद भी स्पीकर और डिप्टी स्पीकर किसी विधायक की अयोग्यता पर फैसला कर सकता है?

  2. क्या अनुच्छेद 226 और अनुच्छेद 32 के तहत हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट किसी विधानसभा में अयोग्यता की कार्रवाई की प्रक्रिया को रोक सकती है?

  3. क्या कोई न्यायालय यह मान सकता है कि किसी सदस्य को उसके कार्यों के आधार पर स्पीकर के निर्णय की अनुपस्थिति में अयोग्य माना जाता है?

  4. सदस्यों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान सदन में कार्यवाही की क्या स्थिति है?

  5. संविधान के दसवीं अनुसूची के पैरा 3 को हटाने का क्या प्रभाव पड़ेगा? (यह सामूहिक दल बदल से संबंधित है)

  6. विधायक दल के सचेतक और सदन के नेता को निर्धारित करने के लिए स्पीकर की शक्ति का दायरा क्या है? 


कोर्ट में सुनवाई के दौरान उद्धव ठाकरे गुट से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और देवदत्त कामत ने जिरह की. शिंदे गुट से सीनियर एडवोकेट नीरज किशन कौल, सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे, सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी और सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने बहस की.


वहीं राज्यपाल और केंद्र सरकार का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता रखा. कोर्ट में सुनवाई के दौरान भी सीजेआई ने राज्यपाल की भूमिका पर तल्ख टिप्पणी की थी.