बॉम्बे हाईकोर्ट ने शिवसेना (यूबीटी) के सांसद राजन विचारे (Rajan Vichare) की सुरक्षा घटाने पर राज्य सरकार से मंगलवार को जवाब तलब किया. कोर्ट ने राज्य सरकार से उस रिपोर्ट की कॉपी कोर्ट में जमा करने के लिए कहा है, जिसके आधार पर सांसद विचारे की सुरक्षा घटाई गई है. कोर्ट का यह आदेश बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने शिवसेना (यूबीटी) के सांसद राजन विचारे की उस याचिका पर सुनवाई के बाद दी है, जिसमें विचारे ने अपनी जान को खतरा बताते हुए कोर्ट से फिर से सुरक्षा उपलब्ध कराने की अपील की थी.
सांसद विचारे ने दायर की थी याचिका
बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस एएस गडकरी और पीडी नाइक की खंडपीठ ने शिवसेना (यूबीटी) के लोकसभा सदस्य राजन विचारे की ओर से दायर याचिका पर सरकार से दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है. दरअसल, अपनी सुरक्षा घटाए जाने से चिंतित सांसद विचारे ने अपनी जान को खतरा होने का दावा करते हुए कोर्ट से सुरक्षा फिर से उपलब्ध कराने की अपील की थी. उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि उनके परिवार को गंभीर खतरा है.
सीएम और डिप्टी सीएम को प्रतिवादी बनाने पर लगी फटकार
इसके साथ ही कोर्ट ने विचारे से अपनी याचिका से प्रतिवादी पक्ष के रूप में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नाम हटाने के निर्देश दिए. कोर्ट ने विचारे को फटकार लगाते हुए कहा कि आपने शिंदे और फडणवीस को व्यक्तिगत रूप से पक्षकार बनाया है, जबकि अनुच्छेद 226 के तहत मंत्रियों को सरकारी काम के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रतिवादी नहीं बनाया जा सकता है.
कोर्ट में दोनों पक्षों ने ये दी दलील
शिवसेना सांसद राजन विचारे ने अपने वकील नितिन सातपुते के जरिए दायर अपनी याचिका में दावा किया था कि उनकी सुरक्षा के लिए तैनात दो कांस्टेबलों में से एक को पिछले पिछले वर्ष अक्टूबर में हटा दिया गया था. इसके साथ ही उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों की जान को खतरा बताते हुए अपनी सुरक्षा फिर से बहाल की जानी चाहिए. इसके जवाब में सरकारी वकील (लोक अभियोजक ) अरुणा कामत पई ने कोर्ट को बताया कि विचारे की सुरक्षा घटाई गई है. इसे पूरी तरह से नहीं हटाई गई है. उन्होंने कहा कि पहले दो पुलिसकर्मी दिन के दौरान और दो रात के दौरान सांसद विचारे के परिवार की सुरक्षा में तैनात थे, जिसे कम कर दिया गया है, पूरी तरह से हटाया नहीं गया है, जैसा कि वे दावा कर रहे हैं. इस पर कोर्ट ने लोक अभियोजक पई को निर्देश दिया कि वह सरकार की दलील को एक हलफनामे के रूप में जमा कराए. इसके साथ ही वह रिपोर्ट भी कोर्ट को सौंपे, जिसके आधार पर यह फैसला लिया गया है.
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