Shiv Sena Party Symbol: बहुमत परीक्षण से पहले ठाकरे का इस्तीफा अहम मुद्दा, सुप्रीम कोर्ट में शिंदे गुट की दलील
Maharashtra Political Crisis: शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे की दलील पूरी हो चुकी है. वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल की दलील जारी है. दो वकीलों की बहस अभी बाकी है.
Maharashtra Politics: देश के साथ-साथ महाराष्ट्र भी यह जानने का इंतजार कर रहा है कि राज्य में चल रहे सत्ता संघर्ष पर सात जजों की संविधान पीठ कब फैसला करेगी या पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई होगी. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में इस पर जोरदार बहस चल रही है. आज बहुमत परीक्षण से पहले उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के मुद्दे पर शिंदे गुट ने उंगली उठा दी है. शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे की दलील पूरी हो चुकी है. वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल की दलील जारी है. दो वकीलों की बहस अभी बाकी है. ऐसे में देखना होगा कि क्या आज बहस पूरी हो पाती है या नहीं.
वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल ने कहा?
अगर उद्धव ठाकरे ने बहुमत परीक्षण का सामना किया होता तो कुछ सवाल उठ सकते थे. लेकिन अब अगर उनका इस्तीफा अमान्य करार दिया जाता है तो यह चर्चा सार्थक होगी. एबीपी मांझा में छपी एक खबर के अनुसार, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने तर्क दिया है कि उद्धव ठाकरे द्वारा बुलाई गई बैठक का कोई मतलब नहीं है. इसलिए अयोग्यता के नोटिस का जवाब देने के लिए कम समय था. हमें सात दिन मिले हैं. विधायक के घर पर हुए हमले को लेकर हमने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. शिवसेना के जिस धड़े के पास बहुमत नहीं था. हमारी नाराजगी पार्टी नेतृत्व से है. वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल ने कहा, इसलिए दलबदल पार्टी के भीतर नाराजगी का मुद्दा है.
वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे की दलील
दल-बदल कानून से देश में दल-बदल नहीं रुका है.
कानून दलबदल के लिए है, असहमति के लिए नहीं.
दल-बदल कानून से देश में दल-बदल नहीं रुका है.
अगर राबिया मामले का हवाला देना उचित नहीं है तो विपक्षी दलों को याचिका वापस लेनी होगी.
21 जून को विपक्षी दलों के बीच नेतृत्व पद को लेकर खींचतान चल रही थी.
उप-राष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया, लेकिन उसे पेश नहीं किया जा सका.
उपाध्यक्ष ने काम करना जारी रखा.
अविश्वास प्रस्ताव के बाद भी उपराष्ट्रपति द्वारा सदस्यों को निरर्हता की सूचना.
उस समय उपराष्ट्रपति द्वारा लिए गए निर्णय अवैध थे.
नोटिस का जवाब देने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया.
उद्धव ठाकरे के पास बहुमत साबित करने के लिए 30 जून तक का समय था.
समय होने पर भी उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया?
इसलिए उद्धव ठाकरे द्वारा बुलाई गई बैठक का कोई मतलब नहीं है.
माविया के 288 में से 173 विधायक थे, केवल 16 को अयोग्य घोषित किया तो 16 विधायकों की वजह से सरकार नहीं गिरी.
उद्धव ठाकरे ने खुद स्थिति को समझा और इस्तीफा दे दिया.
अन्य 22 विधायकों को अयोग्य घोषित किया जाना था.
उसके लिए एक याचिका भी दायर की गई थी.