Maharashtra News: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र के पातुर नगर परिषद के उर्दू साइनबोर्ड को हटाने की मांग करने वाली याचिका पर आपत्ति जाहिर की. दरअसल, साइनबोर्ड पर नगर निकाय का नाम मराठी के साथ उर्दू में भी लिखा हुआ था, जिसे हटाने के लिए याचिका दाखिल की गई थी. 


वहीं जस्टिस सुधांशु धूलिया और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने कहा, "उर्दू से आपको दिक्कत क्या है? इसे समझना होगा कि यह आठवीं अनुसूची की भाषा है. नगर निकाय ने इसे पूरे राज्य पर लागू नहीं किया है. हो सकता है कि उस इलाके में सिर्फ वही खास भाषा समझी जाती हो."


पीठ ने आगे कहा, "उर्दू भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं में से एक है और साइनबोर्ड में उर्दू को लेकर किसी को कोई समस्या नहीं होनी चाहिए, खासकर उन इलाकों में जहां उर्दू बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है."


दरअसल, जस्टिस सुधांशु धूलिया जस्टिस अमानुल्लाह की बेंच बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने कहा था कि महाराष्ट्र की आधिकारिक भाषा के साथ किसी दूसरी भाषा में नगर परिषद के साइनबोर्ड लगाने पर कोई पाबंदी नहीं है. इस याचिका को जस्टिस अविनाश घरोटे और एम एस जावलकर की खंडपीठ ने 10 अप्रैल को खारिज कर दिया था.


इस मामले में याचिकाकर्ता वर्षा बागड़े ने कहा था कि अधिनियम के प्रावधानों का मतलब यह है कि केवल मराठी ही आधिकारिक भाषा होगी और किसी अन्य भाषा की अनुमति नहीं है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अधिनियम के प्रावधान केवल यह सुनिश्चित करते हैं कि परिषद का व्यवसाय और मामले मराठी में संचालित हों. जहां तक ​​साइनबोर्ड के निर्माण और नगरपालिका परिषद के नाम के प्रदर्शन का सवाल है, यह नाम प्रदर्शित करने के लिए, मराठी में नाम प्रदर्शित करने के अलावा, किसी अतिरिक्त भाषा के उपयोग पर रोक नहीं लगाता है.