Supreme Court on Shiv Sena MLAs Disqualification case: उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को सोमवार को निर्देश दिया कि वह मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके प्रति वफादार शिवसेना विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर फैसले के लिए समय-सीमा के बारे में एक सप्ताह के भीतर बताएं. न्यायालय ने कहा कि उचित समय के भीतर याचिकाओं पर निर्णय लेने के निर्देश के बावजूद स्पष्ट रूप से अब तक कुछ भी नहीं किया गया है. शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट ने जून, 2022 में महाराष्ट्र में नई सरकार बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से हाथ मिला लिया था.


न्यायाधीश ने क्या कहा?
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘‘ऐसा अनिश्चितकाल तक नहीं चल सकता. हमें समयसीमा के बारे में बताएं.’’ उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र राजनीतिक संकट पर उच्चतम न्यायालय के 11 मई के फैसले और उचित समय-सीमा के भीतर अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करने के लिए अध्यक्ष को जारी निर्देश का उल्लेख किया. पीठ ने कहा कि अध्यक्ष को उच्चतम न्यायालय की गरिमा का सम्मान करना होगा और उसके फैसले का पालन करना होगा.


समयसीमा को लेकर कही गई ये बात
पीठ ने कहा कि अध्यक्ष ‘‘संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत एक न्यायाधिकरण’’ है और एक न्यायाधिकरण के रूप में, वह अदालत के अधिकार क्षेत्र के प्रति उत्तरदायी है. उसने कहा कि 11 मई के फैसले के बाद लंबित अयोग्यता याचिकाओं के बारे में कुछ नहीं किया गया है. पीठ ने कहा, ‘‘अब हम निर्देश देते हैं कि कार्यवाही पूरी करने के लिए एक समय सीमा निर्धारित करते हुए अध्यक्ष द्वारा एक सप्ताह के भीतर प्रक्रियात्मक निर्देश जारी किए जायें. सॉलिसिटर जनरल अदालत को कार्यवाही के निपटारे के लिए निर्धारित समयसीमा के बारे में सूचित करेंगे.’’


अदालत ने सॉलिसिटर जनरल से शिंदे गुट के विधायकों सहित 56 विधायकों की अयोग्यता की याचिकाओं पर फैसला करने के लिए अध्यक्ष द्वारा तय की जाने वाली समयसीमा से पीठ को अवगत कराने को कहा. इसने विधानसभा अध्यक्ष की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से अयोग्यता याचिकाओं के निपटारे के लिए अध्यक्ष द्वारा निर्धारित की गई समय सीमा के बारे में सूचित करने को कहा. पीठ ने कहा, ‘‘हम उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के प्रति सम्मान की उम्मीद करते हैं.’’


क्या बोले कपिल सिब्बल?
शुरुआत में, उद्धव ठाकरे गुट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता देने संबंधी निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली अलग याचिका पर बाद में सुनवाई हो सकती है. उन्होंने उस याचिका पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया जिसमें अध्यक्ष को ठाकरे गुट की अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है और आरोप लगाया कि राज्य में एक अवैध सरकार सत्ता में है.


सॉलिसिटर जनरल ने दलीलों का विरोध किया और कहा कि उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष के पद का उपहास किया है, जो एक संवैधानिक पद है. उन्होंने कहा, ‘‘जिस उपहासपूर्ण तरीके से इसे प्रस्तुत किया गया है, वह हमें पसंद नहीं है. मुझे नियमों के अनुसार चलना होगा. वे उन दस्तावेजों को प्रसारित क्यों नहीं कर रहे हैं, जो उनके बीच हैं. मैं एक निर्णायक प्राधिकारी हूं.’’ पीठ ने कहा, ‘‘लेकिन, फैसला उन्हें (अध्यक्ष को) करना है. वह ऐसा नहीं कर सकते...अदालत के 11 मई के फैसले के बाद अध्यक्ष ने क्या किया?’’


सिब्बल ने कहा कि ठाकरे गुट ने अयोग्यता याचिकाओं पर शीघ्र निर्णय के लिए 15 मई, 23 मई और 2 जून को तीन अभ्यावेदन दिए, लेकिन अध्यक्ष के कार्यालय से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. सिब्बल ने कहा, ‘‘फिर हमने चार जुलाई को याचिका दायर की. नोटिस 14 जुलाई को जारी किया गया. जब हमने अध्यक्ष से संपर्क किया, तो प्रत्येक विधायक के 100 जवाब थे. यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है... इन 100 मामलों में से प्रत्येक पर अलग से सुनवाई की जाएगी.’’ उद्धव ठाकरे गुट ने जुलाई में उच्चतम न्यायालय का रुख किया था और राज्य विधानसभा अध्यक्ष को अयोग्यता याचिकाओं पर समयबद्ध तरीके से शीघ्र फैसला करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था.


अविभाजित शिवसेना के मुख्य सचेतक के रूप में 2022 में शिंदे और अन्य विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर करने वाले शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के विधायक सुनील प्रभु की याचिका में आरोप लगाया गया है कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के बावजूद अध्यक्ष राहुल नार्वेकर जानबूझकर फैसले में देरी कर रहे हैं.


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