Thane News: महाराष्ट्र(Maharashtra) की एक अदालत ने 2012 के रिश्वत मामले में सहकारी समितियों के एक उप-पंजीयक (डिप्टी रजिस्ट्रार) और एक अन्य अधिकारी को 'संदेह का लाभ' देते हुए बरी कर दिया.
जिला न्यायाधीश (एसीबी कोर्ट) शैलेंद्र तांबे ने 13 अप्रैल को पारित अपने आदेश में (जिसकी एक प्रति बृहस्पतिवार को उपलब्ध कराई गई) कहा कि अभियोजन पक्ष दोनों आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को साबित करने में विफल रहा.
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि 12 फरवरी, 2012 को सहकारी समितियों के तत्कालीन उप पंजीयक महेश सालुंके-पाटिल(salunke-patil) (55) ने ठाणे में एक आवास के लिए अनुकूल सत्यापन रिपोर्ट जारी करने, और सोसाइटी की प्रबंध समिति को भंग नहीं करने के एवज में स्वयं के लिए और महिला अधिकारी विद्या देशमुख(Vidya Deshmukh) (38) के लिए साढ़े तीन लाख रुपये की मांग की थी.
पहली किश्त के रूप में एक लाख रुपये की मांग
पाटिल ने कथित तौर पर उसी दिन हाउसिंग सोसाइटी के सचिव से पहली किश्त के रूप में एक लाख रुपये की मांग की थी. अभियोजन पक्ष ने अदालत को यह भी बताया कि पाटिल ने रिश्वत स्वीकार नहीं की क्योंकि जब शिकायतकर्ता उसे पैसे देने के लिए वहां गया तो वह अपने कार्यालय में मौजूद नहीं था. आरोपियों के वकील ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल मामले से जुड़े नहीं हैं और रिश्वत का कोई भुगतान नहीं किया गया है.
न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी ने एक कागज पर लिखकर पैसे की मांग की थी, जिसे जांच अधिकारी ने जब्त नहीं किया और न ही जांच अधिकारी ने आरोपी की लिखावट का नमूना सत्यापन के लिए भेजा.
रिश्वत के मामले में नहीं जमा हुआ सीडी
अदालत ने कहा कि यह भी पाया गया कि मामले में तीन जांच अधिकारी हैं और पहले एक ने भी अभियोजन पक्ष से पूछताछ नहीं की थी. अभियोजन पक्ष ने आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में दो साल की देरी के बारे में भी नहीं बताया है. अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी ने आरोप-पत्र के साथ आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच हुई बातचीत की सीडी जमा नहीं की है.
शिकायतकर्ता और जांच अधिकारी ने बयान दिया कि जब भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) उसे पकड़ने गए तो आरोपी पाटिल अपने कार्यालय में नहीं मिला. अदालत ने दोनों आरोपियों को बरी करते हुए कहा, 'अदालत ने उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए पाया है कि आरोपी के खिलाफ रिश्वत का आरोप साबित नहीं हुआ है और शिकायतकर्ता के साक्ष्य इस संबंध में पुष्टि नहीं करते हैं.
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