(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Maharashtra: पंढरपुर के इस मंदिर में भक्त को दर्शन देने के लिए स्वंय प्रकट हुए थे श्रीकृष्ण, यहीं नाम पड़ा था विट्ठल
Maharashtra News: देवउठानी एकादशी पर हर साल यहां भगवान विट्ठल की यात्रा निकाली जाती है. कहा जाता है कि विट्ठल की यात्रा यहां पिछले 800 साल से लगातार आयोजित की जा रही है.
About Shri Vitthal Rukmini Mandir: भगवान श्री कृष्ण और उनकी बाल लीलाओं के दीवाने भारत में नहीं बल्कि जमाने भर में हैं. वैसे तो मथुरा को कृष्ण की नगरी कहा जाता है, लेकिन उनका एक प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र में भी है, जिसे श्री विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर कहा जाता है. देवउठानी एकादशी पर हर साल यहां भगवान विट्ठल की यात्रा निकाली जाती है. इस पावन अवसर पर लाखों कृष्ण भक्त भगवान विट्ठल और देवी रुक्मणि की महापूजा देखने के लिए जमा होते हैं. कहा जाता है कि विट्ठल की यात्रा यहां पिछले 800 साल से लगातार आयोजित की जा रही है. वारकरी संप्रदाय के लोग यहां यात्रा करने के लिए आते है. इस यात्रा को 'वारी देना' कहा जाता है.
यहां श्रीकृष्ण ने भक्त को दिये थे साक्षात दर्शन
कहा जाता है कि छठी सदी में पुंडलिक नाम के एक प्रसिद्ध संत हुआ करते थे, जो अपने माता-पिता के परम भक्त थे. भगवान श्रीकृष्ण उनके इष्टदेव थे. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण देवी रुकमणी के साथ प्रकट हुए और संत पुंडलिक से कहा कि भक्त हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं. संत पुंडलिक ने उनकी तरफ देखा और कहा कि मेरे पिताजी सो रहे हैं आप कुछ देर प्रतीक्षा करें. यह कहकर पुंडलिक पुन: अपने पिता के पैर दबाने लगे. भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्त की आज्ञा का पालन किया और कमर पर दोनों हाथ रखकर खड़े हो गए.
भगवान श्रीकृष्ण का यही स्वरूप विट्ठल कहलाया. आगे चलकर इसी पवित्र स्थान का नाम पुंडलिकपुर या पंढरपुर पड़ा, जो महाराष्ट्र के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है. संत पुंडलिक को वारकरी संप्रदायक का संस्थापक माना जाता है. इस संप्रदाय के लोग भगवान विट्ठल की पूजा करते हैं. इस मंदिर में संत पुंडलिक का स्मारक भी बना हुआ है और इस घटना की याद में ही यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है.
मंदिर का इतिहास
चूंकि श्रीकृष्ण को विठोबा भी कहते हैं, इसलिए श्री विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर विठोबा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर के किनारे भीमा नदी है. ऐसी मान्यता है कि इस नदी में स्नान करने से भक्तों के सारे पाप धुल जाते हैं. मंदिर के प्रवेश द्वार पर भक्त चोखामेला की समाधि है. मंदिर के परिसर में रुक्मणिजी, बलरामजी, सत्यभामा, जांबवती तथा श्रीराधा के भी मंदिर हैं. कहा जाता है कि विजयनगर साम्राज्य के प्रसिद्ध राजा कृष्णदेव विट्ठल की मूर्ति को अपने साथ ले गए थे, लेकिन बाद में वे इसे वापस ले आए और इसे दोबारा स्थापित किया.
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