Maharashtra News: महाराष्ट्र के ठाणे जिले में एक मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (Tribunal) ने साल 2007 में एक बस दुर्घटना में अपनी जान गंवाने वाली एक महिला मछली विक्रेता के बेटे को 4.66 लाख रुपए का मुआवजा (compensation) देने का आदेश दिया है. ट्रिब्युनल ने यह आदेश 22 जनवरी को दिया था जिसकी प्रति सोमवार को सार्वजनिक की गई. कल्याण स्थित इस ट्रिब्यूनल के सदस्य अमोल डी हार्ने ने बस मालिक और एक बीमा कंपनी को याचिका की तारीख से 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ इस राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया.
महिला के बेटे ने 2009 में दायर की थी याचिका
बता दें कि साल 2009 में दिवा निवासी गुरुनाथ पंडित पाटिल ने याचिका दायर कर कहा था कि उसकी मां यमुनाबाई की 25 मार्च 2007 में एक बस में यात्रा करने के दौरान मौत हो गई थी. पाटिल ने कहा कि उसकी मां जिस बस में बैठी थी उसका एक पहिया कल्याण में एक गड्ढे में फंस गया था जिससे वह बस हादेसे का शिकार हो गई थी. उस दौरान पाटिल ने मुआवजे के तौर पर यह कहते हुए चार लाख रुपए की मांग की थी कि उसकी मां प्रति माह मछली बेचकर 6 हजार रुपए कमाती थी.
बीमा कंपनी ने कर दिया था मुआवजा देने से मना
हालांकि पाटिल की याचिका पर बीमा कंपनी ने ट्रिब्यूनल में तर्क दिया था कि बस के दोनों मालिकों (जिसमें से एक दुर्घटना के बाद बस को खरीदने वाला शख्स) में से कोई भी उसके सामने पेश नहीं हुआ. इसके अलावा बीमा कंपनी ने कहा था कि वह इस पैसे का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं क्योंकि बस ड्राइवर के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था जो कि बीमा के नियमों का उल्लंघन था.
प्राधिकरण ने बीमा कंपनी को दिया मुआवजे की रकम अदा करने का निर्देश
इसके बाद प्राधिकरण ने पाया कि बस के ड्राइवर की गलती थी और वह इस मुआवजे को देने के लिए उत्तरादायी था. इसके बाद ट्रिब्यूनल ने कहा कि गाड़ी की आरसी बताती है कि गाड़ी का पुराना मालिक इसका आधिकारिक मालिक है, इसलिए उसे इस मुआवजे की राशि को देना चाहिए. ट्रिब्युनल ने यह भी कहा कि नए मालिक का इस एक्सिडेंट से कोई लेना देना नहीं है इसलिए वह मुआवजा देने के लिए उत्तरादायी नहीं है. ट्रिब्यूनल ने यह भी पाया कि दावेदार का दावा पिछले बस मालिक और बीमाकर्ता के बीच बीमा पॉलिसी की शर्तों से संबंधित नहीं था.
सभी तथ्यों पर गौर करने के बाद ट्रिब्युनल ने कहा कि याचिकाकर्ता को मुआवजे के लाभ से वंचिंत नहीं किया जा सकता हैं साथ ही केवल बस मालिक को पूरा मुआवजा देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. इसलिए यह बीमाकर्ता की जिम्मेदारी है कि वह याचिकाकर्ता को मुआवजे की रकम अदा करे और वह चाहे तो इसकी आधी रकम वाहन के पिछले मालिक से वसूल सकता है.
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