Maharashtra News: महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को शुक्रवार को तब बड़ा झटका लगा जब चुनाव आयोग (Election Commission) ने एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) गुट को असली शिवसेना (Shiv Sena ) मानते हुए उन्हें शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न तीर-कमान का इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी. इसी के साथ उद्धव ठाकरे परिवार से 57 साल बाद शिवसेना का नाम और उसका प्रतीक छीन लिया गया. हालांकि, उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) गुट ने इस फैसले को अलोकतांत्रिक बताते हुए कहा है कि वह इस पर मुद्दे पर कानूनी लड़ाई लड़ते हुए आगे बढ़ेगी.
10 प्वाइंट में आपको समझाते हैं कि आखिरकार यह विवाद कब और कैसे उत्पन्न हुआ...
- दरअसल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंके लंबे समय से शिवसेना का हिस्सा थे. लगभग 40 सालों तक उन्होंने शिवसेना के लिए काम किया.
- पिछले साल जून में उन्होंने शिवसेना में बगावत कर दी और पार्टी के कुछ विधायकों और सांसदों को तोड़कर बीजेपी के साथ गठबंधन कर महाराष्ट्र में सरकार बना ली और मुख्यमंत्री बन गए.
- इस बगावत के बाद उद्धव ठाकरे की सरकार अल्पमत में आ गई और उद्धव ठाकरे को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.
- . इसके बाद शिवसेना दो गुटों शिंदे गुट और उद्धव ठाकरे गुट में बंट गई और यहीं से दोनों गुटों के बीच शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न का इस्तेमाल करने को लेकर विवाद शुरू हुआ.
- .दोनों गुटों ने खुद को असली शिवसैनिक बताते हुए चुनाव आयोग से इस विवाद को निपटाने की गुहार लगाई.
- .मामले के निपटारे तक चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को पार्टी के नाम के तौर पर 'बालासाहेबंची शिवसेना' और दो तलवारों और ढालों का चुनाव चिह्न दे दिया. वहीं उद्धव ठाकरे गुट को माशाल (ज्वलंत मशाल) का प्रतीक और पार्टी के नाम के तौर पर 'उद्धव बालासाहेब ठाकरे' नाम दिया.
- .लगभग आठ महीने तक चले इस विवाद पर 17 फरवरी को चुनाव आयोग ने बड़ा फैसला लेते हुए शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न शिंदे गुट को सौंप दिया.
- .चुनाव आयोग के इस फैसले को सीएम एकनाथ शिंदे ने लोकतंत्र की जीत बताया, वहीं उद्धव गुट ने चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मन बना लिया है.
- . उद्धव गुट की ओर से आज ही इस फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में एक ऑनलाइन अर्जी दाखिल की जाने वाली है.
- .वहीं शिंदे गुट पहले ही सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर चुका है, जिसमें कहा गया है कि कोर्ट इस मसले पर फैसला लेने से पहले उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दे.
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