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Maharashtra: 'राज ठाकरे का घर राजनीतिक कैफे', सीएम फडणवीस से मुलाकत पर उद्धव गुट का तंज

Maharashtra Politics: शिवसेना यूबीटी ने 'सामना' में कहा कि BJP के अन्य नेता भी नियमित रूप से राज ठाकरे के घर चाय-पान के लिए आते-जाते रहते हैं. मनसे प्रमुख का आवास अब एक राजनीतिक 'कैफे' बन गया है.

Maharashtra News: महाराष्ट्र में बालासाहेब ठाकरे के स्मारक पर चर्चा करने के लिए सोमवार को शिवसेना नेता सुभाष देसाई, अंबादास दानवे और मिलिंद नार्वेकर ने एक प्रतिनिधिमंडल के तौर पर मुख्यमंत्री फडणवीस से मुलाकात की, जिसके बाद इस दौरे की खूब चर्चा हुई. सियासी गलियारों से लेकर न्यूज चैनलों में सनसनी फैली कि पर्दे के पीछे जरूर कुछ पक रहा है. ऐसे में अब शिवसेना यूबीटी के मुखपत्र 'सामना' में इन अटकलों पर  जमकर हमला बोला गया है. 

सामना में शिवसेना ने लिखा कि बालासाहेब ठाकरे का स्मारक सरकार द्वारा बनाया जा रहा है इसलिए सरकारी मुलाकातें भी होंगी. विपक्षी नेताओं को मुख्यमंत्री से मिलने पर रोक नहीं है. उसी दिन मुख्यमंत्री फडणवीस खुद राज ठाकरे से मिलने शिवाजी पार्क गए. उस मुलाकात के बारे में भी तर्क-वितर्क किया गया. बता दें फडणवीस-राज की यह कोई पहली मुलाकात नहीं थी. बीजेपी के अन्य नेता भी नियमित रूप से राज के घर चाय-पान के लिए आते-जाते रहते हैं. मनसे प्रमुख का आवास अब एक राजनीतिक 'कैफे' बन गया है.

उद्धव गुट का BJP नेताओं पर तंज
मुखपत्र में किया गया कि बीजेपी के शेलार, लाड आदि जैसे वरिष्ठ नेताओं ने उस कैफे में सीटें आरक्षित कर रखी हैं, लेकिन जब मुख्यमंत्री जाकर कहते हैं कि वह नाश्ते के लिए गए थे तो कैफे का महत्व बढ़ जाता है. असल में इसमें आश्चर्य क्या है कि मुख्यमंत्री चले गए? बीजेपी और राज की मनसे पार्टी का 'तन-मन-धन' गठबंधन है इसलिए मुख्यमंत्री वहां गठबंधन के दलों से संवाद करने गए होंगे. जब शिवसेना-बीपेपी का गठबंधन था, तब भी मुख्यमंत्री चाय-पान के लिए 'मातोश्री' आते थे, लेकिन अब जब राजनीति गुस्से और ईर्ष्या से जल रही है इसलिए कौन किसके पास जाता है और चाय-पानी करता है, इस पर मीडिया के कैमरे को रोक रखा है.

सामना में लिखा गया कि पिछले दिनों शरद पवार ने बड़े आकार के अनार वाले किसानों के साथ प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की और इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन वालों को भी साथ ले लिया. यानी अनारवालों के निमित्त साहित्य सम्मेलन के लोगों का भी उद्धार हो गया फिर भी शरद पवार ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की और दोनों के बीच क्या पक रहा है, इसकी चर्चा ही छिड़ गई. हालांकि, इस पर कोई प्रतिबंध नहीं है कि कौन किससे मिल सकता है, लेकिन केंद्र में मोदी-शाह और महाराष्ट्र में फडणवीस-शिंदे सरकार आने के बाद से राजनीति में खुलापन खत्म हो गया है. 

'नेताओं की मुलाकातें खुलेआम होनी चाहिए'
मुखपत्र में कहा गया कि सत्ता पक्ष और विपक्ष का व्यवहार ऐसा होने लगा मानो वे एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन हों, जो लोकतंत्र की पहचान नहीं है. पंडित नेहरू के मंत्रिमंडल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जैसे नेता थे और वे कांग्रेसी नहीं थे, लेकिन वे देश की आवश्यकता के रूप में नेहरू के मंत्रिमंडल में शामिल हुए. नेताओं की मुलाकातें खुलेआम होनी चाहिए. आज के डिजिटल युग में कोई भी बात छुप नहीं सकती. संतों ने कहा है कि "उजाले में पुण्य है, अंधेरे में पाप है." महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार को गिराने के लिए रात 12 बजे के बाद चेहरे पर मेकअप लगाकर देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे लैंप पोस्ट के नीचे मीटिंग कर रहे थे.

सामना में दावा किया गया कि इस बात का खुलासा खुद अमृता फडणवीस ने किया. शिवसेना को तोड़ने के लिए उस दौरान शिंदे रात-बेरात दिल्ली आकर अमित शाह से मिलते थे. राजनीति में ऐसी मुलाकातों का कोई अंत नहीं है, वे होती रहती हैं. तो अब भी इस बात पर चर्चा क्यों करें कि कौन किससे मिलता है और क्यों? महाराष्ट्र को अब सभी स्तरों पर संकुचित नेतृत्व मिला है इसलिए उनके विचार भी संकुचित ही होंगे. यशवंतराव चव्हाण, एसएम जोशी, नानासाहेब गोरे, वसंतराव नाईक, वसंतदादा पाटील और बालासाहेब ठाकरे के बीच मतभेद थे, फिर भी उनका मिलना-जुलना और संवाद बंद नहीं हुआ.

पिछले 10 सालों में बदली महाराष्ट्र की राजनीति
यह दिलदारी विलासराव देशमुख, शरद पवार, मनोहर जोशी के समय भी दिखती रही. मातोश्री में शिवसेना प्रमुख का दरबार सभी दलों और जातियों और धर्मों के लिए खुला था, लेकिन आज महाराष्ट्र में तस्वीर क्या है? नफरत, ईर्ष्या और तोड़-फोड़ की राजनीति सुलग चुकी है और एक-दूसरे को राजनीति से हमेशा के लिए खत्म करने की हद तक पहुंच चुकी है. यह बदलाव पिछले 10 वर्षों में ज्यादा बढ़ा है. ऐसा क्यों हुआ? महाराष्ट्र में ये जहर किसने बोया? हमें एक साथ बैठकर इस पर चिंतन करने की जरूरत है.

सामना में लिखा गया कि महाराष्ट्र की राजनीति में दो पुराने सहयोगी दल शिवसेना और बीजेपी अलग हो गए और उसी दरम्यान कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना जैसी तीन अलग-अलग विचारधारा वाली पार्टियां एक साथ आर्इं. यही हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है. बीजेपी ने सत्ता खोने के द्वेष के चलते जहरीला डंक मारा. एकनाथ शिंदे को जेल का डर दिखाकर तोड़ा और अजित पवार को चक्की पीसने के लिए जेल भेजने की गर्जना देवेंद्र फडणवीस ने ही की थी. आज ये तीनों एक साथ हैं. भले ही फडणवीस-शिंदे के चेहरे अलग-अलग दिशाओं में हैं, लेकिन मजबूरी में वे एकत्र हैं.

'राजनीति में कौन किसके साथ है ये समझना मुश्किल हो गया'
राजनीति में कौन किसके साथ है ये समझना मुश्किल हो गया है और महाराष्ट्र में माहौल पहले जैसा साफ-सुथरा नहीं रह गया है. एक-दूसरे से मिलना तो दूर, बात करना यहां तक कि एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराना भी मुश्किल होता जा रहा है. यह भारत को मोदी-शाहकृत बीजेपी का उपहार है. एक तरह से देश अव्यवस्थित हो गया है इसलिए मनसे प्रमुख और फडणवीस की कैफे में मुलाकात की चर्चा होती है. मित्रपक्ष से खुलेआम मिलना भी चोरी है. क्या इसे लोकतंत्र कहा जाए?

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