Maha Vikas Aghadi News: महाराष्ट्र में महायुति की सरकार बनने जा रही है. दूसरी तरफ हार के बाद महाविकास अघाड़ी में दरारें पड़ने की संभावना दिख रही है. शिवसेना (यूबीटी) के MVA से अलग होने की अटकलें लगाई जा रही हैं. उद्धव ठाकरे के पार्टी के नेता और कार्यकर्ता एमवीए से बाहर निकालने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या ये गठबंधन अब टूट जाएगा.


लोकसभा चुनाव में शानदार जीत और उसके बाद विधानसभा चुनाव में उसी स्पीड से हार होने का बाद अब महाविकास आघाडी रहेगी या नहीं, इसे लेकर हर किसी के मन में सवाल हैं. उद्धव ठाकरे ने अपने पार्टी के हारे हुए विधायकों की बैठक बुलाई थी. बताया जा रहा है कि इस बैठक में महाविकास अघाड़ी से बाहर होने की मांग कार्यकर्ताओं ने की. 


क्या उद्धव ठाकरे पर MVA से बाहर निकलने का दबाव?


कार्यकर्ताओं का कहना है कि MVA में लड़कर भी कुछ फायदा नहीं हुआ. शिवसेना (यूबीटी) के नेता अंबादास दानवे ने कहा था कि कार्यकर्ताओं के एक वर्ग का मानना है कि पार्टी को भविष्य में अकेले चुनाव लड़ना चाहिए. हालांकि उद्धव ठाकरे के नेताओं में भी एक दूसरे के बयान पर सहमति नहीं बन पा रही है, नेता एमवीए के साथ रहने की मांग कर रहे हैं तो दूसरी तरफ कार्यकर्ता बाहर निकलने के लिए ठाकरे पर दबाव डाल रहे हैं. ऐसे में अब ठाकरे क्या कदम उठाएंगे, इस पर सबकी नजर है.


कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी का क्या कहना है?


उधर, इसी वजह से कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रही है. महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रमुख नाना पटोले और जिंतेद्र आव्हाड ने इस पर ज्यादा बात करना पसंद नहीं किया. नाना पटोले का कहना है कि हर किसी को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है.


2019 के नतीजों के बाद हुआ था MVA का गठन


एमवीए का गठन 2019 के नतीजों के बाद किया गया था, जब तत्कालीन शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद के लिए सवाल उठाए थे. इसके बाद ठाकरे ने एमवीए सरकार बनाने के लिए तत्कालीन एकजुट एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाया. 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत से शिवसेना में विभाजन हो गया. एक साल बाद अजित पवार ने एनसीपी में फूट डाल दी लेकिन अब महाविकास अघाड़ी टूटने की कगार पर है. कई नेता ये भरोसा जता रहे हैं कि आने वाले नगर निगम के चुनाव में एमवीए एक साथ चुनाव लड़ेगी.


शिवसेना (यूबीटी) के कुछ नेताओं को लगता है कि एमवीए छोड़ना और अकेले जाना ही पार्टी के लिए अच्छी बात है. अपने आधार से दोबारा जुड़ने और शिंदे की शिवसेना सेना को रोकने के लिए कार्यकर्ताओं ने एकमात्र यही तरीका अपनाने की बात की है. उनका कहना है कि शिवसेना ने हमेशा मराठी और हिंदुत्व को बढ़ावा दिया है. वहीं, कांग्रेस और एनसीपी सेक्युलर की भूमिका लेकर चले हैं, समाजवादी हैं.


बीजेपी की शानदार सफलता का श्रेय कई लोग हिंदू वोटों के एकीकरण को देते हैं, इसलिए हिंदुत्व का झंडा आगे लेकर जाने वाले उद्धव ठाकरे पर अब अपनी ही पार्टी का दबाव बढ़ते नजर आ रहा है. ऐसे में सवाल है कि क्या अब उद्धव ठाकरे सच में इस पर सोचेंगे या फिर महाविकास अघाड़ी के साथ रहेंगे?


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