Saamana Editorial Today: विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर को सुप्रीम कोर्ट से फटकार मिलने के बाद सामना संपादकीय के जरिए विधानसभा स्पीकर पर हमला किया गया है. सामना में लिखा गया है कि महाराष्ट्र में समलैंगिक तरीके से सरकार चल रही है. सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे विवाह को मानता नहीं दी है. सर्वोच्च न्यायालय को ना मानना सिर्फ मनमानी ही नहीं बल्कि दिमागी संतुलन बिगड़ जाने की निशानी है.


उद्धव की शिवसेना ने सामना से बोला हमला
सामना में कहा गया है कि, बेईमानों की सरकार बचाना संविधान की रक्षा करना नहीं बल्कि देश के साथ विश्वासघात करने जैसा है. देश को चलाने के लिए मोदी और शाह ने उनके लिए स्वतंत्र पर्सनल लॉ बनाया होगा, और नार्वेकर ट्रिब्यूनल इसी लॉ का इस्तेमाल कर रहे हैं. संपादकीय में आगे लिखा गया है कि पिछले 9 सालों में संसद की संप्रभुता सिर्फ नाम मात्र के लिए रह गई है. मोदी और शाह जो कहेंगे वही संप्रभुता है.


बता दें कि, शिवसेना के विधायकों की अयोग्यता के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है. कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए 30 अक्टूबर की तारीख निर्धारित की है. इसके साथ ही कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष को अयोग्यता याचिकाओं पर सुनवाई के लिए वास्तविक समय सीमा बताने का अंतिम अवसर दिया है.


लगाये ये आरोप
उद्धव की शिवसेना का कहना है कि, यह आश्चर्य की बात है कि विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर ने कहा कि विधायिका की संप्रभुता बनाए रखना मेरा कर्तव्य है. सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के विधायकों की अपात्रता के मामले में विधानसभा अध्यक्ष पर ‘ट्रिब्यूनल’ की भूमिका सौंपी है. अध्यक्ष मध्यस्थ की भूमिका में हैं और वह सुनवाई संबंधी निर्णय लेने के मामले में टाइमपास करने की नीति अपना रहे हैं. अध्यक्ष के इस ‘टाइमपास’ वेब सीरीज पर सर्वोच्च न्यायालय ने भले ही नाराजगी व्यक्त की हो लेकिन अध्यक्ष यह झुनझुना बजाते जा रहे हैं कि मैं न्यायालय का आदर करूंगा. सही समय पर फैसला लूंगा और विधायिका संप्रभु है.


राहुल नार्वेकर पर बोला हमला
राहुल नार्वेकर पर निशाना साधते हुए शिवसेना (UBT) ने कहा, एड. नार्वेकर कहते हैं कि मैं संविधान को माननेवाला व्यक्ति हूं. लेकिन पिछले कुछ दिनों के उनके बर्ताव को देखकर लगता है कि उनका संविधान से कोई भी लेना-देना नहीं है. संविधान के दसवें शेड्यूल के अनुसार, शिवसेना से फूटे 40 विधायक अपात्र हो रहे हैं और ऐसा स्पष्ट निर्देश सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए जाने के बावजूद एड. नार्वेकर संविधान को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. सर्वोच्च न्यायालय को न मानना सिर्फ मनमानी ही नहीं, बल्कि दिमागी संतुलन बिगड़ जाने की निशानी है. बेईमानों की सरकार बचाना यह संविधान की रक्षा नहीं, बल्कि देश के साथ विश्वासघात है.


नार्वेकर ट्रिब्यूनल को कानून की समझ नहीं होने के साथ-साथ वह किसी जिहादी की तरह बर्ताव कर रहे हैं. देश चलाने के लिए मोदी-शाह ने उनके लिए स्वतंत्र ‘पर्सनल लॉ’ बनाया होगा और नार्वेकर ट्रिब्यूनल इसी ‘पर्सनल लॉ’ का इस्तेमाल कर रहे हैं. विधानसभा अध्यक्ष किसी दल का नहीं होता, वह संप्रभु होता है. फिर ऐसे में नार्वेकर ट्रिब्यूनल बार-बार दिल्ली जाकर बीजेपी नेताओं से क्यों मुलाकात करते रहते हैं?


महाराष्ट्र में विधानसभा अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त ‘ट्रिब्यूनल’ वाली जिम्मेदारी तो निभा ही नहीं रहे हैं, बल्कि दूसरी ही राजनैतिक खलबली मचाकर चोरों की सरकार को संरक्षण दे रहे हैं. यह विधानमंडल की संप्रभुता न होकर एक प्रकार से अप्रतिष्ठा ही है! सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें फटकार लगाई है, लेकिन बावजूद इसके यह महाशय अपनी हेकड़ी छोड़ नहीं रहे हैं यह एक गलत संकेत है.


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