महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी में सीट बंटवारे को लेकर पेंच फंसा हुआ है. हालांकि घटक दलों का दावा है कि गठबंधन में किसी तरह की गांठ नहीं है. लेकिन नेताओं की बयानबाजी जारी है. चर्चा तो यहां तक हो गई कि उद्धव ठाकरे गठबंधन से बाहर हो जाएंगे. हालांकि कांग्रेस ने कहा कि हम सब साथ में लड़ेंगे.


वहीं शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने भी साफ किया कि वो बीजेपी से 'हाथ' नहीं मिलाएंगे. लोकसभा चुनाव में गठबंधन में ज्यादा सीटों पर लड़ने वाले उद्धव ठाकरे को कितनी सीटें मिलेंगी, इसकी तस्वीर एक-दो तीन में साफ हो जाएगी. 


इस बीच विरोधी लगातार उन पर निशाना साध रहे हैं. शिवसेना के नेता संजय निरुपण ने लोकसभा चुनाव के नतीजों का जिक्र करते हुए उद्धव ठाकरे को निशाने पर लिया और कहा है कि कांग्रेस ने उनकी नाजुक नब्ज पकड़ ली है. निरुपम की मानें तो कांग्रेस ने ठाकरे को ये आभास दिला दिया कि मराठी या शिवसेना के परंपरागत वोटों से उन्हें लोकसभा में सीटें नहीं मिली हैं.


निरुपम ने कहा, "कांग्रेस के परंपरागत वोट यानी मुस्लिम वोटर्स की वजह से शिवसेना (यूबीटी) को सीटे मिली हैं. आज कांग्रेस पार्टी ने शिवसेना के नाजुक नब्ज को पकड़ लिया है." उनके मुताबिक, सीटों की मांग को लेकर कांग्रेस उन्हें दबा रही है और वो दबना नहीं चाह रहे.


संजय निरुपम किस नाजुक नब्ज की बात कर रहे हैं?


अगर लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो ये ठाकरे के मन मुताबिक नहीं रहे. इसे आंकड़ों से समझने की जरूरत है. बीते लोकसभा चुनाव में एमवीएम में उद्धव की पार्टी ने सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था. 21 सीटों पर पार्टी ने उम्मीदवार दिए.


नतीजों में उन्हें कांग्रेस से चार कम और शरद पवार की पार्टी से एक सीट ज्यादा मिली. कांग्रेस ने जहां 13 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की, वहीं शिवसेना (यूबीटी) को 9 सीटें ही मिलीं. शरद पवार को आठ सीटों पर जीत हासिल हुई. राजनीति के जानकारों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में गठबंधन का फायदा कांग्रेस और शरद पवार को ज्यादा हुआ, ठाकरे को कम हुआ. 


हालांकि वोट शेयर के आंकड़ों को गौर करें तो शिवसेना 16.72 फीसदी और कांग्रेस को 16.92 फीसदी वोट मिले. शरद पवार की पार्टी को 10.27 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस और उद्धव गुट के वोट शेयर में मामूली अंतर है लेकिन सीटों की संख्या के लिहाज से गैप नजर आता है. 


लोकसभा चुनाव के नतीजे जब आए तो ये चर्चा हुई कि उद्धव ठाकरे को मुस्लिम वोटर्स ने वोट किया. सार्वजनिक मंच से उन्होंने भी खुद इस बात को स्वीकार किया कि हर वर्ग ने उन्हें समर्थन दिया. इसके लिए उन्होंने मुस्लिम समुदाय के वोटर्स का 'जोर' देकर धन्यवाद भी किया. मुस्लिम समुदाय को कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता रहा है. बीजेपी ने भी लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कहा कि उद्धव ठाकरे को मुसलमानों ने वोट किया.


अब सवाल है कि क्या इसकी वजह से सीट शेयरिंग में उद्धव ठाकरे पिछड़ रहे हैं. क्या लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें मिलने के बाद भी कम सीटों पर जीत पाना उनकी पार्टी के लिए समस्या बन गई है. क्या लोकसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी उनकी पार्टी को ज्यादा सीटें मिलेंगी? इस सवालों के जवाब आने बाकी हैं.


उद्धव ठाकरे को 'हिंदू फायरब्रांड' नेता के तौर पर पहचानते जाते रहे हैं. वो पहले बीजेपी के साथ थे. उनके समर्थन से बीजेपी को सीएम की कुर्सी मिली. 2019 में ठाकरे अड़ गए और दोनों दलों का गठबंधन टूट गया. कांग्रेस और शरद पवार से 'हाथ' मिलाकर उन्होंने महाविकास अघाड़ी की सरकार बनाई. ये सरकार 2022 तक चली और एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद गिर गई.


सवाल ये भी है कि क्या लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर्स उद्धव ठाकरे को वोट करेंगे? क्या फायरब्रांड नेता वाली छवि से उद्धव ठाकरे बाहर आ चुके हैं?