Lata Mangeshkar Funeral: शाहरुख खान ने दुआ के बाद मारी फूंक, जानिए इस्लाम में इसका क्या महत्व है?
हर मज़हब के अपने तौर-तरीके होते हैं और ऐसे ही इस्लाम में फूंक को भी दर्जा दिया गया है जिसमें मुसलमान ही नहीं हर धर्म के लोग अकीदा रखते हैं. जानिए - इस्लाम में फूंक के क्या मायने हैं
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Maharashtra News: लता मंगेश्कर को अंतिम श्रद्धांजलि देने पहुंचे शाहरुख खान ने दुआं के बाद फूंक मारी तो उसे लेकर कुछ लोगों में कन्फ्यूजन पैदा हो गई. सोशल मीडिया पर इसकी काफी चर्चा हो रही है. आपको बताते हैं कि इस्लाम में दुआ मांगने के बाद फूंक मारने का क्या महत्व है.
हर मजहब में इबादत, दुआ और धार्मिक अनुष्ठान के अपने-अपने तरीके होते हैं, इसी तरह से इस्लाम में किसी भी नुकसान पहुंचाने वाली चीज से महफूज करने के लिए, मुसीबत से निजात दिलाने के लिए या बेहतर सेहत और भविष्य की दुआ के लिए दम करना या फूंक मारने का तरीका आम है.
कुरान से आयत पढ़कर दम की जाती है फूंक
दरअसल, जब भी कोई मुसलमान श्रद्धा, अकीदत और मुहब्बत के साथ किसी का भला करना चाहता है तो उसे फूंक मारता है. फूंक मारना कोई मुंह से महज़ हवा मारना नहीं है, बल्कि मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र किताब कुरान से पढ़ी जाने वाली आयतें होती हैं जिनकी शिफा पर लोगों को भरोसा होता है. जब भी कोई मुसलमान फूंक मारता है तो वो उससे पहले कुरआन की आयतें पढ़ता है जो हर चीज़ की शिफा के लिए कुरान में दी गयी हैं. इसके बाद पवित्र कुरआन का पाठ करके उसके चेहरे, शरीर या बदन पर उसे फूंकता है, यह एक पवित्र काम माना जाता है.
मुसलमान ही नहीं हर धर्म के लोग फूंक पर रखते हैं अकीदा
भारत में मस्जिदों के बाहर हर धर्म के लोगों को अपने बच्चों को फूंक मरवाने का चलन बहुत पुराना है. आज भी देश के कई हिस्सों में मस्जिदों के बाहर कुछ लोग दिख जाते हैं जो अपने बच्चों के साथ होते हैं और मस्जिद से जो नमाजी निकलते हैं वो उन बच्चों को फूंक मारते हैं. यह यकीनी बात है जो लोग इस फूंक पर अकीदा रखते हैं. फूंक मारने वाले मुसलमान होते हैं, लेकिन जिनको फूंक मारी जाती है वो हर धर्म के लोग होते हैं.
क्या पार्थिव शरीर पर भी फूंक मारी जाती है?
मौटे तौर पर किसी पार्थिव शरीर पर फूंक या दम मारने की मिसाल नहीं मिलती. जब भी कोई इंसान इस दुनिया से चला जाता है तो उसके लिए दुआएं की जाती है, जिस अंदाज़ में शाहरुख खान ने हाथ उठाकर दुआ की है, वही तरीका मुसलमानों में आम है और सबसे अच्छा माना जाता है. इस दुआ दौरान गुजर जाने वाली शख्सियत की रूह की शांति की कामनाएं की जाती हैं और फातेहा (कुरआन की दुआ) और दरूद शरीफ (दुआ) पढ़ी जाती है.
एक बात गौर करने वाली है कि गुजर जाने वाली शख्सियत के लिए मांगी गई दुआ के बाद उसे फूंक का चलन इस्लाम में नहीं नहीं है, लेकिन अगर किसी ने ऐसा कर दिया तो उसको लेकर उसे लानत मलामत (दुत्कार) का भी हुक्म नहीं है. हां! इसे एक चूक मानी जा सकती है, लेकिन बुरा काम नहीं.
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