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महाराष्ट्र में बीजेपी का 'माधव' समीकरण क्या है, लोकसभा की 48 में से 45 सीटें जीतने का फॉर्मूला समझिए

देश में साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद महाराष्ट्र विधासनभा चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी माधव फॉर्मूला अपना रही है.

महाराष्ट्र में साल 2024 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने अपनी अपनी तैयारियां तेज कर दी है. एक तरफ जहां विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी ने लोकसभा व विधानसभा चुनावों में खुद को फायदा पहुंचाने के लिए एनसीपी में फूट डाली है. तो वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने भी महाविकास अघाड़ी को हराने के लिए खास रणनीति बना ली है. 

इस रणनीति के मुताबिक बीजेपी चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए 80 के दशक का माधव फार्मूला इस्तेमाल करने की तैयारी कर रही है. माधव (माधव) फॉर्मूला का मतलब है मा- माली, ध- धनगर और वा- वंजारी (बंजारा). 

दरअसल संख्या के आधार पर देखें तो महाराष्ट्र में मराठा और ओबीसी जातियों की संख्या सबसे ज्यादा है और माधव इसी ओबीसी समुदाय में आते हैं. इस राज्य में मराठा 31 फीसदी से ज्यादा हैं तो वही ओबीसी 356 उपजातियों में बंटी हुई हैं. बीजेपी फिलहाल इन्हीं दोनों समुदाय को अपने पाले में लाने की रणनीति पर काम कर रही है.

माधव समुदाय को खुश करने की कोशिश में बीजेपी 

माधव ओबीसी समुदाय में आते हैं. जिन्हें खुश करने के लिए अहमदनगर का नाम बदलकर अहिल्यानगर कर दिया गया है. बारामती गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज का नाम भी अहिल्या देवी होल्कर के नाम पर किए जाने का ऐलान किया गया है. 

माधव समीकरण महाराष्ट्र में कैसे काम करता है

दरअसल भारतीय जनता पार्टी ने 80 के दशक में ओबीसी समाज को अपने पाले में लाने के लिए‘माधव फॉर्मूला’ को आजमाया था. जिसके तहत पार्टी ने ओबीसी में प्रभावी संख्या वाले माली, धनगर और वन्जारी (बंजारा) समाज को खुश रखने के लिए कई फैसले लिए थे. पार्टी को रणनीति का फायदा भी मिला था. 

अब बीजेपी साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर माली, धनगर और वंजारी समुदाय के लोगों को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुट गई है. अहमदनगर का नाम बदलकर अहिल्यादेवी होल्कर रखने के पीछे का कारण भी यही माना जा रहा है. धनगर समुदाय अहिल्यादेवी होल्कर को भगवान की तरह पूजते है.

कितने सीटों पर है इस समुदायों का प्रभाव  

इस समुदाय के ज्यादातर लोग कोल्हापुर, सांगली, सोलापुर, पुणे, अकोला, परभणी, नांदेड़ और यवतमाल जिलों में रहते है. वहीं, जानकारों के मुताबिक इस समुदाय के लोगों के पास 40 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक वोट हैं और लगभग 100 विधानसभा क्षेत्रों पर इसी समुदाय के लोगों का प्रभाव है. 

माधव समुदाय का इन जिलों में रहा है प्रभाव

1  कोल्हापुर
2  सांगली
3 सोलापुर
4 पुणे
5 अकोला
6 परभणी
7 नांदेड़
8 यवतमाल  

80 के दशक में अपनाया गया था माधव फॉर्मूला

आमतौर पर भारतीय जनता पार्टी को उच्च वर्ग के नेतृत्व के लिए जाना जाता है, लेकिन पार्टी की इसी छवि को बदलने के लिए वसंतराव भागवत ने 80 के दशक में स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे, प्रमोद महाजन, पांडुरंग फंडकर, महादेव शिवंकर और अन्यों की मदद से माधव (माली, धनगर, वंजारी) फॉर्मूले को लेकर आए. 

गोपीनाथ मुंडे ने साल 2014 में होने वाले चुनाव से पहले भी इस समुदायों को साधने की पूरी कोशिश की थी. बीजेपी ने चुनाव से पहले धनगर समाज को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने का वादा किया था और पार्टी को इसका फायदा भी मिला और बीजेपी इसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ाती चली गई.

गोपीनाथ मुंडे के निधन ने इस समीकरण को लगभग ढहा ही दिया 

हालांकि साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यह समीकरण लगभग ढहता सा नजर आने लगा. बीजेपी ने माधव समुदाय के जिन नेताओं के साथ मिलकर कभी "माधव" समीकरण खड़ा किया था, उसके ज्यादातर नेता या तो अब नहीं हैं या फिर राजनीति से सन्यास ले चुके हैं 

साल 2014 में गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद इस समीकरण को आगे बढ़ाने वाला कोई बड़ा चेहरा नहीं बचा. फिलहाल बीजेपी के लिए "माधव" समीकरण की कमजोरी चिंता का बड़ा कारण है बना हुआ है. वंजारी समुदाय की कमी पूरी करने के लिए गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे पार्टी का हिस्सा हैं लेकिन वह शिवसेना से ज्यादा सीटें जीतकर सीएम पद तभी हासिल कर पाएंगी, जब वह अपना पुराना समीकरण मजबूत करने के लिए माली, धनगड़, कुणबी, कोमटी आदि समुदायों के साथ पिछड़े वर्गों की अन्य जातियों को अपने साथ जोड़ने की पहल करे.

महाराष्ट्र में ओबीसी सियासत 

इस राज्य में ओबीसी लगभग 356 जातियों में बंटे हुए हैं और इन्हें 19 प्रतिशत का आरक्षण मिलता है. साल 1931 में आखिरी बार हुई जातिगत जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी का 52 फीसदी हिस्सा अति पिछड़ा वर्ग का था और महाराष्ट्र में 40 फीसदी आबादी ओबीसी की है, जिसमें तेली, माली, लोहार, धनगर, घुमंतु, कुनबी, बंजारा और कुर्मी जैसी जातियां शामिल हैं. 

बीजेपी की ओबीसी राजनीति

मुंबई में बीजेपी का उदय साल 1980 में हुआ था उस वक्त इस पार्टी को ब्राह्मण बनिया की पार्टी कही जाती थी. धीरे धीरे पार्टी ने अपने साथ पिछड़े वर्गों के ऐसे कई नेताओं को जोड़ने की शुरुआत की, जिन्हें राज्य की राजनीति में इससे पहले हाशिए पर रखा गया था. 

इन्हीं नेताओं में गोपीनाथ मुंडे, एकनाथ खड़से, विनोद तावड़े, एनसीपी के छगन भुजबल और कांग्रेस के नाना पटोले जैसे नेता उभरकर सामने आए. महाराष्ट्र की सियासत पर गौर करें तो यहां ओबीसी की 40 फीसदी आबादी होने के बाद भी मराठा वर्चस्व की राजनीति के चलते उन्हें कोई खास सियासी मुकाम नहीं मिल सका है. 

यही कारण है कि अब तक राज्य में एक भी ओबीसी सीएम नहीं बना. 80 के दशक में एकनाथ खड़से और विनोद तावड़े भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा बनकर महाराष्ट्र में उभरे थे. लेकिन आज बीजेपी के पास ओबीसी कैटेगरी का कोई बड़ा नेता नहीं है.

महाराष्ट्र में साल 2019 में क्या हुआ था?

साल 2019 के हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने (105 सीटों पर जीत दर्ज की थी और शिवसेना को 56 सीट मिले थे. पिछले विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी मिलकर मैदान में उतरी थी. बीजेपी और शिवसेना गठबंधन को सरकार बनाने का स्पष्ट जनादेश मिला था. हालांकि नतीजे के बाद दोनों ही पार्टियों के बीच पावर शेयरिंग को लेकर खींचतान शुरू हो गई. शिवसेना ने राज्ये के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावा ठोक दिया. उनका कहना था कि अमित शाह ने उन्हें  इसका आश्वासन दिया था.

शिवसेना का कहना था कि दोनों पार्टियों से ढाई-ढाई साल के लिए सीएम चुना जाए. जबकि बीजेपी इसपर राजी नहीं थी. 288 विधानसभा सीट वाले महाराष्ट्र राज्य में सरकार बनाने के लिए 145 सीट चाहिए थीं. उस वक्त किसी भी पार्टी के पास बहुमत नहीं थी जिसके बाद केंद्र सरकार ने राज्यपाल की सिफारिश पर 12 नवंबर 2019 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया.

राष्ट्रपति शासन लगने के बाद शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) नाम से गठबंधन बनाया और महाविकास अघाड़ी की तरफ से शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को सीएम बनाए जाने की घोषणा कर दी.

हालांकि राज्य का सियासी नाटक उद्धव के नाम आने के बाद भी खत्म नहीं हुआ. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 23 नवंबर की सुबह सुबह  अचानक राष्ट्रपति शासन हटाकर फडणवीस को सीएम और अजित पवार को डिप्टी सीएम की शपथ दिलवा दी. 

इस खबर के सामने आते ही एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने NCP के विधायकों को एकजुट किया और शिवसेना, कांग्रेस के साथ मिलकर शरद पवार का रुख किया. जिसके बाद कोर्ट ने 24 घंटे के अंदर बहुमत साबित करने का आदेश दिया. हालांकि बहुमत साबित करने के कार्यक्रम से पहले ही फडणवीस ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि एनसीपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था.

इसके बाद राज्य में महा विकास अघाड़ी (MVA) की सरकार बनी. जिसमें कांग्रेस, शिवसेना और NCP तीनों शामिल थे. इस गठबंधन ने आपसी सहमति के साथ उद्धव ठाकरे को सीएम बनाया.

 

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