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वित्त, कृषि और सहकारी..., शिंदे गुट के विरोध के बावजूद अजित खेमे को क्यों मिला मनचाहा विभाग?

एकनाथ शिंदे गुट वित्त विभाग अजित को देने के पक्ष में नहीं था. 12 दिनों के लंबे घमासान के बाद अजित कैंप वित्त, सहकारी और कृषि जैसे पावरफुल विभाग लेने में कामयाब रहा. आइए इसके पीछे की वजह जानते हैं...

महाराष्ट्र सरकार में विभाग बंटवारे को लेकर 12 दिनों से जारी सियासी घमासान थम गया है. राजभवन से जारी कैबिनेट विस्तार की नई सूची में अजित पवार गुट को मनचाहा विभाग मिला है. अजित गुट को वित्त, योजना, कृषि, सहकारी, खाद्य आपूर्ति और महिला विकास विभाग जैसे भारी भरकम विभाग मिले हैं.

अजित गुट की वजह से बीजेपी को 6 और शिंदे गुट को 3 विभाग खोने पड़े हैं. कैबिनेट बंटवारे में बीजेपी के बाद शिंदे गुट के मुकाबले अजित गुट का पलड़ा ज्यादा भारी हो गया है. शिंदे गुट के अब्दुल सत्तार से कृषि और संजय राठोड से खाद्य मंत्रालय छिन गया.

शिंदे गुट के विरोध के बावजूद अजित पवार को वित्त मंत्रालय मिला. यह मंत्रालय पहले बीजेपी कोटे से उपमुख्यमंत्री बने देवेंद्र फडणवीस के पास था. अजित गुट के एनसीपी में आने से खफा शिंदे गुट के लिए यह करारा झटका भी माना जा रहा है. 

कैबिनेट बंटवारे के जरिए महाराष्ट्र की सियासत में हुए उलटफेर और सियासी संकेत को विस्तार से समझते हैं...

पहले जानिए सत्तार और संजय का विभाग अजित गुट को मिला?
एकनाथ शिंदे गुट के 5 मंत्री दिल्ली की रडार पर थे. इनमें अब्दुल सत्तार, तानाजी सावंत, संजय राठोड, गुलाब पाटील और संदीपान भुमरे का नाम शामिल हैं. इन मंत्रियों को हटाए जाने की बात कही जा रही थी, लेकिन शिंदे ने समीकरण का हवाला देते हुए हटाने से इनकार कर दिया था.

अब 5 में से 2 मंत्री अब्दुल सत्तार और संजय राठोड के विभाग बदल दिए गए हैं. सत्तार को कृषि के बदले अल्पसंख्यक कल्याण विभाग दिया गया है. वहीं राठोड को खाद्य और औषधि के बदले जलसंरक्षण विभाग मिला है. 

सत्तार लगातार विवादों से घिरे हुए थे, जिससे सरकार की छवि खराब हो रही थी. हाल ही में अकोला में सत्तार के निजी सचिव की ओर से एक टीम बनाकर बीज कारोबारियों के यहां छापा मारा गया था. रेड के बाद टीम ने रिश्वत की भी मांग की थी. विवाद बढ़ने पर सत्तार ने इससे खुद को अलग कर लिया था.

वहीं बारिश की वजह से विदर्भ और नासिक में किसानों की नाराजगी भी चरम पर है. दिल्ली में बीजेपी हाईकमान ने सभी मामलों का संज्ञान लेते हुए सत्तार पर कार्रवाई की सिफारिश की थी. 

दवा विक्रेताओं का विरोध संजय राठोड के खिलाफ गया. राठोड के खिलाफ दवा विक्रेताओं ने हाल ही में सामूहिक शिकायत की थी. विक्रेताओं का कहना था कि राठौड़ का कार्यालय भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है. दवा विक्रेताओं के संगठन ने महाराष्ट्र में हड़ताल की भी धमकी दी थी. 

संगठन का कहना था कि सरकार की ओर से  रकम की मांग की जाती है और नहीं देने पर लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है.

सरकार में किसके पास कौन सा विभाग?

बीजेपी- बीजेपी सरकार में सबसे बड़ी पार्टी है, जिसके विधायकों की संख्या करीब 105 है. सरकार में बीजेपी कोटे से देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री और 9 अन्य मंत्री शामिल हैं. सरकार में बीजेपी मंत्रियों के पास 25 से ज्यादा विभाग हैं.

उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास गृह, जल संसाधन और उर्जा जैसे महत्वपूर्ण विभाग हैं. सरकार में शामिल मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटील के पास राजस्व, सुधीर मुंगटीवार के पास वन, चंद्रकांत पाटील के पास उच्च शिक्षा और गिरिश महाजन के पास ग्रामीण विकास विभाग है.

बीजेपी के रविंद्र चौहान के पास महाराष्ट्र के प्रसिद्ध लोक निर्माण विभाग की जिम्मेदारी है. कैबिनेट बंटवारे में बीजेपी के अतुल सावे का कद घटा है, उनसे सहकारिता विभाग ले लिया गया है. सावे के पास अब पिछड़ा कल्याण मंत्रालय है.


वित्त, कृषि और सहकारी..., शिंदे गुट के विरोध के बावजूद अजित खेमे को क्यों मिला मनचाहा विभाग?

शिवसेना (शिंदे गुट)- विभाग बंटवारे में सबसे अधिक नुकसान शिवसेना से बागी हुए एकनाथ शिंदे गुट को ही हुआ है. शिंदे गुट को पिछली बार ही 3-4 महत्वपूर्ण विभाग दिए गए थे. इनमें से कृषि और औषधि विभाग अब ले ही लिए गए हैं. 

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को छोड़ दिया जाए तो उनके गुट के मंत्रियों के पास अब सिर्फ उद्योग और स्वास्थ्य जैसे 2 महत्वपूर्ण विभाग बचे हैं. हालांकि, मुख्यमंत्री शिंदे के पास खनन और नगर विकास जैसे रसूखदार विभाग है. 

शिंदे गुट के दीपक केसरकर के पास स्कूली शिक्षा, अब्दुल सत्तार के पास अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की जिम्मेदारी है. उद्धव सरकार के वक्त शिवसेना के पास लोक निर्माण, नगर विकास, उच्च शिक्षा, कृषि, उद्योग और प्रोटोकॉल जैसे महत्वपूर्ण विभाग थे.


वित्त, कृषि और सहकारी..., शिंदे गुट के विरोध के बावजूद अजित खेमे को क्यों मिला मनचाहा विभाग?

एनसीपी (अजित गुट)- कैबिनेट फेरबदल में अजित पवार गुट को मनचाहा विभाग मिला है. उद्धव सरकार में भी अजित के पास वित्त विभाग था और अब भी उन्हें वित्त और योजना विभाग की कमान मिली है. अजित गुट को कृषि, सहकारी और औषधि, चिकित्सा शिक्षा जैसे विभाग दिए गए हैं.

अजित गुट के छगन भुजबल उद्धव सरकार में भी खाद्य आपूर्ति मंत्री थे, उन्हें अब भी यही विभाग मिला है. अजित गुट के अदिति तटकरे, धनंजय मुंडे और संजय बनसोडे का भी कद बढ़ा है. 

उद्धव सरकार के वक्त मुंडे के पास समाजिक कल्याण विभाग था, लेकिन अब उन्हें कृषि जैसे महत्वपूर्ण विभाग मिले हैं. अदिति और संजय राज्य स्तर से कैबिनेट स्तर की मंत्री बनाए गए हैं. दोनों को विभाग भी महत्वपूर्ण मिला है. 

दिलीप वल्से पाटील उद्धव सरकार में गृह मंत्री थे, लेकिन इस बार उन्हें सहकारिता विभाग मिला है. एनसीपी का मुख्य जनाधार सहकारी क्षेत्र ही है, इसलिए इसे भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. 

बड़ा सवाल- अजित गुट को क्यों मिली तरजीह?
महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक एक ही चर्चा है, 30 विधायक वाले अजित गुट को एकनाथ शिंदे के मुकाबले ज्यादा तरजीह क्यों दी गई है, वो भी तब जब शिंदे गुट लगातार विरोध कर रहा है?

NCP के विधायकों को साधने की कोशिश- अजित पवार एनसीपी से बगावत कर सरकार के साथ तो आ गए हैं, लेकिन जरूरत के 36 विधायक अब तक नहीं जुटा पाए हैं. अजित गुट के पास एनसीपी के 30 विधायकों का साथ ही है. 

अजित अगर 36 विधायक साथ लाने में नाकाम रहते हैं, तो उनकी सदस्यता रद्द हो सकती है. इससे बीजेपी की भी काफी किरकिरी होगी. इसलिए अजित गुट को सरकार में तरजीह दी जा रही है.  

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सरकार में अजित गुट को तरजीह देकर एनसीपी के विधायकों को एक संदेश देने की कोशिश की गई है कि आपका इस सरकार में पूरा सम्मान किया जाएगा. 

शिवसेना (शिंदे गुट) के पास मुख्यमंत्री का पद है, तो बीजेपी के पास विधानसभा स्पीकर और डिप्टी सीएम की कुर्सी. दोनों के मुकाबले अजित गुट के पास सिर्फ डिप्टी सीएम का पद है. इसलिए विभाग बंटवारे में उन्हें तरजीह देकर एक संदेश दिया गया है.

शिंदे गुट को कंट्रोल करने की रणनीति- महाराष्ट्र में एक पोस्टर के बाद से ही शिंदे गुट और बीजेपी के बीच अंदरखाने की लड़ाई शुरू हो गई थी. शिवसेना के पोस्टर में देश में मोदी और महाराष्ट्र में शिंदे को नेता बताया गया था. हालांकि, बाद में इस पर शिंदे गुट ने सफाई भी दी.

जानकारों के मुताबिक अजित गुट को तरजीह देकर शिंदे खेमा पर नकेल कसने की रणनीति है. अजित के साथ आ जाने से बीजेपी सरकार पर अब कोई खतरा नहीं है. ऐसे में शिंदे गुट ज्यादा कुछ कर नहीं सकती है, इसलिए बीजेपी दबाव की पॉलिटिक्स कर रही है. 

इधर, एकनाथ शिंदे ने कोल्हापुर की एक रैली में अजित को साथ लाने के पीछे राजनीतिक समीकरण को जिम्मेदार माना. कार्यकर्ताओं से शिंदे ने कहा कि राजनीतिक समीकरण दुरुस्त करने के लिए अजित साथ आए हैं, लेकिन आप लोगों को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.

क्या एकनाथ शिंदे की कुर्सी पर भी खतरा है?
विभाग बंटवारे के बाद महाराष्ट्र के पिंपरी चिंचवड में एक पोस्टर लगाया गया है, जिसमें अजित पवार को भावी मुख्यमंत्री बताया गया है. सरकार में अजित गुट के साथ आने के बाद से ही इस तरह की अटकलें लगाई जा रही है. 

दरअसल, एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों पर अयोग्यता के मामले में सुनवाई शुरू हो गई है. अगर इन विधायकों की सदस्यता रद्द होती है, तो कुर्सी पर संकट आ सकता है. कहा जा रहा है कि अजित पवार को बीजेपी मुख्यमंत्री बना सकती है.

खुद अजित भी एनसीपी की रैली में मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं. हालांकि, यह सब अटकलें है. शिंदे के करीबी नेताओं का कहना है कि अगर विधायकी रद्द होती है, तो राज्यपाल कोटे से मुख्यमंत्री विधानपरिषद जा सकते हैं. 

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