Maharashtra News: अहमदनगर में एक महत्वपूर्ण धनगर आबादी है और इसलिए शहर का नाम बदलने को इस वोट आधार को आकर्षित करने के लिए एक कदम माना जा रहा है. हालांकि, आरक्षण जैसी समुदाय की अन्य मांगों को अभी तक पूरा नहीं किया गया है. क्या नाम बदलने से आरक्षण की मांग पूरी होगी, यह एक ऐसा सवाल है जिस पर अब चर्चा हो रही है.


नाम बदलने से क्या बीजेपी को होगा फायदा?
महाराष्ट्र में सीएम शिंदे ने पहली कैबिनेट बैठक में औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने का संकल्प लिया था. हालांकि, दोनों निर्णयों के कार्यान्वयन में बहुत सी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है और वर्तमान में कानून की अदालत में लंबित हैं. अहमदनगर का नाम बदलकर अहिल्यादेवी नगर करने के फैसले को ऐसी ही परिस्थियों से गुजरने की संभावना है. बहरहाल, इस सवाल पर चर्चा हो रही है कि क्या इस तरह का फैसला वोट बैंक को पकड़ने के लिए काफी है?


अहमदनगर में धनगर समुदाय का जातिय समीकरण
FPJ के अनुसार, अहमदनगर जिले में धनगर समुदाय की अच्छी खासी आबादी है. संगमनेर, परनेर, राहुरी, नगर ग्रामीण, कर्जत-जामखेड ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां धनगर समुदाय के वोट निर्णायक कारक हैं. कुल मिलाकर, कम से कम 12 लोकसभा क्षेत्रों और लगभग 80 विधानसभा क्षेत्रों में महत्वपूर्ण धनगर आबादी है जो परिणामों को प्रभावित कर सकती है. यह समुदाय बीजेपी के "माधवा" - माली, धनगर, वंजारी - समीकरण का प्रमुख हिस्सा है, जिसे पार्टी ने 1980 के दशक से कांग्रेस की मराठा, दलित, मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के विकल्प के रूप में विकसित किया था.


यह समुदाय लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहा था. समुदाय के सदस्य भी इसे जानते हैं और शायद इसी वजह से बीजेपी, जिसने 2014 में राज्य में सत्ता में आने पर समुदाय को आरक्षण देने का वादा किया था, ज्यादा कुछ नहीं कर पाई.


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