Maharashtra News: महाराष्ट्र में दिसंबर में नई सरकार का गठन हो गया है. महायुति ने पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली लेकिन हाल के वर्षों में महाराष्ट्र ने काफी राजनीतिक उठापटक देखा और 2024 ऐसा साल बना जो उस पर विराम लगाता नजर आया. इस राजनीतिक उठापटक की पृष्ठभूमि 2019 में ही लिख दी गई थी जब उद्धव ठाकरे ने अपने पुराने सहयोगी बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस और अविभाजित एनसीपी के साथ सरकार बनाई थी. 


महाराष्ट्र देश के कुछ उन राज्यों में रहा जहां एक साल के भीतर दो चुनाव हुए. एक लोकसभा और दूसरा विधानसभा का चुनाव यहां कराया गया. लोकसभा का चुनाव महायुति (बीजेपी, एनसीपी, शिवसेना) की परीक्षा का वक्त था जिसमें वह बुरी तरह असफल रही लेकिन विधानसभा चुनाव में इसने ना केवल अपनी खोई प्रतिष्ठा वापस पाई बल्कि अगले पांच साल तक सरकार चलाने का बहुमत हासिल कर लिया. 


जून 2022 में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में 40 विधायकों ने उद्धव ठाकरे से विद्रोह कर दिया और बीजेपी के साथ मिलकर महायुति की सरकार बनाई. इसके बाद शिवसेना के नाम और सिंबल पर भी क्लेम कर दिया और असली-नकली की लड़ाई में शिंदे गुट जीत गया. एकनाथ शिंदे के खाते में नाम और सिंबल दोनों चला गया. उद्धव गुट को अपना नाम और सिंबल दोनों बदलना पड़ा.


अजित पवार गुट को मिली NCP की कमान


महाविकास अघाड़ी (शिवसेना-यूबीटी, कांग्रेस, एनसीपी-एसपी) को यह झटका कम नहीं था कि इसकी एक सहयोगी शरद पवार की एनसीपी में उनके भतीजे अजित पवार जुलाई 2023 में विद्रोह कर अपने गुट के विधायकों को लेकर महायुति में शामिल हो गए. उन्होंने भी शरद पवार गठित एनसीपी के नाम और सिंबल पर दावा ठोक दिया. चुनाव आयोग ने फरवरी 2024 में अजित पवार गुट के पक्ष में फैसला सुनाया और पार्टी का नाम, सिंबल और झंडा अजित पवार को आवंटित कर दिया.


अजित पवार गुट के शामिल होने से महायुति और मजबूत हुई लेकिन यह कितनी मजबूत और जनता इसपर कितना भरोसा जताती है इसकी असली परीक्षा तो लोकसभा चुनाव में होनी थी. यह चुनाव 2019 से बिल्कुल अलग था क्योंकि जो पहले धुर-विरोधी थे वे साथ थे, और जो कट्टर समर्थक थे वे कट्टर बैरी बने हुए थे. उद्धव ठाकरे गुटे बीजेपी के खिलाफ खड़ा था तो एनसीपी का एक गुट बीजेपी के साथ था. इस चुनाव में उद्धव ठाकरे और शरद पवार दोनों ने उनके साथ छल किए जाने और बीजेपी पर उनकी पार्टी को तोड़ने का आरोप लगाया. तमाम मुद्दों के साथ चुनाव में जनता के सामने इसे भी जोर-शोर स उठाया. 


लोकसभा चुनाव में नहीं चला महायुति का सिक्का


लोकसभा चुनाव विधानसभा चुनाव से पहले महायुति का शक्ति परीक्षण भी था. इस शक्ति परीक्षण में महायुति को करारी शिकस्त मिली. महाराष्ट्र की सीटों पर नतीजे अप्रत्याशित रहे और विपक्षी महाविकास अघाड़ी ने 48 में से 31 सीटें जीत लीं और सबसे ज्यादा झटका बीजेपी को लगा जिसे केवल 9 सीटें मिलीं जबकि 2019 में उसने 23 सीटें अकेले जीती थीं. महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस ने 13, एनसीपी-एसपी ने सात, शिवसेना-यूबीटी ने 9 सीटें जीतीं जबकि बीजेपी ने 9, शिवसेना ने 7 और एनसीपी ने एक सीट ही जीत पाई. 


बिना सीएम फेस के उतरी महायुति और MVA


लोकसभा चुनाव में मिली जीत से महाविकास अघाड़ी अति-उत्साहित थी. नतीजे ने इस चर्चा को भी हवा दे दी कि क्या एनसीपी और शिवसेना का विभाजन राज्य की जता को पसंद नहीं आया.  महाविकास अघाड़ी को अब भरोसा होने लगा कि विधानसभा में उसी की सरकार बनेगा जबकि महायुति की वापसी मुश्किल लगने लगी. ढाई साल तक एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सरकार चलाने के बाद महायुति फिर अपनी शक्ति जुटाकर मैदान में थी तो दूसरी तरफ महाविकास अघाड़ी थी जिसने लोकसभा चुनाव में उसे बुरी तरह पछाड़ दिया था. दोनों ही गठबंधन में चुनाव के आखिर तक सीएम के चेहरे को लेकर कोई घोषणा नहीं की गई. 


चुनाव की भी घड़ी आ गई. 20 नवंबर को मतदान कराए गए. महायुति की तरफ से बीजेपी ने 149, शिवसेना ने 81 और एनसीपी ने 57 सीटों पर चुनाव लड़ा जबकि महाविकास अघाड़ी की ओर से कांग्रेस 101, शिवसेना-यूबीटी 95 और एनसीपी-एसपी ने 87 सीटों पर प्रत्याशी उतारे. चुनाव में एकबार फिर असली-नकली शिवसेना और एनसीपी का मुद्दा, अडानी का मुद्दा, संविधान का मुद्दा और जाति आधारित आरक्षण का मुद्दा छाया रहा लेकिन विपक्ष के इन मुद्दों का धरातल पर असर होता नजर नहीं आया. क्योंकि चुनाव ना केवल अप्रत्याशित बल्कि ऐतिहासिक रहे. 


महायुति की प्रचंड जीत के आगे धराशाही हुई MVA


महायुति ने ना केवल प्रचंड जनादेश हासिल किया जबकि लोकसभा चुनाव के उलट विपक्ष पूरी तरह धराशाही हो गया, नौबत यहां तक आ गई कि विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाने तक के आंकड़े भी किसी विपक्षी पार्टी को नहीं मिले. बीजेपी ने 132 सीट जीती जो कि उसका अब तक सबसे बेहतरीन प्रदर्शन रहा, सत्तारूढ़ गठबंधन की शिवसेना ने 57 और अजित पवार की एनसीपी ने 41 सीटें जीती. विपक्षी पार्टियां मिलकर भी 50 सीटें नहीं जीत पाई. शिवसेना-यूबीटी ने 20, कांग्रेस को 16 और एनसीपी-एसपी को 10 सीटों पर संतोष करना पड़ा. 


साल का अंत आते-आते महाराष्ट्र को मिल गया नया सीएम


महायुति के सत्ता में आने पर सवाल यह था कि सीएम कौन बनेगा? इसको लेकर रस्साकसी जारी रही. बीजेपी ने ना केवल सबसे ज्यादा  सीटें जीती थी बल्कि उसे 6 विधायकों का भी समर्थन था और ऐसे में उसकी सीएम पद पर दावेदारी मजबूत थी. करीब 10 दिनों तक चली जद्दोजहद के बाद यह साफ हो गया बीजेपी का ही सीएम होगा और एकनाथ शिंदे को डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठना होगा. 5 दिसंबर को नई सरकार के मुखिया के तौर पर देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ली. अजित पवार और एकनाथ शिंदे को डिप्टी सीएम बनाया गया.


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