इंडिया गठबंधन की तीसरी बैठक में क्या नीतीश कुमार विपक्षी मोर्चा के संयोजक बन पाएंगे? पटना से दिल्ली तक के सियासी गलियारों में यह सवाल सुर्खियों में है. सवाल इसलिए भी, क्योंकि इसी मीटिंग में 11 सदस्यों की कॉर्डिनेशन कमेटी पर फैसला होना है.


जेडीयू सूत्रों के मुताबिक गठबंधन में शामिल 5 नेता संयोजक पद के लिए नीतीश कुमार के नाम पर सहमत हैं, लेकिन आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने अघोषित वीटो लगा दिया है. लालू के विरोध की वजह से ही संयोजक को लेकर अब तक तस्वीर साफ नहीं हुई है.


सहयोगी दलों में सामंजस्य बनाने के लिए INDIA गठबंधन के कॉर्डिनेशन कमेटी में एक संयोजक, एक चेयरमैन और 9 सदस्य शामिल होंगे. गठबंधन में एक प्रवक्ताओं की भी कमेटी बनाई जाएगी, जो हर मुद्दे पर गठबंधन का एक पक्ष रखेगा.


रिपोर्ट के मुताबिक गठबंधन के भीतर संयोजक का पद सबसे महत्वपूर्ण होगा. सीट बंटवारे से लेकर मेनिफेस्टो फाइनल करने की जिम्मेदारी संयोजक पर ही होगी.


नीतीश के नाम पर कौन-कौन नेता सहमत हैं?


1. राहुल गांधी- कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी नीतीश कुमार को संयोजक बनाने पर सहमत हैं. राहुल गांधी ने अप्रैल में ही नीतीश कुमार को संयोजक बनाने का भरोसा दिया था. इसी के बाद नीतीश ने सभी को जोड़ने की मुहिम शुरू की थी.


राहुल गांधी ने नीतीश को यह भी भरोसा दिया था कि कांग्रेस को जो भी त्याग करना पड़ेगा, वो करने के लिए पार्टी तैयार है.


2. शरद पवार- एनसीपी चीफ शरद पवार नीतीश कुमार को खुलकर खुद से बेहतरीन दावेदार बता चुके हैं. इंडिया गठबंधन में नीतीश कुमार के बाद पवार ही सबसे बड़े दावेदार हैं. हालांकि, पवार महाराष्ट्र पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं.


3. सीताराम येचुरी- सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी भी नीतीश कुमार के पक्ष में हैं. नीतीश जब बीजेपी से अलग हुए थे, तब येचुरी ही सबसे पहले उन्हें फोन लगाकर बधाई दी थी. येचुरी नीतीश के सहारे बंगाल में लोकसभा की सीट भी पाना चाहते हैं.


4. डी राजा- सीपीआई के डी राजा भी नीतीश की पहल की तारीफ कर चुके हैं. डी राजा नीतीश के पक्ष में खड़े होकर बिहार में अपनी पार्टी की जनाधार बढ़ाने में भी जुटे हुए हैं. 1990 के दशक में बिहार में सीपीआई का मजबूत जनाधार था. 


5. अरविंद केजरीवाल- गठबंधन के भीतर कई आम आदमा पार्टी को लेकर असहज है, लेकिन नीतीश की पैरवी की वजह से आप इंडिया गठबंधन में शामिल है. केजरीवाल भी नीतीश के सहारे अधिक सीट पाने की कोशिश में हैं. इसलिए उनका भी समर्थन नीतीश को है.


गठबंधन में शामिल ये दल अभी भी पशोपेश में
इंडिया गठबंधन में शामिल शिवसेना, तृणमूल, सपा, आरएलडी, जेएमएम, डीएमके और एमडीएमके जैसे बड़े दल अभी पशोपेश में हैं. इनमें से अधिकांश दलों की मांग है कि राज्य स्तर पर कमेटी का गठन किया जाए और सीट बंटवारे का विवाद सुलझाया जाए.


इंडिया गठबंधन में अब कुल 28 दल शामिल हैं. बीएसपी, इनेलो, एआईयूडीएफ समेत 5 और दलों को शामिल कराने की कवायद चल रही है.


नीतीश के नाम पर लालू ने क्यों लगाया अघोषित वीटो?
आरजेडी सूत्रों के मुताबिक लालू यादव नीतीश कुमार को संयोजक बनाना चाहते हैं, लेकिन उनकी मांग है कि नीतीश सीएम की कुर्सी छोड़ दिल्ली जाएं. इंडिया गठबंधन का मुख्यालय दिल्ली में ही बनाने की बात हो रही है.


आरजेडी नेताओं का कहना है कि अगस्त में जब जेडीयू और आरजेडी का गठबंधन हुआ था, तो एक डील हुई थी. इसके तहत नीतीश जब दिल्ली जाएंगे, तो सीएम की कुर्सी तेजस्वी के लिए छोड़ देंगे. 


इसी कथित डील की वजह से उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश का साथ छोड़ दिया था. जानकारों का कहना है कि संयोजक के लिए नीतीश के पक्ष में माहौल बन चुका था, लेकिन लालू के एक बयान ने जेडीयू की परेशानी बढ़ा दी.


इतना ही नहीं, नीतीश कुमार को मीडिया के सामने आकर कहना पड़ा कि मैं संयोजक नहीं बनना चाहता हूं. कहा जा रहा है कि अगर मीटिंग में लालू ने घोषित रूप से नीतीश के नाम पर वीटो लगा दिया, तो संयोजक का चुनाव अगले मीटिंग तक के लिए टल भी सकती है.


अगर लालू सहमत हो जाते हैं, तो नीतीश के नाम की घोषणा मीटिंग के बाद हो सकती है.


लालू या नीतीश, इंडिया गठबंधन में कौन ज्यादा मजबूत?


- नीतीश कुमार की राजनीति एनडीए समर्थित रही है, जबकि लालू यादव ने बीजेपी के विरोध में ही राजनीति की है. इसलिए लालू का संबंध अखिलेश, ममता, स्टालिन, हेमंत और कांग्रेस से नीतीश के मुकाबले अधिक मजबूत हैं.


- गठबंधन के लिए लालू यादव अब तक पर्दे के पीछे से अखिलेश और ममता बनर्जी को मनाने में कामयाब रहे हैं. सोनिया गांधी को भी लालू ने ही साधा है. नीतीश के नाम का लालू अगर विरोध करते हैं, तो संयोजक का फैसला टल सकता है.


- हालांकि, 2015 में कांग्रेस ने नीतीश का समर्थन किया था. राहुल गांधी ने बिहार में नीतीश को चेहरा बनाने की बात कही, जिसके बाद लालू बैकफुट पर चले आए. कम सीट होने के बावजूद जेडीयू से नीतीश मुख्यमंत्री बनाए गए.


अब समझिए संयोजक का पद कितना महत्वपूर्ण है?
1989 में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की मजबूत सरकार थी, लेकिन चुनाव से पहले वीपी सिंह ने इस्तीफा दे दिया. सिंह ने उस वक्त के सभी दलों को जोड़कर एक राष्ट्रीय मोर्चा बनाया. सिंह इस मोर्चा के संयोजक बनाए गए.


चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. जीत के बाद प्रधानमंत्री चुनने के लिए राष्ट्रीय मोर्चा की बैठक बुलाई गई. मीटिंग में सभी देवीलाल के नाम पर सहमत हो गए, लेकिन देवीलाल ने वीपी सिंह के नाम को आगे बढ़ा दिया.


देवीलाल का तर्क था कि चुनाव में बतौर संयोजक वीपी सिंह ने काफी मेहनत की है, इसलिए प्रधानमंत्री पद पर उनकी दावेदारी सबसे अधिक है.


इसी तरह 1998 में जब एनडीए की सरकार बनी, तो उस वक्त गठबंधन के संयोजक जॉर्ज केंद्र में मंत्री बनाए गए. जॉर्ज विभाग बंटवारे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे.  अटल सरकार में 10 सीटों वाली समता पार्टी को रक्षा, कृषि और रेल जैसे महत्वपूर्ण विभाग मिले थे. 


1996 में संयुक्त मोर्चा की सरकार में हरिकिशन सुरजीत संयोजक थे. सुरजीत की अंतिम मुहर के बाद ही एचडी देवगौड़ा और आईके गुजराल प्रधानमंत्री बने थे. मनमोहन सरकार के समय यूपीए गठबंधन के संयोजक अहमद पटेल थे. 


मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारु ने अपनी किताब में खुलासा किया था कि अहमद पटेल के जरिए सोनिया गांधी प्रधानमंत्री कार्यालय चलाती थीं. मंत्रियों के नाम पटेल ही फाइनल करते थे.