प्रयागराज, एबीपी गंगा। देश ही नहीं बल्कि समूची दुनिया में नदियां जब भी अपना दायरा तोड़कर बाहर आती हैं तो हमेशा सिर्फ और सिर्फ तबाही ही मचाती हैं. यही वजह है कि बाढ़ का नाम सुनते ही लोग चिंता में डूब जाते हैं. बाढ़ न आने के लिए प्रार्थना करते हैं. दुआएं मांगते हैं. लेकिन संगम नगरी प्रयागराज में एक ऐसा मंदिर है, जहां गंगा और यमुना नदियों में बाढ़ आने के लिए हफ़्तों पूजा-अर्चना और प्रार्थना की जाती है. गंगा और यमुना का पानी जब अपनी हदें तोड़कर किनारे से काफी दूर पर स्थित इस मंदिर में बाढ़ की शक्ल में पहुंचता है तो यहां कोहराम मचने के बजाय खुशियां मनाई जाती हैं. बाढ़ के पानी की आरती की जाती है. घंटे और घड़ियाल बजाकर जश्न मनाया जाता है.


सड़कों- रास्तों और पार्क को पार करते हुए मंदिर में दाखिल होने वाले बाढ़ के पानी पर फूलों की बारिश की जाती है. हालांकि बाढ़ का पानी अंदर आने पर लोगों की ज़िंदगी को सुरक्षित रखने के मकसद से मंदिर को बंद करना पड़ता है, लेकिन इन सबके बावजूद मंदिर से जुड़े महंत और पुजारियों के साथ ही हज़ारों श्रद्धालुओं को इस बार भी बाढ़ का बेसब्री से इंतजार है. दरअसल यहां बाढ़ का इंतजार किसी ख़ास वजह से किया जाता है, जिसमे हज़ारों लोगों की आस्था शामिल होती है और रोमांच भी होता है.


प्रयागराज में संगम किनारे पवन पुत्र हनुमान जी का एक ऐसा अनूठा मंदिर है. जहां बजरंग बली लेटी हुई अवस्था में अपने भक्तों को दर्शन देते है और उनका कल्याण करते हैं. यह दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर हैं, जहां बजरंग बली की लेटी हुई प्रतिमा है और इन्हे यहां जल भी चढ़ाया जाता है. इस मंदिर की कथा त्रेता युग में रामायण काल से भी जुडी हुई है. मंदिर के महंत और धर्मगुरु स्वामी आनंद गिरि के मुताबिक़ त्रेता युग में लंका का युद्ध जीतने के बाद अयोध्या जाने से पहले भगवान राम पुष्पक विमान से संगम पर भारद्वाज मुनि का आशीर्वाद लेने के लिए आए थे. लंका युद्ध में शरीर पर तमाम चोट आने की वजह से हनुमान जी यहां थक कर लेट गए थे. मान्यता है कि उस वक्त मां जानकी ने उनके शरीर पर अपने सिन्दूर का लेप लगाया था और उन्हें आरोग्यता का आशीर्वाद दिया था.



संगम किनारे लेटी हुई अवस्था में विराजमान बजरंग बली को प्रयागराज का कोतवाल भी माना जाता है. गंगा नदी के तट से यह मंदिर करीब आधा किलोमीटर दूर है. मान्यता है कि गंगा मइया जिस साल नदी के दायरे से बाहर आकर हनुमान जी के इस मंदिर तक आकर अपने पुत्रवत बजरंग बली को स्नान कराती हैं तो उस साल प्रयागराज में कोई प्राकृतिक आपदा नहीं होती. किसी को अकाल मौत का सामना नहीं करना पड़ता. प्रयागराज में होने वाले सभी आयोजन बिना किसी बाधा के शांतिपूर्वक संपन्न होते हैं. यहां हर तरफ खुशहाली ही खुशहाली रहती है. यहां बाढ़ का पानी तबाही मचाने के लिए नहीं आता, बल्कि यहां गंगा मइया अपने पुत्रवत बजरंग बली से मिलने और उन्हें अपनी आगोश में लेने के लिए आती हैं. यहां खुशी इसी अनूठे मिलन की मनाई जाती है.


प्रयागराज के लोगों को इस बात का विश्वास हो चुका है कि गंगा जब विकराल रूप धारण कर इस मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचकर बजरंग बली को स्नान करा देती है तो उनका पूरा साल बहुत अच्छा बीतता है. कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आती. किसी को अकाल मौत का सामना नहीं करना पड़ता. हालांकि महंत स्वामी आनंद गिरि का कहना है कि गंगा मइया और बजरंग बली के मिलन से सिर्फ प्रयागराज ही नहीं बल्कि पूरे देश में खुशहाली रहती है और लोग शांति व सुकून के साथ जीवन बिताते हैं.


प्रयागराज में आम तौर पर जुलाई के दूसरे हफ्ते से गंगा और यमुना तेजी से बढ़ने लगती हैं और अगस्त के पहले व दूसरे हफ्ते तक गंगा व यमुना का पानी इस अनूठे मंदिर तक आ जाता है. कई बार तो बाढ़ का पानी तीन तीन बार यहां तक आ जाता है. इस साल गंगा और यमुना अभी इस हनुमान मंदिर से काफी दूर हैं. अगले कुछ दिनों तक बाढ़ का पानी यहां तक आने की उम्मीद भी नहीं है. ऐसे में मंदिर से जुड़े लोगों के साथ ही यहां आने वाले श्रद्धालु नदियों का जलस्तर बढ़ने और बाढ़ का पानी यहां तक आने की कामना करने में जुट गए हैं.


मंदिर में श्रद्धालु बाढ़ के लिए ख़ास पूजा अर्चना कर रहे हैं. धार्मिक ग्रंथों का पाठ कर रहे हैं और खुद बजरंग बली की अराधाना कर रहे हैं. हालांकि बाढ़ का पानी जब इस मंदिर तक आ जाता है तो वह बजरंग बली को नहलाने के साथ ही कई मोहल्लों में आबादी के बीच घुसकर तबाही भी मचाता है. स्वामी आनंद गिरि के मुताबिक़ लोगों को इस बार भी गंगा की बाढ़ का पानी मंदिर तक आने का बेसब्री से इन्तजार है.


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