प्रयागराज: मुहर्रम के मौके पर ताज़िया दफ़न किए जाने की अनुमति की मांग को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल की गई है. यह पीआईएल असर फाउंडेशन संस्था के चेयरमैन शौकत भारती की तरफ से दाखिल की गई है, जिस पर बृहस्पतिवार या शुक्रवार को सुनवाई होने की उम्मीद है. पीआईएल में सभी ताजियों को बीस लोगों की मौजूदगी में कोविड की गाइडलाइन का पालन करते हुए दफ़नाने की अनुमति दिए जाने की मांग की गई है.


अर्जी में कहा गया है कि घरों में ताजिया रखने और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बाहरी लोगों की मौजूदगी के बिना मजलिस और मातम करने और दूसरी अन्य रस्में अदा करने की अनुमति दी है, लेकिन ताजियों को लेकर बाहर निकलने और उन्हें कर्बला तक ले जाकर वहां दफनाने की अनुमति नहीं दी है.


पीआईएल में कहा गया है कि ताजिये ईराक के कर्बला के वाक्ये के प्रतीक के तौर पर होते हैं. ताजिये के बहाने हज़रत इमाम हुसैन समेत कर्बला के 72 शहीदों की कुर्बानियों को याद किया जाता है. असर फाउंडेशन के चेयरमैन शौकत भारती के मुताबिक, सरकार ने कोविड की गाइडलाइन में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर बीस लोगों की मौजूदगी में अंतिम संस्कार की छूट दे रखी है. ताजिये भी प्रतीक होते हैं और इन्हे भी दफन किया जाता है, इसलिए समूचे उत्तर प्रदेश में ताजियों को दफन करने के लिए चुनिंदा लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए घरों से बाहर निकलने और 20 लोगों की मौजूदगी में ताजियों को दफनाने की अनुमति दी जानी चाहिए.


अर्जी में यह भी कहा गया है कि मुहर्रम कोई ऐसा पर्व नहीं है, जिसमे खुशियां मनाई जाती हैं. यह अपने ग़म को प्रकट करने का मौका होता है, इसलिए अकीदतमंद खुद ही अनुशासन के दायरे में रहते हैं.