Punjab: 60 साल की बलजीत ने 10वीं और 53 साल की गुरमीत ने 12वीं की परीक्षा की पास, कायम की मिसाल
पंजाब की बलजीत और गुरमीत ने बोर्ड की परीक्षा पास का साबित किया पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती, दोनों मोगा गांव में आशा वर्कर हैं.
Punjab News: पंजाब के मोगा के गांव लंगेआना पुराना निवासी दो आशा वर्कर महिलाओं ने यह साबित कर दिया कि पढ़ने- लिखने की कोई उम्र नहीं होती. इन दोनों में से एक यानी 53 साल आशा वर्कर ने 12वीं और 60 साल की दूसरी आशा वर्कर ने 10वीं पास कर मिसाल कायम की है. ऐसा कर दोनो महिलाएं उन युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं जो किसी कारण से नहीं पढ़ पाए, लेकिन जब मौका मिला तो दोनों महिलाओं ने एक मिसाल कायम कर, साफ कर दिया कि पढ़ने और लिखने की कोई उम्र नहीं होती. अगर कोई पढ़ना चाहे तो किसी भी उम्र में ऐसा कर सकता है. बता दें कि दोनों अपने पोता पोतियों के साथ घर पर एक साथ पढ़ाई कर अपने सपने को साकार करने में कामयाब हुई हैं.
अब 12वीं पास करने का इरादा
60 वर्षीय बीबी बलजीत कौर ने बताया कि उनके दो पोते हैं और गांव में आशा वर्कर तौर पर काम करती हैं. बलजीत कौर का कहना है की उनके साथ काम करने वाला आशा वर्कर कोई 10वीं, तो कोई 12वीं पास हैं. उनके पढ़ाई कम होने के कारण महसूस हुआ कि पढ़नात्र चाहिए. उन्होंने 1976 में 8वीं क्लास तक पढ़ाई कर छोड़ दी. उनके मन में पढ़ने की इच्छा खत्म नही हुई. यही कारण है कि 47 साल के बाद उन्होंने हाल ही में फिर से पढ़ाई शुरू की और इस साल उन्होंने पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के माध्यम से ओपन स्कूल प्रवेश पत्र भरे और 60 साल उम्र में 10वीं पास कर मिसाल कायम की है. कुछ दिन पहले ही रिजल्ट आया तो उन्होंने 345 अंक लाकर परीक्षा पास की. उन्होंने बताया कि आज मैं बहुत खुश हूं. अब मुझे 12वीं का पेपर देना और पास करना है.
पंचायत सदस्य रह चुकी हैं गुरमीत
53 वर्षीय बीबी गुरमीत कौर का कहना है की वो भी आशा वर्कर हैं. दोनों एक साथ ही काम करती हैं. उन्होंने बताया कि 1987 में दसवीं पास करने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी. अब 36 साल बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई शुरू की और 53 साल की उम्र 12वीं में 328 अंक हासिल कर पास किया. उनके भी अब पोते- पोतियां हैं. उन्होंने कहा कि मैं बतौर आशा वर्कर काम करती हूं. गांव के पंचायत सदस्य भी रह चुकी हूं. उनका कहना है कि इंसान को सीखने की कोई उम्र नहीं होती. कोई भी अपने आत्मविश्वास को बनाए रखकर जब चाहे तब कोई भी मुकाम हासिल कर सकता है.
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बलजीत और गुरमीत ने साबित किया पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती