Punjab News: कंट्रोलर एंड ऑडिट जनरल ऑफ इंडिया (CAG) ने पंजाब में हायर एजुकेशन विभाग की परफारमेंस की ताजा ऑडिट रिपोर्ट जारी कर अहम खुलासे किये हैं. रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में कॉलेजों की संख्या तो बढ़ी है लेकिन दाखिलों की संख्या में गिरावट भारी गिरावट आई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में 2010-11 में 973 कॉलेज थे, जो 2019-20 में 1111 हो गए हैं. इस तरह पंजाब में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 29 से 35 कॉलेज हैं.


पंजाब में कॉलेजों की संख्या में 14.18 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है, कॉलेजों की डेंसिटी भी 20.69 फीसदी बढ़ी है लेकिन कड़वी हकीकत ये है कि कॉलेजों में दाखिले 2010-11 से 2019-20 तक 28 फीसदी घट गए हैं. वहीं पंजाब के तीन कॉलेजों को ही नैक की रैंकिंग मिली है.


10 डिवीजनों में एक भी कॉलेज नहीं


कैग ने अपनी रिपोर्ट में जो सिफारिशें की हैं, उनका पालन कर पंजाब सरकार अपने हायर एजूकेशन में सुधार ला सकती है. इसके अलावा राज्य की हकीकत ये है कि राज्य के  33 सब डिवीजनों में ही 17 सरकारी कॉलेज हैं, जबकि 10 डिवीजनों में एक भी कॉलेज नहीं है. कैग ने एडमिशन में बढ़ोत्तरी व  जियोग्राफिकल मैपिंग करके नए कॉलेज खोले की सिफारिश भी की है.


मार्च से अगस्त 2021 तक कैग ने पंजाब में 38 कॉलेजों का ऑडिट किया था, जिसमें पंजाब यूनिवर्सिटी पटियाला, जीएनडीवी अमृतसर और राजीव गांधी यूनिवर्सिटी शामिल रहीं. ऑडिट के जरिए कैग ने पाया कि 2015 से 20 तक स्टेट मैरिट स्कॉलरशिप स्कीम में 632 छात्रों को लाभ दिया गया, जिस पर 7 लाख रुपए खर्च हुए. इसके अलावा इसी अवधि में पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम में 3,36,624 छात्रों को लाभ दिया गया जिस पर 702 करोड़ खर्च हुए.


कैग की शिफारिशें


हर डिवीजन में कम से कम 1 कॉलेज खोला जाए.
छात्रों के दाखिले बढ़ाने की प्लानिंग की जाए. विश्वविद्यालयों में हॉस्टलों की क्षमता जरूरत के हिसाब से अपग्रेड की जाए.
नैक के बैंचमार्क के अनुसार सिलेबस बने.अभी 49 छात्रों पर 1 टीचर है, जबकि 20 छात्रों पर एक टीचर होना चाहिए.
स्टेट लेवल क्वालिटी एश्योरेंस सेल बने, जो नैक की रैंकिंग से कॉलेजों को जोड़े.
टीचर के खाली पदों को भरा जाए.


केवल तीन कॉलेज ही नैक रैंकिंग में शामिल


कैग की रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब के 7 सब डिवीजनों में एक भी कॉलेज नहीं है. इसके अलावा केवल 3 कॉलेज ही नैक रैंकिंग में हैं. कैग ने कहा कि इसकी वजह सॉफ्ट स्किल में कमी, टीचरों की कमी, प्री प्लेस में ट्रेनिंग की कमी, इंडस्ट्री के साथ सरकारी कॉलेजों का कमजोर लिंक, कॉलेजों में मैनेजमेंट इनफॉर्मेश सिस्टम की कमी, कॉलेजों में मॉनिटरिंग और इवैल्यूएशन की कमी, जिसमें शिक्षा में बराबरी, गुणवत्ता और प्रशासन प्रबंधन संबंधी कमियां शामिल हैं.


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