हरियाणा में कांग्रेस की दुश्मन ही नहीं, दोस्तों से भी लड़ाई, समझें क्या है पूरा खेल?
Haryana Election 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी, कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी, जेजेजी और आईएनएलडी तैयारी में जुटी है. इस बीच कांग्रेस में दो धड़ों की लड़ाई सामने आ गई है.
Haryana Assembly Election 2024: पहले भारत जोड़ो यात्रा, फिर भारत जोड़ो न्याय यात्रा और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतकर राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए हैं. इस पूरी यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने अपनी छवि भी बदली और दोस्त भी. लेकिन अब यही नए सियासी दोस्त राहुल गांधी के सियासी दुश्मन भी बनते जा रहे हैं.
जब हरियाणा में चुनाव होने हैं तो ऐसे ही एक पुराने सियासी दोस्त और अब नए-नए बने सियासी दुश्मन ने ऐसा दांव खेल दिया है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को झटका लग सकता है.
आप-कांग्रेस में गठबंधन नहीं
2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष ने इंडिया गठबंधन बनाया था. इस अलायंस की एक अहम साझेदार थी आम आदमी पार्टी, जिसने दिल्ली में मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा था. लेकिन अब जब हरियाणा में विधानसभा के चुनाव होने हैं तो आम आदमी पार्टी ने इंडिया गठबंधन तोड़ दिया है और एलान किया है कि वो हरियाणा की 90 की 90 सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ेगी. इसके लिए आम आदमी पार्टी की ओर से पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक कैंपेन भी लॉन्च किया.
...दो और बड़े खिलाड़ी
अब इससे इतना तो साफ है कि कांग्रेस को न सिर्फ बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ना है बल्कि अब उसे चंद महीने पहले तक सहयोगी रही आम आदमी पार्टी के भी खिलाफ चुनाव लड़ना है. लेकिन इस चुनावी खेल में मैदान में यही तीन पार्टियां नहीं हैं. बल्कि हरियाणा के इस चुनाव में दो और बड़े खिलाड़ी हैं और इनमें से एक हैं दुष्यंत चौटाला. जननायक जनता पार्टी के नेता जो अभी पिछली मनोहर लाल खट्टर सरकार में उप मुख्यमंत्री थे और एनडीए का हिस्सा था. लेकिन बीजेपी ने गठबंधन तोड़ दिया है तो जननायक जनता पार्टी भी हरियाणा चुनाव में एक बड़ी दावेदार है.
लेकिन इस चुनाव में हरियाणा का एक और पुराना नेता है, जो पूरे दमखम के साथ ताल ठोकने को तैयार है. और वो नेता हैं देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री रहे चौधरी देवीलाल के पोते और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के बेटे अभय चौटाला, जिन्होंने इस चुनाव के लिए मायावती के साथ गठबंधन किया है. हरियाणा की 90 सीटों में से 37 पर मायावती की बसपा चुनाव लड़ेगी वहीं 53 सीटों पर अभय चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल को चुनाव लड़ना है.
दीपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा में अनबन
ये तो रही सियासी दुश्मनों की बात, जिनके खिलाफ कांग्रेस और राहुल गांधी को चुनाव लड़ना है. मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में राहुल गांधी शायद ये चुनाव मजबूती से लड़ते भी, लेकिन हरियाणा कांग्रेस के अंदर ही इतनी खींचतान है कि उसे हारने के लिए किसी मजबूत सियासी विरोधी की जरूरत शायद ही पड़ेगी. कांग्रेस और खास तौर से राहुल गांधी के सामने चुनौती भी यही है कि वो दीपेंद्र हुड्डा के ग्रुप को समझाएंगे या फिर कुमारी शैलजा के ग्रुप को. क्योंकि पूरी हरियाणा कांग्रेस इन्हीं दोनों नेताओं के कैंप के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है.
अभी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मौजूदगी में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष उदयभान ने एलान किया कि दीपेंद्र हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों पर पदयात्रा करेंगे और वो भी तब जब कुमारी शैलजा पहले ही कह चुकी थीं कि वो हरियाणा की 90 की 90 विधानसभा सीटों पर पदयात्रा करेंगी. न दीपेंद्र हुड्डा को पता है कि कुमारी शैलजा पदयात्रा कर रही हैं और न ही कुमारी शैलजा को पता है कि दीपेंद्र हुड्डा पदयात्रा कर रहे हैं.
आलाकमान को पता है कि दोनों ही पदयात्रा कर रहे हैं, लेकिन वो कुछ भी करने की हालत में है नहीं. क्योंकि हुड्डा जाटों के बड़े नेता हैं, तो कुमारी शैलजा दलित चेहरा हैं. जाट वोट करीब 22 फीसदी हैं, जिनका प्रभाव 30 से 32 सीटों पर सीधा है तो दलित वोटर्स करीब 11 फीसदी हैं, जिनका सीधा प्रभाव 9 से 10 सीटों पर है.
बीजेपी ने चला ओबीसी दांव
ऐसे में बीजेपी ने अपना ओबीसी दांव चल दिया है. पहले तो बीजेपी ने अपना मुख्यमंत्री बदला. पंजाबी खत्री मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को हटाकर ओबीसी समुदाय से आने वाले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया. फिर ओबीसी में क्रीमी लेयर की सीमा बढ़ा दी और खुद गृहमंत्री अमित शाह ने इसका एलान भी किया. बाकी जिस अग्निवीर को लेकर कांग्रेस बीजेपी पर हमलावर है, उसी अग्निवीर के लिए हरियाणा पुलिस ने 10 फीसदी के आरक्षण का भी प्रावधान कर दिया.
अभी ये सब तब है, जब चुनाव का एलान नहीं हुआ है. अगर चुनाव का एलान होता है तो बीजेपी और भी एग्रेसिव होगी. और अगर आम आदमी पार्टी या फिर जननायक जननायक जनता पार्टी या फिर इंडियन नेशनल लोकदल-बसपा को एक बार को भूल भी जाएं और मान लें कि मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस में ही होने वाला है, तब भी कांग्रेस के सामने लड़ाई हुड्डा बनाम शैलजा की होगी. और इस लड़ाई को जीतना कांग्रेस के लिए लोकसभा या विधानसभा का चुनाव जीतने से भी मुश्किल होने वाला है.
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