Punjab News: पिछले दिनों विधानसभा सत्र के दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान (Bhagwant Mann) ने राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित (Banwarilal Purohit) को राज्य के विश्वविद्यालयों के चांसलर पद से हटाने के लिए प्रस्ताव पास किया था. जिसको लेकर दोनों के बीच खींचतान मची हुई है.
इस मामले पर अब शिक्षाविदों की प्रतिक्रिया भी सामने आई है. उन्होंने सीएम मान के इस कदम को राजनीतिक हस्तक्षेप बताया है. उनका कहना है कि शिक्षा क्षेत्र में राजनीतिक एंट्री से शैक्षणिक माहौल खराब हो सकता है. कुछ शिक्षाविदों कहना है कि वीसी के चयन वरिष्ठ मान्यता प्राप्त विद्वान को दिया जाना चाहिए.
इंदिरा गांधी को छोड़ना पड़ा था जेएनयू चांसलर पद
जेएनयू के पूर्व प्रो. प्रोफेसर चमन लाल ने बताया कि पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी भी जेएनयू की चांसलर बनी थीं. उस समय सीपीआई महासचिव सीताराम येचुरी जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष थे. उन्होंने इंदिरा गांधी पर आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों के आरोप लगाए, जिसके बाद उन्हें 1977 में जेएनयू चांसलर का पद छोड़ना पड़ा था.
‘वीसी के पद का तेजी से राजनीतिकरण हुआ’
शिक्षाविदों कहना है कि राजनीतिक आकाओं की इच्छा के अनुसार नियुक्त किए गए वीसी के पास स्पष्ट रूप से उस राजनीतिक समूह के हितों को बढ़ावा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है जो उनका समर्थन करता है. राज्यपाल के कार्यालय के राजनीतिकरण के साथ, कुलाधिपति का कार्य भी तेजी से राजनीतिक हो गया है. वहीं राज्य सरकार और केंद्र सरकार अगर दो अलग-अलग विचारधाराओं से संबंधित हैं, तो लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच हितों का टकराव अपरिहार्य हो जाता है.
‘वीसी का चयन वरिष्ठ मान्यता प्राप्त विद्वान करें’
वीसी के पद पर सीएम के आ जाने से इस पद का राजनीतिकरण हो जाएगा. वीसी का चयन का अधिकार वरिष्ठ मान्यता प्राप्त विद्वान को दिया जाना चाहिए. उस क्षेत्र के विशेषज्ञों का एक कॉलेजियम बनाकर उन्हें वीसी के चयन की स्वतंत्रता देनी चाहिए. ताकि शैक्षणिक संस्थान राजनीति के खेल के मैदान न बनें.
सभी शिक्षाविदों के अलग-अलग विचार
शिक्षाविदों ने आप सरकार के विधेयक पर अलग-अलग विचार रखे. हालांकि उनमें से अधिकांश का कहना है कि उनमें से एक को चांसलर होना चाहिए. जेएनयू के पूर्व प्रो. प्रोफेसर चमन लाल सहित अन्य प्रोफेसरों के समूह का कहना है कि राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में, राज्यपाल को राज्य विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति माना जाता है. कुलपति कार्यालय में राजनीति से प्रेरित नियुक्तियां देश में शैक्षणिक माहौल को खराब करने वाला है.