कृषि कानून: देश में 17 सितंबर 2020 का दिन किसानों के लिए काला दिन माना गया था. ये वो दिन था जब संसद में खेती से जुड़े तीनों कानून पास किए गए थे. इन कानूनों के विरोध में देश के कई राज्यों के किसानों ने पिछले साल नवंबर में अपना प्रदर्शन शुरू किया था. लेकिन आज ठीक एक साल बाद यानि 19 नवंबर को किसानों की एक बड़ी जीत हुई है. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा ऐलान करते हुए बताया है कि ये तीनों कानून अब वापस लिए जा रहे हैं. क्या है पूरा मामला आइए जानते हैं...
क्या हैं ये तीन कानून...?
पहला कानूनः कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 है. इसके मुताबिक किसान मनचाही जगह पर अपनी फसल बेच सकते हैं. बिना किसी रुकावट के दूसरे राज्यों में भी फसल बेच और खरीद सकते हैं.
दूसरा कानूनः मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक सशक्तिकरण एवं संरक्षण अनुबंध विधेयक 2020 है. इसके जरिए देशभर में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है. फसल खराब होने पर उसके नुकसान की भरपाई किसानों को नहीं बल्कि एग्रीमेंट करने वाले पक्ष या कंपनियों को करनी होगी.
तीसरा कानूनः आवश्यक वस्तु संशोधन बिल- 1955 में बने आवश्यक वस्तु अधिनियम से अब खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा दी गई है.
ऐसे शुरू किसान आंदोलन
पिछले साल संसद के मॉनसून सत्र में इन तीनों कानूनों को लोकसभा में पारित किया गया था. लेकिन किसानों का मानना था कि ये काले कानून है जो सरकार को वापस लेने चाहिए. इसके लिए पंजाब, हरियाणा और हिमाचल राज्यों में किसानों के बीच 3 नवंबर से सुगबुगाहट शुरू हुई थी. और इसके बाद कृषि मंडियों, जिला मजिस्ट्रेट के दफ्तरों और सड़कों पर कुछ छोटे विरोध प्रदर्शन किए गए. वहीं इसके बाद किसानों ने अपने आंदोलन को बड़ा करते हुए 25 नवंबर को दिल्ली कूच करने का ऐलान किया.
किसानों और सरकार के बीच हुई मीटिंग
दिल्ली के बॉर्डरों पर पंजाब, हरियाणा, यूपी, उत्तराखंड के किसानों ने डेरा डाला. किसानों के प्रदर्शन को बढ़ता हुए देख सरकार की तरफ से बातचीत की पेशकश की गई. कई बार इसको लेकर किसानों ने सरकार से मीटिंग भी की. लेकिन सभी मीटिंगों में किसान चर्चा करने की जगह तीनों कानूनों को वापस लेने की बात अड़े रहे.
26 जनवरी को लाल किले में घुसे प्रदर्शनकारी
फिर आंदोलन को तेज करते हुए भारत बंद का ऐलान किया गया. इसका असर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में देखने को मिला. फिर 26 जनवरी के दिन किसान प्रदर्शनकारियों ने ट्रैक्टर मार्च निकाला. इसके लिए किसानों ने पहले ये ऐलान किया था कि ये परेड लाल किले तक की जाएगी. लेकिन इसके लिए पुलिस और प्रशासन ने इजाजत नहीं दी, तो किसानों ने तय किया कि, किसान ट्रैक्टरों से हरियाणा और यूपी की सीमा से दिल्ली में बस घुसने की सांकेतिक घोषणा कर वापस अपने-अपने राज्यों में लौट जाएंगे.
लेकिन कुछ प्रदर्शनकारी पुलिस को चकमा देते हुए गणतंत्र दिवस की सुबह ही दिल्ली में घुस आए. और इसके बाद दिल्ली की सड़को पर जो बवाल मचा, वो किसी के लिए भी भूल पाना नामुमकिन होगा. बता दें कि इस प्रदर्शन के दौरान कुछ लोगों ने लाल किले पर सिख निशान लहराया. जिसके बाद पुलिस ने आंसू गैस की गोलीबारी की और प्रदर्शनकारियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा. इस घटना में एक युवक की मौत भी हो गई थी.
पीएम मोदी ने किया ऐलान
वहीं अब कानून पास होने के ठीक एक साल बाद राष्ट्र के नाम संबोधन में पीएम नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून बिल वापस लेने की घोषणा कर दी. उन्होंने कहा कि संसद के सत्र में इन कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू होगी.
तीन कृषि कानून बिल लिए वापस
अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि, मैं सभी देश वासियों से क्षमा मांगते हुए, सच्चे मन से कहना चाहता हूं कि हमारे प्रयास में कमी रही होगी कि हम उन्हें समझा नहीं पाए. आज गुरू नानक जी का पवित्र प्रकाश पर्व है. आज मैं आपको ये बताने आया हूं, कि हमने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है. इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर देंगे. मेरी किसानों से अपील है कि अपने घर लौटें, खेतों में लौटें.
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