Farm Laws Repeal: कृषि कानूनों की वापसी के बाद क्या बीजेपी-अकाली फिर साथ आएंगे या कैप्टन को सहारा देगी बीजेपी
नरेंद्र मोदी सरकार के कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा का असर पंजाब की राजनीति पर भी पड़ेगा. जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और बीजेपी अपने अकेलेपन से परेशान है. आइए जानते हैं क्या होगा असर.
नरेंद्र मोदी सरकार के कृषि कानूनों का सबसे अधिक विरोध पंजाब में हुआ. इन कानूनों ने वहां की राजनीति की दिशा भी बदल दी. शिरोमणी अकाली दल ने बीजेपी से रिश्ता तोड़कर नरेंद्र मोदी सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. सरकार में शामिल अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. कृषि कानूनों की वापसी के पीछे पंजाब की राजनीति भी एक वजह बताई जा रही है. वहां अगले साल चुनाव होने हैं. कृषि कानूनों की वापसी का पंजाब की राजनीति पर भी असर पड़ सकता है. आइए जानते हैं कि इस फैसले का पंजाब की राजनीति पर क्या असर पड़ सकता है.
कृषि कानून लाने के बाद अकेली पड़ गई बीजेपी
कृषि बिलों के विरोध में हरसिमतर कौर बादल ने पिछले साल 17 सितंबर को मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था. अकाली दल और बीजेपी का गठबंधन भी टूट गया था. दोनों दलों का 1997 से गठबंधन था. विधानसभा चुनाव के लिए अकाली दल ने बसपा से हाथ मिलाया है. अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल और बसपा महासचिव सतीशचंद्र मिश्र ने जून में इस गठजोड़ की घोषणा की. इससे पहले 1996 के लोकसभा चुनाव में ये दोनों दल साथ आए थे. उस चुनाव में इस गठबंधन ने 13 में से 10 सीटें जीत ली थीं. इनमें से 3 सीटें- फिल्लौर, होशियारपुर और फिरोजपुर बसपा को मिली थीं. अब 25 साल बाद दोनों दल एक बार फिर साथ आए हैं. पंजाब की विधानसभा में 117 सीटें हैं. इनमें से 97 सीटों पर शिरोमणी अकाली दल और 20 सीटों पर बसपा चुनाव लड़ेगी. अकाली दल का जब बीजेपी से समझौता था तो उसने उसे 23 सीटें दी थीं.
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पंजाब में एक और बड़ा राजनीतिक डवलपमेंट हुआ है. अक्तूबर में कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया. इससे नाराज कैप्टन ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर पंजाब लोक कांग्रेस के नाम से अपनी पार्टी बना ली. कैप्टन अमरिंदर की बीजेपी नेताओं से नजदीकी रही है. कैप्टन ने करतारपुर कॉरिडोर खोलने और कृषि कानूनों की वापस लेने के फैसले का स्वागत किया है. एक ट्वीट में उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया है. उन्होंने लिखा है कि गुरु नानक जयंती पर प्रधानमंत्री ने पंजाबियों की बात मान ली. दूसरे ट्वीट में कैप्टन ने किसानों के विकास के लिए बीजेपी के साथ काम करने की उम्मीद जताई है. इससे पहले कैप्टन ने यह घोषणा की थी कि वो बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगे. लेकिन जब उन्होंने यह बात की थी तब कृषि कानून वापस नहीं हुए थे. लेकिन अब जब ये कानून वापस लेने की घोषणा हो गई है तो देखने वाली बात यह होगी कि कैप्टन क्या कदम उठाते हैं.
क्या पंजाब में खत्म हो पाएगा बीजेपी का अकेलापन
कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा ने पंजाब की राजनीति में बड़े फेरबदल के आसार पैदा किए हैं. कुछ राजनीतिक विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि अकाली दल और बीजेपी एक बार फिर साथ आ सकते हैं. लेकिन इसमें एक पेंच यह है कि इससे अकाली दल को दलितों के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है. जो कि पंजाब के वोटरों का एक तिहाई हिस्सा हैं. अब देखना होगा कि यह रिस्क लेते हुए अकाली दल फिर बीजेपी के साथ आता है या बसपा के साथ ही बना रहता है. अकाली दल ने बीजेपी के साथ पंजाब में 10 साल तक सरकार भी चलाई है.
अकाली दल से रिश्ता टूटने के बाद पंजाब में बीजेपी बिल्कुल अकेली है. हालत यह है कि किसान आंदोलन के समर्थक बीजेपी नेताओं को चुनाव प्रचार तक नहीं करने दे रहे हैं. लेकिन कृषि कानूनों की वापसी के बाद उसके लिए हालात बदल सकते हैं. बीजेपी ने 2017 का चुनाव अकाली दल के साथ 23 सीटों पर लड़ा था. उसे 3 सीटों पर जीत और 5.39 फीसदी वोट मिले थे. वहीं 2012 के चुनाव में भी बीजेपी अकाली दल के साथ थी. वह चुनाव भी बीजेपी ने 23 सीटों पर लड़ा था. उसे 12 सीटों पर जीत और 7.18 फीसदी वोट मिले थे.
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