(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
1 Year of Farmers Protest: किसान आंदोलन को आज एक साल हुआ पूरा, जानिए- कृषि कानूनों के बनने से लेकर वापस होने तक की पूरी कहानी
1 Year of Farmers Protest: पिछले साल 25 नवंबर 2020 को तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध-प्रदर्शन शुरु हुआ. इस दौरान कब, क्या-क्या हुआ उसे विस्तार से यहां समझें.
1 Year of Farmers Protest: केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को आज एक साल पूरा हो गया है. हालांकि बीते 19 नवंबर को मोदी सरकार द्वारा तीनों कृषि कानों को वापस लेने का ऐलान किया गया था. उसके बाद केंद्रीय कैबिनेट बैठक में भी कानूनों को वापस लेने के प्रस्ताव पर मुहर लग गई है. बावजूद इसके किसानों आंदोलनरत हैं और न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत अपनी अन्य मांगे पूरी होने पर अड़े हुए हैं. गौरतलब है कि किसान आंदोलन के एक साल पूरा होने पर आज राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के बार्डरों पर भारी संख्या में किसान एकजुट हो रहे हैं. चलिए जानते हैं किसान आंदोलन कब किन-किन परिस्थितियो से गुजरा और अब तक क्या हुआ.
कृषि कानून कब बने
5 जून 2020 को भारत सरकार ने तीन कृषि विधेयकों को संसंद के पटल पर रखा था. इसके बाद 14 सितंबर 2020 को संसद में कृषि कानूनों को लेकर अध्यादेश पेश किया गया. 17 सितंबर 2020 को अध्यादेश को लोकसभा में मंजूरी मिल गई और फिर राज्यसभा में भी 20 सितंबर 2020 को ये कृषि कानून ध्वनिमत से पारित हो गए. 27 सितंबर 2020 को कृषि बिलों को राष्ट्रपति की सहमति भी मिल गई और ये कानून बन गए,
कौन से थे तीन नए कृषि कानून
मोदी सरकार ने जिन तीन नए कृषि कानून शुरू किए थे उनमें पहला कृषि कानून- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 था. इसके अनुसार किसान मनचाही जगह पर अपनी फसल बेच सकते थे. इतना ही नहीं बिना किसी अवरोध के दूसरे राज्यों में भी फसल बेच और खरीद सकते थे. कोई भी लाइसेंसधारक व्यापारी किसानों से परस्पर सहमत कीमतों पर उपज खरीद सकता था. कृषि उत्पादों का यह व्यापार राज्य सरकारों द्वारा लगाए गए मंडी कर से मुक्त किया गया था. वहीं दूसरा कृषि कानून किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम 2020 था. यह कानून किसानों को अनुबंध खेती करने और अपनी उपज का स्वतंत्र रूप से विपणन करने की अनुमति देने के लिए था. इसके तहत फसल खराब होने पर नुकसान की भरपाई किसानों को नहीं बल्कि एग्रीमेंट करने वाले पक्ष या कंपनियों द्वारा की जाती. तीसरा कानून- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम था. इस कानून के तहत असाधारण स्थितियों को छोड़कर व्यापार के लिए खाद्यान्न, दाल, खाद्य तेल और प्याज जैसी वस्तुओं से स्टॉक लिमिट हटा दी गई थी.
किसान आंदोलन कब शुरू हुआ और क्यों हुआ विरोध
मोदी सरकार द्वारा तीन नए कृषि कानून शुरू किए जाने पर किसान संगठनों का तर्क था कि इस कानून के जरिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को खत्म कर देगी और उन्हें उद्योगपतियों के रहमोकरम पर छोड़ देगी. जबकि, सरकार का तर्क था कि इन कानूनों के जरिए कृषि क्षेत्र में नए निवेश का अवसर पैदा होंगे और किसानों की आमदनी बढ़ेगी. लेकिन किसान सरकार के तर्क से सहमत नहीं थे और फिर पिछले साल 25 नवंबर 2020 को तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध-प्रदर्शन शुरु हुआ. उस दौरान हजारों किसानों ने “ दिल्ली चलो” अभियान के हिस्से के रूप में कानून को पूरी तरह से निरस्त करने की मांग को लेकर राष्ट्रीय राजधानी का मार्च किया.
किसान आंदोलन में अब तक क्या क्या हुआ
5 नवंबर 2020 को किसानों ने राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू कर दिया. इसके बाद पंजाब और हरियाणा के किसानों ने दिल्ली चलो का नारा दिया. 26 नवंबर 2020 के दिन दिल्ली आ रहे किसानों को अंबाला में रोकने का प्रयास किया गया. बात नहीं बनी और दिल्ली पुलिस ने संगठनों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अनुमति दी. 28 नवंबर 2020 के गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली की सीमाओं को खाली करने के बदले किसानों को बातचीत का निमंत्रण दिया. इसके बाद 29 नवंबर 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में इन कानूनों और अपनी सरकार को कृषि व किसान हितैषी बताया. लेकिन किसान सहमत नहीं हुए और फिर 3 दिसंबर 2020 पहली बार सरकार और किसानों के बीच बैठक हुई जो बेनतीजा रही. 5 दिसंबर 2020 को भी दूसरे दौर की बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. 8 दिसंबर 2020 किसानों ने भारत बंद का आयोजन किया. 11 दिसंबर 2020 को भारतीय किसान यूनियन ने सुप्रीम कोर्ट में तीनों कृषि कानूनों को चुनौती दे डाली और फिर 13 दिसंबर 2020 को केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने किसान आंदोलन के पीछे टुकड़े-टुकड़े गैंग की साजिश होने की बात कही.21 दिसंबर, 2020 को किसानों ने सभी विरोध स्थलों पर एक दिवसीय भूख हड़ताल की. लेकिन सरकार और किसानों के बीच कोई बात नहीं बनी. 30 दिसंबर 2020 को सरकार और किसान नेताओं के बीच छठे दौर की बातचीत में कुछ प्रगति हुई क्योंकि केंद्र ने किसानों को पराली जलाने के जुर्माने से छूट देने और बिजली संशोधन विधेयक, 2020 में बदलाव को छोड़ने पर सहमति व्यक्त की थी. इसके बाद 4 जनवरी 2021 को सरकार और किसान नेताओं के बीच सातवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही क्योंकि केंद्र कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए सहमत नहीं था. 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी और सभी हितधारकों को सुनने के बाद कानूनों पर सिफारिशें करने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया.
कब नाटकीय हुए किसान आंदोलन
किसान आदोलन में उस समय नाटकीय मोड आ गया जब 26 जनवरी 2021 को गणतंत्र दिवस पर, कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर किसान संघों द्वारा बुलाई गई ट्रैक्टर परेड के दौरान हजारों प्रदर्शनकारी पुलिस से भिड़ गए. सिंघू और गाजीपुर के कई प्रदर्शनकारियों द्वारा अपना मार्ग बदलने के बाद, उन्होंने मध्य दिल्ली के आईटीओ और लाल किले की ओर मार्च किया, जहां पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और लाठीचार्ज किया, जबकि कुछ किसानों ने सार्वजनिक संपत्ति में तोड़फोड़ की और पुलिस कर्मियों पर हमला किया. लाल किले पर, प्रदर्शनकारियों का एक वर्ग खंभों और दीवारों पर चढ़ गया और निशान साहिब का झंडा फहराया. हंगामे में एक प्रदर्शनकारी की मौत भी हो गई थी.
किसान नेता राकेश टिकैत हुए भावुक
इसके बाद किसान नेता राकेश टिकैत गाजीपुर बॉर्डर पर भावुक हो गए और फिर सिसौली में महापंचायत का आह्वान किया गया. इस दौरान गाजीपुर बार्डर पर हजारों की संख्या में किसान एकजुट हुए.
किसान आंदोलन में कितने किसानों की हुई मौत
किसान मोर्चा द्वारा आधिकारिक वाट्सएप ग्रुप में ऐसे किसानों की लिस्ट जारी की गई थी जिनकी अलग-अलग कारणों से इस आंदोलन के दौरान मौत हुई. मोर्चे ने दावा किया कि किसान आंदोलन के दौरान 605 किसानों की मौत हुई.
19 नवंबर 2021 को मोदी सरकार ने वापस लिए कानून
इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आंदोलन के 1 साल पूरा होने से पहले 19 नवंबर 2021 को अचानक से गुरु पर्व के मौके पर ऐलान कर दिया कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को निरस्त कर रही है. मोदी सरकार के इस कदम से किसानों ने कहा कि उनकी जीत हुई है.
किसान क्यों कर रहे अब भी आंदोलन
राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पिछले साल से आंदोलनरत पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के बाद भी आंदोलन कर रहे हैं. इसकका कारण ये है कि किसान संगठनों का कहना है कि सरकार फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी सहित अन्य मांगे पूरी करें. किसानों ने कहा है कि केंद्र से काथ इस संबंध में बातचीत होने तक किसान आंदोलन जारी रहेगा. गौरतलब है कि संयुक्त किसान मोर्चा आगे की रणनीति पर फैसला करने के लिए कल यानी 27 नवंबर को एक और बैठक करेगा. वहीं किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने 29 नवंबर को ट्रैक्टर मार्च निकालने का भी ऐलान किया है. इससे पहले संयुक्त मोर्चा द्वारा भी ऐलान किया गया था कि 29 नवंबर को 500 ट्रैक्टरों के साथ संसद का घेराव करेंगे.
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