दिल्ली आंदोलन-2 के 300 दिन पूरे, किसान नेता सरवन सिंह पंढेर बोले- ‘NDA या INDIA, किसान किसी से खुश नहीं’
Farmers Protest: किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने कहा, "शुक्रवार को करीब 20 किसान जख्मी हुए हैं. केंद्र सरकार किसानों से बात करने के मूड में नहीं है."
Farmers Protest: हरियाणा पंजाब के शंभू-बॉर्डर से किसान शुक्रवार को दोपहर 1 बजे के करीब दिल्ली के रवाना हुई लेकिन करीब ढाई घंटे बाद उन्होंने अपना मार्च टाल दिया. जिसको लेकर किसान नेता सरवन सिंह पंढेर की प्रतिक्रिया आई. उन्होंने कहा कि सरकार हमसे बातचीत के तैयार है इसलिए हम अभी इंतजार करेंगे क्योंकि हम टकराव नहीं चाहते. पढ़ेर ने मांग की कि हमसे केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज चौहान बात करें. अगर केंद्र सरकार हमसे बातचीत करेगी तो ठीक है वरना 8 दिसंबर को 12 बजे किसानों का जत्था दिल्ली की ओर कूच करेगा.
'दिल्ली आंदोलन 2' के आज 300 दिन पूरे
इसके साथ ही एएनआई से बातचीत के दौरान शुक्रवार को किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने कहा कि हमारे विरोध प्रदर्शन 'दिल्ली आंदोलन 2' ने आज अपने 299 दिन पूरे कर लिए हैं.शनिवार को आंदोलन के 300 दिन पूरे हो जाएंगे. खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन पर बैठे जगजीत सिंह डल्लेवाल को शनिवार को 12 दिन हो जाएंगे.
केंद्र सरकार जब किसानों पर निर्दलीयपन दिखाती है देश के किसानों और निहत्थे खेत मजदूरों पर जब जुल्म करती है तो अपनी रिकवरी के लिए भी हमें समय चाहिए होता है. तो अभी 20 किसानों के जख्मी होने की पुष्टि हुई है घायलों की संख्या और भी बढ़ सकती है.
‘केंद्र सरकार किसानों से बात करने के मूड में नहीं’
पंढेर ने आगे कहा कि केंद्र सरकार का बातचीत करने का इरादा बिल्कुल नहीं लग रहा है. केंद्र सरकार किसानों से बात करने के मूड में नहीं है. चाहे एनडीए सरकार हो या इंडिया सरकार की किसान कहीं भी खुश नहीं है. पंजाब की सरकार से भी लोग खुश नहीं हैं. देश के किसान-मजदूर की हालत अच्छी नहीं है. 2014 में जो शांता कुमार कमेटी की रिपोर्ट आई उसमें सरकार ने ये माना था कि छह प्रतिशत किसानों की फसल है वो एमएसपी के बिकती है बाकि 94 प्रतिशत किसान तो बाजार में लूटे जाते हैं. अब हरियाणा में कहते है कि हम एमएसपी देते हैं लेकिन एमएसपी से नीचे फसलें बिक रही हैं जो धान और गेहूं की समस्या अभी आ गई है.
उन्होंने कहा कि पूरे देश दुनिया को हम कहना चाहते है कि हमारा समस्या क्या है जो फसल हम पैदा कर रहे हैं उसका हमें उचित मूल्य मिले, जो भी देश के कापोर्रेट है या कारखानें हैं उन्हें अपना मूल्य तय करने का हक है. लेकिन खेत मजदूर को रोजगार और किसानों को उचित दाम नहीं मिलता.