Chandigarh News: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने संबंधित अधिकारियों से हरियाणा राजभवन के उस कर्मचारी के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई न करने को कहा है, जो 2010 में कुछ मेहमानों को कथित तौर पर बटर चिकन न परोस पाने के कारण विवाद में फंस गया था. उस वक्त राजभवन में हाउसकीपर के रूप में सेवा दे रहे याचिकाकर्ता जयचंद पर एक सभा में मेहमानों के एक समूह को पकवान न परोसने का आरोप लगाया गया था, जबकि अन्य लोगों को संबंधित पकवान परोसा गया था. उन पर एक सहकर्मी के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाया गया था.


न्यायमूर्ति अरुण मोंगा ने अपने सात सितंबर के आदेश में कहा, ‘‘आरोपों की प्रकृति और गंभीरता ऐसी प्रतीत नहीं होती है कि याचिकाकर्ता को इतनी कठोर और गैर-अनुपातिक सजा दी जानी चाहिए, जैसा विचार किया गया है.’’ अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता एक हाउसकीपर के रूप में सेवा कर रहा था और उसकी सेवाएं केवल हाउसकीपिंग के लिए थी.


अदालत ने कहा, ‘‘यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है कि एक हाउसकीपर को बटलर का काम भी पूरा करना चाहिए. आरोप यह है कि उन्होंने मेहमानों के दोनों समूहों को एक ही तरह के भोजन नहीं परोसे, जिससे गणमान्य व्यक्तियों को आमंत्रित करने वाले मेजबानों को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी, इसके लिए केवल याचिकाकर्ता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि वह केवल एक हाउसकीपर है.’’


न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, ‘‘मेनू की सामग्री और उसके संदर्भ में सेवा एक अंशदायी प्रक्रिया है, जिसमें दो से अधिक लोग शामिल होते हैं और याचिकाकर्ता को किसी भी गलत कदम के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता कि उसने सेवा नहीं की.’’


सुनवाई के दौरान, अदालत ने आठ सितंबर, 2016 को याचिकाकर्ता के बारे में हरियाणा के राज्यपाल के तत्कालीन सचिव की सिफारिशों का भी संज्ञान लिया.


इसने उल्लेख किया कि शुरू में, उसके व्यवहार के बारे में कुछ छोटी-मोटी शिकायतें थीं, जिसके लिए उसे व्यक्तिगत रूप से अपने आचरण और व्यवहार में सुधार करने की सलाह दी गई थी.


तत्कालीन सचिव ने नोट में लिखा था, “अब, पिछले कई महीनों से मुझे उसके व्यवहार और आचरण के खिलाफ कोई गंभीर शिकायत नहीं की गयी है या कुछ भी मेरी जानकारी में नहीं आया है. इसलिए, मुझे इस स्तर पर उन्हें (हाउसकीपर को) कोई बड़ी सजा देने का कोई औचित्य नहीं दिखता.’’


अदालत ने दलीलों को सुनने के बाद कहा कि ‘कारण बताओ नोटिस’ पर याचिकाकर्ता के जवाब पर प्रतिवादियों द्वारा स्वस्थ दृष्टिकोण अपनाये जाने की उम्मीद के साथ मामले का निपटारा किया जाता है.


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