(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Haryana: बॉन्ड नीति के विरोध का निकलेगा समाधान? MBBS छात्रों से मुलाकात करेंगे सीएम खट्टर
छात्रों की मांग है कि नीति के तहत सरकारी अस्पतालों में सेवा देने की साल सालों की बाध्यता को घटाकर एक साल किया जाए और ऐसा न कर पाने की स्थिति में बॉन्ड डिफॉल्ट राशि 5 लाख से अधिक नहीं होनी चाहिए.
Haryana News: हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर बुधवार को सरकार की बॉन्ड नीति का विरोध कर रहे एमबीबीएस के छात्रों से मुलाकात करेंगे. आंदोलन कर रहे छात्रों में शामिल एक छात्र ने यह जानकारी दी. बता दें कि नई बॉन्ड पॉलिसी को लेकर एक दिन पहले आंदोलन कर रहे छात्रों और हरियाणा सरकार के अधिकारियों के बीच एक बैठक हुई थी जो बेनतीजा रही.
बीते तीन हफ्तों से विरोध कर रहे हैं छात्र
नीति का विरोध कर रहे एमबीबीएस छात्र अनुज धनिया ने बताया कि सीएम खट्टर से छात्रों की मुलाकात बुधवार को दोपहर 1.30 बजे चंडीगढ़ में होगी. उन्होंने कहा कि प्रस्तावित बैठक के संबंध में रोहतक में पंडित भगवत दयाल शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (PGIMS) के निदेशक द्वारा पहले ही एक सर्कुलर जारी किया जा चुका है. मालूम हो कि पीजीआईएमएस रोहत और हरियाणा के कुछ अन्य मेडिकल कॉलेजों के छात्र बॉन्ड नीति को लेकर पिछले तीन हफ्तों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. पीजीआईएमस रोहतक के रेजिडेंट डॉक्टरों ने भी आंदोलन कर रहे छात्रों का समर्थन किया है. सोमवार को इंडियन मेडिकल असोसिएशन द्वारा इस नीति के खिलाफ छात्रों के समर्थन के चलते राज्य के प्राइवेट अस्पतालों में ओपीडी सेवाएं ठप रहीं.
क्या है छात्रों की मांग
छात्रों की मांग है कि नीति के तहत पढ़ाई पूरी होने के बाद सरकारी अस्पतालों में सेवा देने की साल सालों की बाध्यता को घटाकर एक साल किया जाए और ऐसा न कर पाने की स्थिति में बॉन्ड डिफॉल्ट राशि 5 लाख से अधिक नहीं होनी चाहिए.
क्या कहती है बॉन्ड पॉलिसी
बॉन्ड पॉलिसी के तहत, डॉक्टरों को स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम पूरा होने के बाद एक निश्चित अवधि के लिए राज्य द्वारा संचालित अस्पताल में काम करना जरुरी है. अगर डॉक्टर ऐसा करने में विफल रहते हैं तो उन्हें राजकीय या मेडिकल कॉलेज को जुर्माना देना होगा. इसके अलावा सरकारी संस्थानों में पढ़ने वाले एमबीबीएस छात्रों को प्रवेश के समय 40 लाख रुपये के त्रिपक्षीय बॉन्ड पर हस्ताक्षर करना होगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह सात साल तक सरकारी अस्पतालों की सेवा करेंगे. यदि कोई छात्रा ऐसा नहीं करता है तो उसे इस पूरी राशि का भुगतान करना होगा. छात इस बॉन्ड नीति का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि सात साल बहुत लंबा समय है और बॉन्ड की राशि बहुत बड़ी और अनुचित है.
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