हरियाणा में सरकार की ई-टेंडरिंग (E-Tendering) और राइट टू रिकॉल के खिलाफ विरोध तेज होता जा रहा है. हरियाणा के सरपंच सरकार के खिलाफ लगभग हर जिले में प्रदर्शन कर इसे वापस लेने की मांग कर रहे है. वही ई- टेंडरिंग के विरोध कर रहे सरपंचों को लेकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर (CM Manohar Lal Khattar) पहले ही कह चुके है कि ई- टेंडरिंग के माध्यम से सरकार ने पंचायतों की शक्तियां कम नहीं की हैं बल्कि बढ़ाई हैं. सरपंचों को भी अब सुशासन के हिसाब से चलना होगा.
क्या है ई-टेंडरिंग?
ग्राम पंचायतों में होने वाले कामों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया बनाई है जिसके तहत दो लाख से अधिक का काम करवाने के लिए ई-टेंडर जारी किया जाएगा. फिर अधिकारियों की देखरेख में ठेकेदारों से काम करवाया जाएगा. इसके अलावा सरपंचों को गांवों के विकास कार्यों के बारे में सरकार को ब्योरा देना होगा. सरकार का मानना है कि ऐसा करने से भ्रष्टाचार को रोकने में कामयाबी मिलेगी.
क्या है राइट टू रिकॉल?
राइट टू रिकॉल के तहत अब हरियाणा के गांवों के लोगों के पास ये अधिकार आ गया है कि अगर सरपंच गांव में विकास कार्य नहीं करवाएगा तो उसे बीच कार्यकाल में हटाया जा सकता है. सरपंच को हटाने के लिए गांव के ही 33 प्रतिशत मतदाता को लिखित शिकायत संबंधित अधिकारी को देनी होगी. जिसके बाद सरपंच को हटाया जा सकता है. यह अधिकार खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी तथा सीईओ के पास जा सकता है.
टेंडरिंग का विरोध क्यों कर रहे है सरपंच
हरियाणा के सरपंचों का कहना है कि सरकार की ये स्कीम सरपंचों के खिलाफ है. कि अगर गांवों में विकास करने के लिए पैसा उन्हें सीधे तौर पर नहीं दिया जाएगा तो ठेकेदार और अधिकारी अपनी मनमर्जी से काम करेंगे. इससे गांव का विकास नही हो पाएगा.
वही आपको बता दें कि सरपंच लगातार अपनी मांगों को लेकर अड़े हुए है और सरकार से ई-टेंडरिंग और राइट टू रिकॉल को वापस लेने की मांग कर रहे है. सरपंचों ने सरकार पर ठेका प्रथा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि सरकार अधिकारियों और ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने का काम कर रही है.
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