Haryana News: हरियाणा के नूंह में सांप्रदायिक तनाव के बाद लगाए गए कर्फ्यू का आज तीसरा दिन है. कर्फ्यू के चलते रोज कमाने खाने वाले मजदूरों के पास नूंह को छोड़ने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा है. बड़ी संख्या में सुबह-सुबह सर पर सामान लादे, महिलाएं अपने बच्चों को गोद में लिए भूखे पेट, नूंह को छोड़ कर जाते दिखाई दिए. लोगों ने दो दिन से कुछ नहीं खाया है, बच्चों को दूध नहीं मिला है, अब कर्फ्यू खत्म होने का इंतजार नहीं किया जा सकता इसलिए पैदल ही भीषण गर्मी और उमस में मजदूरों के परिवार अपना घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं. 


पैदल चलने को मजबूर हुए लोग


सत्तर वर्ष की महिला हो या 5 महीने के बच्चे की मां प्रियंका जैसी तमाम महिलाएं, अपनी खैरियत से पहले अपनी संतान के बारे में सोच कर और उनकी खाने की चिंता करते हुए नूंह को छोड़ कर जा रहे हैं. आपको बता दें कि नूंह से सोहना करीब 20 किलोमीटर दूर है, गुड़गांव इस रास्ते पर करीब 45-50 किलोमीटर दूर है लेकिन मजदूर पैदल इस रास्ते को तय करने वाले हैं. क्योंकि कर्फ्यू के चलते कोई वाहन नहीं चल रहे हैं.



‘भूखे मरने से अच्छा, चलते चलते मर जाएं’


ऐसी ही तस्वीरें आपको याद होगा लॉकडाउन के वक्त भी देखने को मिली थीं, जहां परेशान गरीब लोगों को अपना बसेरा छोड़ना पड़ा था. पैदल चलती महिलाओं का कहना है कि बहुत परेशानी में रह रहे थे. सब्जी, आटा कहां से लें. हम रोज खाना-पीना लेते थे. खाने के लिए कुछ भी नहीं है. कर्फ्यू लगा है सिर्फ गरीबों के लिए, पैदल ही जाएंगे. कोई दुकान भी नहीं खुल रही यहां। बच्चों को क्या खिलाएंगे. वहीं एक 70 वर्ष की महिला पैदल चलते हुए कहती है कि भूखे मरने से तो अच्छा है चलते चलते मर जाएं. खाने-पीने को कुछ भी नहीं मिला. 


गुरुग्राम में भी पलायन करने लगे मजदूर


गुरुग्राम के सेक्टर-70 के पास गुर्जर चौक झुग्गियों में रहने वाले लोगों ने पलायन करना शुरू कर दिया है. कई घरों में ताले लग गए है. गुरुग्राम हिंसा के दिन यहीं एक व्यक्ति की दुकान जला दी गई थी. आसपास के लोगों के मुताबिक़ उसी दुकान में वो रहते भी थे. दुकान जलने के बाद वो गांव अपने परिवार के पास चले गए. उसके बाद कई परिवार हैं, जो अब अपना सामान बांध रहे हैं. झुग्गी में क़रीब 250 घर हैं. ज़्यादातर दिहाड़ी मज़दूरी करने वाले लोग हैं. कोई बंगाल से तो कोई बिहार और यूपी से आकर यहां मजदूरी करता था. नूंह की हिंसा के बाद गुरुग्राम की कई दुकाने हिंसा का शिकार हुई. उसके बाद से लोगों के मन में डर है. लोगों का कहना है कि डर के साथ-साथ दो दिनों से काम भी नहीं मिला है.



शाम तक चले जाएंगे सारे परिवार


मुनवारा खातून नाम की एक महिला कहती है कि मैं भी गांव जाने का सोच रही हूं. सब लोग यहां से चले गए हैं. जो 10 से 11 परिवार बचे हैं वो भी शाम तक चले जाएंगे. यहां रहने का डर है. गांव के लोग हल्ला मचा रहे हैं. कल भी यहां पर दो लोगों को बहुत पीटा है. उस वक्त पुलिस भी थी  लेकीन कुछ नहीं किया, काम पर नहीं जा पा रहे हैं क्योंकि वो लोग रास्ते में पकड़ लेते हैं. राम बाबू पासवान का कहना है कि यहां हजारों लोग रहते थे लेकिन सब चले गए. जो मारने आएंगे वो ये नहीं पूछेंगे की धर्म क्या है. जब सब चले जाएंगे तो हम भी चले जाएंगे. जब सब मुस्लिम चले जाएंगे तो हम 4 हिंदू परिवार भी नहीं रहेंगे. 


सांप्रदायिक दंगों से कौन जीता कौन हारा?


अब सवाल ये है कि सांप्रदायिक दंगों से कौन जीता कौन हारा?  जवाब है जीता कोई नहीं, लेकिन हारा हर कोई! खास कर वो व्यक्ति जो रोज कमाना खाना चाहता है, जो चाहता है कि उसके बच्चे को दो टाइम का दूध, खाना मिल पाए. उस मानवता का नुकसान हुआ जिसका धर्म पेट नहीं भर पा रहा है!


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