(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Geetika Suicide Case: गीतिका शर्मा सुसाइड केस में गोपाल कांडा आखिर कैसे हो गए बरी? प्वाइंट टू प्वाइंट समझिए पूरी कहानी
Geetika Sharma Suicide Case: गीतिका शर्मा के सुसाइड केस में हलोपा विधायक गोपाल कांडा को राउज एवेन्यू कोर्ट ने बरी करने का फैसला सुनाया है. आखिर किस वजह से फैसला गोपाल कांडा के पक्ष में आया.
Haryana News: बहुचर्चित एयर होस्टेस गीतिका शर्मा सुसाइड मामले में हरियाणा लोक हित पार्टी के विधायक और पूर्व गृह राज्य मंत्री गोपाल कांडा बरी हो चुके है. दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने मंगलवार को गीतिका शर्मा सुसाइड केस में फैसला सुनाते हुए कांडा को बरी कर दिया. इससे पहले गोपाल कांडा इसी मामले में 18 महीने सजा काटकर आए थे. लेकिन 2012 के इस मामले में 11 साल बाद फैसला कांडा के हक में आया जिसकी वजह क्या रही हम आपको प्वाइंट टू प्वाइंट बताते है..
‘मामले में सबूत नहीं सिर्फ गवाह थे’
गीतिका शर्मा सुसाइड केस में दिल्ली पुलिस की तरफ से 65 गवाह पेश किए गए थे. लेकिन किसी भी गवाह की गवाही से ये तथ्य साबित नहीं हो पाए कि गोपाल कांडा और अरुणा चड्ढा ने गीतिका को इतना परेशान किया कि वो आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो गई.
‘दुष्कर्म और कुकर्म के हटे आरोप’
गोपाल कांडा पर गीतिका शर्मा से दुष्कर्म और कुकर्म के भी आरोप लगे थे लेकिन चार्जशीट में इन्हें पेश करने के लिए कोई तथ्य नहीं दिए गए थे जिसकी वजह से 25 जुलाई 2013 को दुष्कर्म और कुकर्म के आरोप हटा दिए गए थे.
‘गीतिका की मां अनुराधा ने भी की आत्महत्या’
गीतिका शर्मा की मां अनुराधा शर्मा ने भी बेटी की मौत के बाद सुसाइड कर लिया था. वो इस केस में अहम गवाह थी. उसकी शिकायत पर ही गोपाल कांडा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. एविडेंस एक्ट के तहत उनके बयान को अमान्य करार दिया गया.
‘गवाह के भागने से भी बिगड़ा खेल’
इस केस का तीसरा आरोपी चनशिवरूप सरकारी गवाह बनने के लिए राजी था लेकिन जब सरकारी गवाह बनने की बारी आई तो पता चला कि वो अमेरिका में जाकर बस चुका है. ऐसे में कोर्ट ने उसे 7 मई 2013 को भगोड़ा घोषित कर दिया और कांडा के खिलाफ दिया गया बयान एविडेंस एक्ट के तहत अमान्य हो गया.
‘सुसाइड नोट में नहीं था जुर्म का जिक्र’
गीतिका शर्मा के सुसाइड नोट में गोपाल कांडा का सिर्फ नाम था लेकिन घटना का कोई सबूत या घटना का जिक्र नहीं था. जिसको लेकर कोर्ट की तरफ से कहा गया कि यह स्थापित कानूनी सिद्धांत है कि केवल सुसाइड नोट में नाम होने से किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.